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उत्पाती हाथियों को रेडियो कॉलर से करेंगे काबू

डेढ़ दशक से अधिक समय से सरगुजा और इससे लगे पड़ोसी जिलों में आतंक मचा रखे उत्पाती हाथियों पर निगरानी के लिए वाइल्ड लाइफ  इंस्टट्ीयूट से दो रेडियो कॉलर मिल गए हैं

उत्पाती हाथियों को रेडियो कॉलर से करेंगे काबू
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अंबिकापुर। डेढ़ दशक से अधिक समय से सरगुजा और इससे लगे पड़ोसी जिलों में आतंक मचा रखे उत्पाती हाथियों पर निगरानी के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टटीयूट से दो रेडियो कॉलर मिल गए हैं। बनारस मुख्य मार्ग से लगे मोहनपुर इलाके में 55 हाथी भटक रहे हैं। और वाइल्ड लाइफ के दो वैज्ञानिक हाथियों में रेडियो कॉलर लगाने उनके स्वभाव का पता लगाने में जुटे हुए हैं।

ये हाथियों की दिनचर्या पर नजर रख रहे हैं। हाथियों का यह होम रेंज माना जाता है और कई महीनों से हाथी यहां डटे हुए हैं। हाथियों के लीडर को रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। एक रेडियो कॉलर की कीमत लाखों रूपए में है और इसका वनज करीब 15 किलो है। इसके बाद बाकी दल के लिए रेडियों कॉलर भेजा जाएगा।

रेडियों कॉलर लगाने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार रेडियो कॉलर लगाने हाथी को टैंक्यूलाइज किया जाएगा। हाथियों के स्वभाव का पता लगा रहे वैज्ञानिक लक्ष्मी नारायण व अंकित के अनुसार नर हाथी दल का लीडर होता है जो आगे चलता है।

मोहनपुर में इसी का पता लगा रहे हैं। बाकी दलों के स्वभाव का भी इसी तरह से पता लगा रहे हैं। रेडियो कॉलर लगाने के लिए कर्नाटक के प्रशिक्षित कुमकी हाथियों पर सवार होकर टीम वहां वाच करेगी और मौका मिलते ही उत्पाती हाथी को विशेषज्ञों द्वारा टैं्रक्यूलाइज कर उसके गले में रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। टैंक्यूलाइज करने के बाद हाथी दस मिनट तक अचेत हो जाता है और इसी दौरान रेडियो कॉलर लगाया जाएगा। रेडियो कॉलर लगाने के बाद हाथी को सामान्य स्थिति में लाने फिर से दवा का डोज दिया जाएगा और इंजेक्शन लगाते ही टीम वहां से तत्काल हट जाएगी।

अलग-अलग दल में अभी भी भटक रहे 143 हाथी- 90 के दशक में पड़ोसी राज्यों झारखंड और ओड़ीसा से कभी कभार आने वाले हाथी जब सरगुजा के ही होकर रह गए।

अलग-अलग दल में 143 हाथी भटक रहे हैं। हाथियों को रोकने के लिए इस बीच सोलर फेंसिंग जैसी दल करोड़ की योजना का अब पता नहीं है। योजना के तहत गाड़़े गए खंभे और तार गायब हैं। बनारस मुख्य मार्ग से लगा मोहनपुर हाथियों का होम रेंज माना जाता है।
यहां सोलर फेंसिंग के तार खेतों में टूटे हुए हैं। हाथी प्रभावित गांवों में समस्या इस कदर बढ़ गई है कि हाथी और वनवासियों के बीच द्वंद की स्थिति बनती जा रही है।

सहानुभूति जगाने पर काम अंबालिका-प्रतापपुर इलाके में ग्रामीणों व हाथियों द्वंद की समस्या दूर करने अंबालिका सिंह इन दिनों गांव-गांव में जाकर चौपाल लगाकर काम कर रही हैं। वे ग्रामीणों के मन में हाथियों के प्रति प्रेम एवं सहानुभूति की भावना बढ़ाने के उद्देश्य से हाथी प्रभावित क्षेत्र में काम कर रही हैं।

यूनिवर्सिटी आफ एडिनबर्ग यूके से एलएलएम इन ग्लोबल इन्वायरमेंटल एंड क्लाइमेंट चेंज लॉ की डिग्री लेने के बाद सुश्री सिंह सरगुजा वनवृत्त में मानव-हाथी संघर्ष दूर करने के साथ-साथ जैव विविधता एवं वन्य जीव संरक्षण तथा पर्यावरण विकास के लिए अध्ययन के साथ रिसर्च भी कर रही है।

हाथियों से दूरी बनाए रखते हैं मोहनपुर क्षेत्र के ग्रामीण- मोहनपुर इलाके में हाथियों पर निगरानी के लिए काम कर रहे बचाव दल के लोगों का कहना है कि इस इलाके के लोगों ने हाथियों के साथी जीना सीख लिया है। साल भर से हाथी इस इलाके में डटे हुए हैं और खास बात यह है कि न किसी की जान गई है और न ही मकानों को हाथियों ने तोड़ा है। गुरूवार की रात जंगल से लगी बस्ती में हाथी पहुंच गए और काफी देर तक बस्ती में घूमने के बाद खेत में चल गए।

हाथियों के डर से घर खाली करा दिए गए थे। हाथियों ने एक भी घर नही तोड़ा। हाथी यहां गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचा रहे है। चारा-पानी पर्याप्त मिलने के कारण हाथी यहां से नहीं निकल रहे हैं।

66 गांवों में होंगे नए प्रयोग
हाथियों पर नियंत्रण के लिए काम कर रहे सीसीएफ केके बिसेन ने बताया कि हाथियों से तत्कालीन राहत के अलावा लांब टर्म मुहिम में काम कर रहे हैं। तीन साल के लिए इसका प्लान तैयार किया गया है। उत्पाती हाथियों से प्रभावित 66 गांवों में इसकी तैयारी है। लोगों को इससे निपटने के लिए टेंऊड करने के साथ खेती के तरीके को बदला जाएगा, खेत के चारों और चाय, मिर्च, अदरक, हल्दी, टसर, बैम्बू आदि की खेती की जाएगी हाथी सबसे अधिक गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। अन्य फसलों की खेती से नुकसान को रोका जा सकेगा।

रेंज में हाथियों से होने वाले फसल नुकसान पर वन विभाग अभी हर साल 8 से 9 करोड़ रूपए खर्च कर रहा है।


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