धान बोनस और कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जिला व ब्लाक अध्यक्षों को लेकर लगातार बैठकों का दौर जारी है

प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जिला व ब्लाक अध्यक्षों को लेकर लगातार बैठकों का दौर जारी है। कल प्रदेशाध्यक्ष पर भी रायशुमारी हुई है। अचानक ही कल से निर्वाचन पदाधिकारी रजनी पाटिल के रायपुर आकर बैठक करने से कांग्रेस में कुछ अधिक ही गहमागहमी बढ़ गई है। यद्यपि वर्तमान अध्यक्ष भूपेश बघेल अपनी पूरी ऊर्जा से प्रदेश में भाजपा के साथ दमखम के साथ टक्कर ले रहें हैं किंतु उनके जमीन घोटाले को लेकर सदस्यों के बीच खामोश आक्रोश भी है।
उनके खेती किसानी के सारे कागजात राहुल गांधी तक दिए गए हैं तथा खुद भूपेश बघेल ने अपनी सफाई दी है। उनकी सफाई के बाद ही राहुल गांधी ने उनको यथावत काम करने की सलाह दी थी तब से वे अपनी पूरी तन्मयता से प्रदेश कांग्रेस की सेवा में लगे हुए हैं। उनके नेतृत्व को लेकर फिलहाल प्रदेश में कोई धुआं भी नहीं उठा है। प्रदेश प्रभारी बीएल पुनिया शुरू में जब आए थे तभी उन्होंने यह संकेत दिया था कि 2018 का चुनाव श्री बघेल व श्री सिंहदेव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसे हरी झंडी मानकर ही लोग भूपेश बघेल के नेतृत्व में जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं।
निर्वाचन पदाधिकारी रजनी पाटिल सभी नेताओं से अलग-अलग मंत्रणा कर रहीं हैं और अभी तक भूपेश बघेल के विरोध में कोई स्वर फूटा नहीं है। फिर भी सामान्य परिस्थितियों से निर्वाचन की परिस्थितियां भिन्न होती है और तब मौन स्वर भी मुखर हो जाते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री, सांसद तथा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रहे चरणदास को भी पुन: प्रदेश बागडोर देने कहीं-कहीं बात उठ रही है। डॉ. चरणदास महंत का पिछला कार्यकाल भी बहुत जुझारू रहा तथा उनका राजनीतिक परिदृश्य भी रायपुर से लेकर दिल्ली तक काफी विस्तारित है। उनके समर्थक भी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ में फैले हुए हैं।
इसलिए कब कौन सुसुप्त अवस्था से जाग जाए और महंत को अध्यक्ष बनाने खड़ा हो जाए कह नहीं सकते। उसी तरह पूर्व मंत्री तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं विधायक सत्यनारायण शर्मा भी प्रदेशाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। भाजपा के खिलाफ इनकी सक्रियता से ही रायपुर में भाजपा को मात मिली है। इनके राजनीतिक दौर भी पुराने हैं तथा इनकी ग्रामीणोंमें अच्छी मजबूत पकड़ है।
अगर सत्यनारायण शर्मा को प्रदेश की कमान दी जाए तो कांग्रेस अपनी साख बचा भी सकती है। एक समय था जब सत्यनारायण शर्मा अविभाजित मध्यप्रदेश के समय जब राज्य में मंत्री थे तब वे एक तरह से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री कहलाते थे। पूरे छत्तीसगढ़ में उनके बिना पत्ता नहीं डोलता था। बाद में वे जोगी मंत्रिमंडल में भी शिक्षा मंत्री बने और बेहतर काम किए। फिलहाल रजनी पाटिल से लोग क्या मशविरा करते हैं यह तो वही बता पाएंगी लेकिन वर्तमान में कांग्रेस का कठिन समय है इससे इंकार नहीं किया जाना चाहिए।
फिलहाल अध्यक्ष तो सोनिया गांधी तय करेंगी। एक तरफ सत्तासीन भाजपा दल बल धन बल साथ मैदान में है और दूसरी तरफ कांग्रेस परिवार से अलग हुए अजीत जोगी की क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस भी गांव-गांव में विस्तार पा चुकी है और अब यहां हर विधानसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला बनते दिख रहा है। अगर जनता कांग्रेस ने 10 सीट भी ले लिया तो वह कांग्रेस की ही सीट होगी। इसलिए नुकसान केवल प्रदेश कांग्रेस को होगा।
भाजपा वैसे भी मिशन-65 कार्यक्रम चला रही है और राष्ट्रीय अध्यक्ष इस सिलसिले में दौरा भी कर रहें हैं। लेकिन अब एक साल का धान बोनस देने के बाद मुख्यमंत्री कह रहें हैं वे अमित शाह को 65 नहीं 66 सीट देंगे। धान बोनस का कांग्रेस राजनीतिक विरोध कर रही है। पर देखना है कांग्रेस धान बोनस से भाजपा का नुकसान कर पाएगी या नहीं।


