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बाहरी श्रमिक रूक नहीं पा रहे कश्मीर, 5 अगस्त की सलाह के बाद पिछले हफ्ते ही लौटे थे

कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों को रोकने के लिए निर्माण कार्यों से जुड़े ठेकेदारों को भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही

बाहरी श्रमिक रूक नहीं पा रहे कश्मीर, 5 अगस्त की सलाह के बाद पिछले हफ्ते ही लौटे थे
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--सुरेश एस डुग्गर--

जम्मू। कश्मीर में प्रवासी श्रमिकों को रोकने के लिए निर्माण कार्यों से जुड़े ठेकेदारों को भी कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। वे उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिला रहे हैं, लेकिन उनकी बात सुनने को कोई तैयार नहीं है। 65 प्रतिशत सरकारी निर्माण कार्य ठप पड़ गए हैं। बडगाम से सुबह पांच यात्री बसें बाहरी श्रमिकों को कथित तौर पर लेकर निकली हैं। ये सभी मजदूर बताए गए हैं। श्रमिकों का कहना है कि हम तो स्थिति में सुधार की बात सुनकर यहां आए थे। जिस तरह से पुलवामा में श्रमिक को मारा गया है, ऐसे में हम यहां नहीं रह सकते। ये प्रवासी श्रमिक 5 अगस्त को सरकारी चेतावनी के बाद पलायन कर गए थे और पिछले हफ्ते ही वापस कश्मीर लौटे हैं।

फल मंडी शोपियां के प्रधान मुहम्मद अशरफ वानी ने कहा कि सेब तो हमारी अर्थव्यवस्था का मजबूत हिस्सा है। हम तो बाहरी राज्यों के ट्रांसपोर्टरों पर निर्भर हैं। जिस तरह से ट्रक चालक और सेब व्यापारी की हत्या हुई है, उससे हमारा कारोबार ठप हो गया है। यह किसी बाहरी आदमी का कत्ल नहीं है, यह हम लोगों का, हमारी तहजीब और रोजी-रोटी का कत्ल है। कोई भी ट्रक चालक अब बाग में आकर माल लेने को तैयार नहीं है।

तीन लोगों की हत्या के बाद अन्य राज्यों के श्रमिक फिर से अपने घरों को वापस लौटने लगे हैं। दरअसल, आतंकी और अलगाववादी सुधर रहे हालात से हताश हैं। माहौल बिगाड़ने के लिए वे हर तरह की साजिश कर रहे हैं।

पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 हटने के बाद हालात सुधरने पर राज्य प्रशासन ने कई तरह की पाबंदियों को हटा लिया था। इस क्रम में लैंडलाइन और हाल ही में मोबाइल पोस्टपेड सेवाओं को बहाल किया गया था। इससे यहां फिर से बाहरी श्रमिकों की आमद शुरू हो गई थी। बाहर से व्यापारी भी आने लगे थे। सितंबर की शुरुआत तक सेब का निर्यात लगभग थम सा गया था। अक्टतबर के पहले सप्ताह तक 25 फीसद तक निर्यात हो चुका है। बंद पड़ी निर्माण योजनाएं भी गति पकड़ने लगी थीं।

गत सोमवार को राजस्थान के ट्रक चालक की हत्या, बुधवार को श्रमिक और सेब व्यापारी की हत्या ने वादी का माहौल खराब कर दिया। दहशत के चलते सेब व्यापारी और ट्रक चालक बोरिया बिस्तर समेट चुके हैं। श्रमिकों ने फिर से अपने घरों का रुख कर लिया है। गर्मी के दिनों में कश्मीर में अन्य राज्यों से करीब चार से पांच लाख श्रमिक आते हैं। सर्दियों में पारा गिरने से लगभग सभी श्रमिक कश्मीर से चले जाते हैं। अमृतसर से सटे गागोमल गांव के रहने वाले कुलवंत सिंह ने कहा कि मैं यहां बीते 20 साल से लगातार आ रहा हूं। पहली बार खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा हूं।


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