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पद्मावती ऐतिहासिक चरित्र नहीं है: राजेश जोशी

विता संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार पा चुके कवि राजेश जोशी ने 'पद्मावती' फिल्म की रिलीज से पहले ही मध्यप्रदेश में उसे प्रतिबंधित किए जाने पर सवाल उठाया है

पद्मावती ऐतिहासिक चरित्र नहीं है: राजेश जोशी
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भोपाल। दो पक्तियों के बीच में अनलिखे शब्दों (सूनी जगह) को समझना हर किसी के बूते का नहीं है, मगर इस हुनर में माहिर और 'दो पंक्तियों के बीच' कविता संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार पा चुके कवि राजेश जोशी ने 'पद्मावती' फिल्म की रिलीज से पहले ही मध्यप्रदेश में उसे प्रतिबंधित किए जाने पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने इस बयान पर माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला किया है।

जोशी ने मंगलवार को कहा, "पद्मावती ऐतिहासिक चरित्र नहीं है, बल्कि मलिक मुहम्मद जायसी के लिखे 'पद्मावत' द्वारा पैदा किया गया काल्पनिक चरित्र है। कई बार मिथक भी सच जैसे लगने लगते हैं। इस मामले में भी ऐसा हो रहा है। राजपूत समाज को गदर करने का मौका दिया गया है, जिन्हें इतिहास व साहित्य की समझ नहीं है, वे भी इसकी पैरवी कर रहे हैं।"

जोशी ने आगे कहा, "इतिहास और मिथक में कई तरह की व्याख्या हो सकती है, जब रामायण ही 300 प्रकार से लिखी गई है तो 'पद्मावत' की भी कई तरह से व्याख्या हो सकती है। इसी तरह 'पद्मावत' की पात्र पद्मावती को अलग-अलग लोगों ने अपने तरह से वर्णित कर काल्पनिक इतिहास बनाने की कोशिश की। उसे अब सच बताया जाने लगा है, जबकि उसका इतिहास में कहीं वर्णन तक नहीं है।"

जोशी इसी क्रम में कहते हैं, "वृंदालाल वर्मा ने अपने उपन्यास में काल्पनिक किरदार झलकारी बाई का जिक्र किया था, जिसे दलितों ने अपना बना लिया, मूर्तियां गढ़ लीं। इतिहास लिख दिया। ऐसा ही कुछ पद्मावती के साथ हुआ है।"

ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 'पद्मावती' को राष्ट्रमाता बताते हुए सोमवार को ऐलान किया कि पद्मावती के जीवन और शौर्यगाथा के तथ्यों से छेड़छाड़ कर बनाई गई फिल्म का राज्य में प्रदर्शन नहीं होगा। वहीं भोपाल में रानी पद्मावती की शौर्यगाथा को प्रदर्शित करने वाला स्मारक स्थापित किया जाएगा।

जोशी ने मुख्यमंत्री चौहान के ऐलान पर सवाल उठाते हुए कहा, "संविधान ने अभिव्यक्ति का अधिकार दिया है। अब दिक्कत यह है कि सरकार ही उस अधिकार को छीनने में लग गई है। सरकार को तो फिल्म निर्माता की मदद करनी चाहिए थी। अगर यही होता रहा तो लोग फिल्म बनाने से डरने लगेंगे। फिल्म में अगर कुछ अश्लीलता है भी, तो उसे सामने लाया जाए और सेंसर बोर्ड उस पर रोक लगाए, न्यायालय उस पर फैसला करे। इस तरह सरकार का ऐलान किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है।"

जोशी कहते हैं, "देश और राज्य की राजनीति का चरित्र हो गया है कि हर मामले में आगे बढ़कर अपनी सक्रियता दिखाना है। शिवराज होते कौन हैं फिल्म पर प्रतिबंध लगाने वाले? वे राजपूत हैं नहीं.. इतिहास या साहित्य के जानकार भी नहीं हैं। उन्हें तो हर मामले में वोट बैंक नजर आता है। पिछड़ों की बात आए तो वे पिछड़े बन जाते हैं.. अब राजपूतों के मामले में राजपूतों की पैरवी कर रहे हैं। वे सिर्फ वोट पाने के लिए यह सब कर रहे हैं।"

मुक्तिबोध पुरस्कार, माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा स्मृति सम्मान, शिखर सम्मान सहित अनेक सम्मान व पुरस्कारों से नवाजे जा चुके जोशी कहते हैं, "इस देश में अरसे से कृत्रिम इतिहास गढ़ने का दौर चलता रहा है। समय आने पर वह मिथक टूटा है। आजादी से पहले राजे-रजवाड़ों की क्या भूमिका रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। 16000 पटरानियों के जौहर की बात को बड़े जोरदार तरीके से प्रचारित किया गया, मगर उसका उल्लेख इतिहास में नहीं है। यह तो पूरी तरह काल्पनिक है।"

शिवराज द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के सवाल पर जोशी ने कहा, "पहले तो शिवराज सार्वजनिक तौर पर माफी मांगें। वास्तव में उन्हें इस मामले को इतिहासकारों, विशेषज्ञों के सुपुर्द करने की बात करनी चाहिए, न कि प्रतिबंध की। वह संविधान से ऊपर नहीं हैं, वह राजनेता हैं राजनीति करें, मगर उन्हें तो हर चीज में वोट बैंक दिखाई पड़ता है।"

उन्होंने आगे कहा, "सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी प्रमाण के बिना इस तरह के फैसले ले। राज्य सरकार का फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का फैसला पूरी तरह 'मूर्खतापूर्ण' है। राज्य सरकार को अपने इस फैसले के लिए माफी मांगनी चाहिए।"


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