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एक दिन में एक करोड़ फैसले, लंबित मामलों के बोझ को घटा रही हैं लोक अदालतें

हाल ही में आयोजित की गई इस साल की तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत में एक करोड़ से भी ज्यादा मामलों का फैसला किया गया.

एक दिन में एक करोड़ फैसले, लंबित मामलों के बोझ को घटा रही हैं लोक अदालतें
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राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने बताया है कि 13 अगस्त को आयोजित की गई तीसरी लोक अदालत में एक करोड़ से भी ज्यादा मामलों का फैसला किया गया. इनमें 25 लाख लंबित मामले थे और 75 लाख मामले प्री-लिटिगेशन यानी मुकदमा शुरू होने से पहले के चरण में थे.

एनएएलएसए ने यह भी बताया कि इन मामलों पर फैसला करने के सिलसिले में 90 अरब रुपये मूल्य की राशि का भी निपटारा किया गया, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत पदनामित मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के तत्वाधान में दिल्ली छोड़ कर देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ आयोजित की गई.

ललित प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. वो 27 अगस्त से मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभालेंगे. दिल्ली में भी लोक अदालत का आयोजन होना था लेकिन स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों की वजह से आयोजन स्थगित कर दिया गया.

क्या होती है लोक अदालत

लोक अदालतों की शुरुआत एक वैकल्पिक विवाद निवारण प्रक्रिया के तौर पर की गई थी. इनका तालुका, जिला, हाई कोर्ट और राज्य प्राधिकरण स्तर पर आयोजन किया जाता है. 2015 से राष्ट्रीय स्तर पर भी लोक अदालतों का आयोजन किया जा रहा है.

इनमें अदालतों में लंबित मामले या ऐसे मामले जिनमें अभी मुकदमा शुरू नहीं हुआ है उठाए जाते हैं और उन पर परस्पर सम्मति से फैसला या समझौता कराया जाता है. इन्हें वैधानिक दर्जा प्राप्त है और इनके फैसलों को एक सिविल कोर्ट का आदेश माना जाता है.

इनके फैसले अंतिम और सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी माने जाते हैं. इन फैसलों के खिलाफ कहीं अपील नहीं की जा सकती लेकिन अगर किसी को किसी फैसले से असंतुष्टि हो तो वो उपयुक्त अदालत में मुकदमे की शुरुआत कर सकता है.

लोक अदालतों में अदालती शुल्क नहीं लगताहै. बल्कि किसी अदालत में लंबित मामले पर अगर लोक अदालत में समाधान निकल आता है तो सभी पक्षों का अदालती शुल्क लौटा दिया जाता है.

गति बनाम गुणवत्ता

इन अदालतों में फैसला करने वालों को जज की जगह लोक अदालत का सदस्य कहा जाता है और इस वजह से वो सभी पक्षों को अदालत के बाहर ही मामले पर फैसला या समझौता कर लेने के लिए समझा ही सकते हैं, किसी भी तरह का दबाव नहीं डाल सकते.

लोक अदालतों के जरिए हर साल करोड़ों मामलों का समाधान किया जा रहा है. इससे पहले इस साल की दूसरी राष्ट्रीय लोक अदालत में 95 लाख से भी ज्यादा मामलों का समाधान किया गया. इसे मिला कर इस साल अभी तक दो करोड़ से भी ज्यादा मामलों का समाधान किया जा चुका है.

(पढ़ें: सांसदों, विधायकों के खिलाफ लंबित हैं करीब 5,000 आपराधिक मामले)

लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि लोक अदालतों में न्याय हो रहा है या नहीं इस पर भी ध्यान देना चाहिए. हैदराबाद स्थित नालसार विधि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति फैजान मुस्तफा ने 2021 में एक लेख में लिखा था कि लोक अदालतों को मामलों का समाधान करने की गति की जगह न्याय की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए.

उन्होंने लिखा था कि कई बार लोक अदालतों के सामने आने वाले मामलों में एक तरफ गरीब और कम पढ़े लिखे लोग होते हैं और दूसरी तरफ बड़ी बड़ी कंपनियां, बैंक, सरकारी विभाग आदि होते हैं. इन मामलों में कई बार गरीब लोगों को लंबा चलने वाले मुकदमे के डर से ऐसी शर्तों पर समझौता करना पड़ता है जो न्यायसंगत नहीं होती हैं.


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