पहलगाम हमला: संशय के बादल
कश्मीर के सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम के बैसरन घाटी में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 27 लोगों की जान जाने का अफसोस पूरा देश मना रहा है

कश्मीर के सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल पहलगाम के बैसरन घाटी में मंगलवार को हुए आतंकी हमले में 27 लोगों की जान जाने का अफसोस पूरा देश मना रहा है, तो वहीं इस दर्दनाक घटना को लेकर हिन्दू-मुस्लिम की नयी लहर दौड़ पड़ी है। दोपहर तकरीबन ढाई बजे कई आतंकियों द्वारा उस वक्त अंधाधुंध फायरिंग की गयी जब एक बेहद खुश्गवार मौसम में भारत के अलग-अलग हिस्सों से आये सैलानी प्रकृति का लुत्फ ले रहे थे। इनमें नवविवाहित जोड़े, सपरिवार या मित्रों के साथ आये लोग थे। गर्मी की छुट्टियों में इस हसीन वादी में लाखों पर्यटक आने लगे हैं। 2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद इसे सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जा रहा है जिसने सरकार के इस दावे को चंद मिनटों में झुठला दिया कि 2016 की नोटबन्दी तथा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यहां से आतंकवाद की समाप्ति हो गयी है।
कुछ दिनों पहले संसद में भी केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि पहले यानी कांग्रेस के शासनकाल में कश्मीर कोई जाता नहीं था क्योंकि वहां होने वाले हमले के खिलाफ तत्कालीन सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती थी। शाह के दावे के अनुसार अब नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही भारतीय जनता पार्टी की सरकार की आतंक के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति से यहां सीमा पार से निर्देशित कार्रवाइयां ठहर गयी हैं।
इतना ही नहीं, जिस प्रकार से इस घटना को लेकर भाजपा तथा उनके समर्थकों की ओर से विमर्श चलाया जा रहा है, वह बतला रहा है कि इस घटना का भाजपा राजनीतिक लाभ लेने की तैयारियां कर चुकी है। गहन संदेह व्यक्त किये जा रहे हैं कि वक्फ़ कानून को सुप्रीम कोर्ट में मिल रही चुनौती से भाजपा को धु्रवीकरण के उसके जाने-पहचाने खेल में मात न मिल जाये, इसके लिये वह कश्मीर के इस हमले को अगले साल बिहार और फिर पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में वैसे ही भुनाएगी, जैसी वह पुलवामा हमले का लाभ 2019 के आम चुनाव में यह कहकर उठा चुकी है, कि 'क्या पहली बार के वोटर पुलवामा के शहीदों के नाम अपना मत भाजपा को देंगे?' कहा जाता है कि बालाकोट के साथ पुलवामा पर हुए हमले का असर मतदाताओं, खासकर युवाओं पर इस कदर पड़ा था कि भाजपा को अपने दम 303 सीटें मिल गयी थीं जो पूर्ण बहुमत के 272 से कई सीटें अधिक थीं। असलियत यह बताई जाती थी कि यदि यह मुद्दा भाजपा के हाथ न लगता तो उसे यह संख्या मिलनी मुमकिन नहीं थी।
याद हो कि पुलवामा हमले को लेकर आज भी संशय बना हुआ है कि राष्ट्रपति शासन के तहत रखे गये राज्य में इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक (आरडीएक्स) कहां से आया था जिससे सेना के 40 जवान शहीद हो गये जो वाहनों में जा रहे थे। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने देशबन्धु के चैनल डीबी लाइव पर यह खुलासा किया था कि यह बहुत बड़ी सुरक्षा चूक थी। श्रीनगर से वाहनों का इतना बड़ा काफिला बगैर रास्तों को सुरक्षित किये, जिसे तकनीकी शब्दावली में सेनिटाइज़ करना कहते हैं, कैसे ले जाया गया। उस वक्त प्रधानमंत्री जिम कार्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखंड) के घने जंगलों में एक विदेशी फिल्म निर्माता के साथ शूटिंग में व्यस्त थे जिनसे सम्पर्क करना सम्भव नहीं हुआ था। शाम को जब मलिक ने मोदी से कहा कि सुरक्षा सम्बन्धी चूक है तो बकौल मलिक प्रधानमंत्री ने इसे 'अलग तरह का मामला' बताते हुए खामोशी बरतने को कहा था। आज तक इस हमले की न तो ठीक से जांच हो सकी है और न ही हमलावरों की गिरफ्तारी तो दूर उनकी शिनाख़्त तक हुई है।
बैसरन घाटी पर हमला इसलिये शंका उत्पन्न कर रहा है क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त वहां 2000 से अधिक पर्यटक मौजूद थे लेकिन उनकी सुरक्षा के लिये एक भी जवान तैनात नहीं था। इसके अलावा भी बहुत सी बातें हैं जो इस ओर इशारा करती हैं कि सरकार ही नहीं, उसका समर्थक मीडिया भी घटना को तोड़-मरोड़कर भाजपा के पक्ष में पेश कर रहा है। एक बड़े टीवी चैनल के श्रीनगर स्थित संवाददाता ने जैसे ही कहा कि 'सुरक्षा सम्बन्धी बड़ी चूक के चलते यह हादसा हुआ है', एंकर ने उसकी बात को काटकर यह बताना शुरू कर दिया कि गोली चालन में दो विदेशी नागरिक भी मारे गये हैं (जबकि यह बात पहले ही सामने आ चुकी थी)। इस बड़ी खुफिया व सुरक्षा नाकामी पर सरकार से सवाल करने की बजाय गोदी मीडिया मोदी के महिमा मंडन में लगा है। बताया जा रहा है कि कैसे अब मोदी बड़ी कार्रवाई करेंगे, पाकिस्तान में भगदड़ मची है, आदि। शाह रात को श्रीनगर तथा बुधवार को घटना स्थल पर गये। सऊदी अरब का दौरा अधूरा छोड़कर मोदी लौट आये और उन्होंने दिल्ली हवाईअड्डे पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर, सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ बैठक की।
इस घटना पर इसलिये भी लोगों को संदेह है कि घटना के कुछ ही देर बाद छत्तीसगढ़ भाजपा ने एआई निर्मित एक पोस्टर जारी किया जिसमें एक महिला अपने पति के शव के पास बैठी है और लिखा गया है- 'जाति नहीं धर्म पूछा'। यह संदेश दिया जा रहा है कि हिन्दू होने के नाते वे मारे गये। साथ ही विपक्ष द्वारा जातिगत जनगणना पर भी प्रहार किया गया है। देश भर में भाजपा समर्थकों ने एक तरह से इसे अभियान की तरह सोशल मीडिया पर वायरल किया है जो बतलाता है कि इतनी संवेदनशील घटना को भी भाजपा आपदा में अवसर की तरह इस्तेमाल करेगी ताकि यह सवाल किसी को सुनाई न दे कि सुरक्षा सम्बन्धी इस गम्भीर चूक का जिम्मेदार कौन है और क्या पुलवामा की ही तरह पहलगाम हमला रहस्य बनकर रह जायेगा?


