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कश्मीरियों के जीवन एवं दिमाग को ठीक रखना हमारा कर्तव्य: राम माधव

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महासचिव राम माधव ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर की भूमि हज़ारों वर्षों से भारत का हिस्सा रही है

कश्मीरियों के जीवन एवं दिमाग को ठीक रखना हमारा कर्तव्य: राम माधव
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नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महासचिव राम माधव ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर की भूमि हज़ारों वर्षों से भारत का हिस्सा रही है। वहां रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति भारतीय है और उसके ‘जीवन एवं दिमाग’ को ठीक रखना ‘हमारा कर्तव्य’ है।

भाजपा के जम्मू-कश्मीर प्रभारी श्री माधव ने कल शाम ‘रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन फॉर इंटीग्रल ह्यूमनिज़्म’ के तत्वावधान में त्रैमासिक पत्रिका ‘मंथन’ के कश्मीर विशेषांक 1 और 2 का विमोचन के अवसर पर राज्य को लेकर बेलाग लपेट अपने विचार रखे। इस मौके पर जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र के श्री जवाहर कौल, जम्मू कश्मीर के निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. निर्मल सिंह तथा श्री उत्पल कौल ने भी जम्मू-कश्मीर से संबंधित विषयों पर अपने विचार साझा किये।

एक विज्ञप्ति के अनुसार श्री माधव ने कहा कि जम्मू-कश्मीर हजारों वर्षों से भारत की अविभाज्य भूमि है और यह भारत से कभी अलग नहीं होने वाला। वहां अलगाववाद 70 वर्ष और आतंकवाद 30 वर्ष पुराना है लेकिन जम्मू-कश्मीर का इतिहास हजारों वर्ष का है। कश्मीर जिससे देश तथा समाज का मन जुड़ा हुआ है उसके सही इतिहास को लोगों के सामने लाना बहुत महत्वपूर्ण काम है। कश्मीर की भूमि कश्यप ऋषि से लेकर कल्हण कवि तक, कम्बोज रिपब्लिक से लेकर महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य तक इतिहास में भारत का अभिन्न अंग रही है।

श्री माधव ने कहा, “कोई यह न समझे कि जम्मू-कश्मीर किसी की कृपा से 1947 में भारत में शामिल हुआ। कश्मीर की भूमि ही नहीं वहां का एक-एक नागरिक भी हमारा है, उसका जीवन और दिमाग ठीक रखना भी हमारा कर्तव्य है। अगर वो गलत कर रहा है तो उसे ठीक करना होगा, आज हम उसी प्रयास में लगे हुए हैं।” उन्होंने कहा कि मांग करने का अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को है लेकिन वह संविधान के दायरे के अंतर्गत होनी चाहिए। आतंकवादी चाहे पाकिस्तान का हो या कश्मीर का, आतंकवादी ही है, दोनों के साथ एक सी कार्रवाई होनी चाहिए तथा कश्मीर के लोगों को आश्वासन देना होगा कि भारत उनके साथ खड़ा है।

उन्होंने कहा, “हमने सरकार इसलिए बनाई क्योंकि जम्मू-कश्मीर हमारा है, इतने वर्षों से जम्मू-कश्मीर के लिए देश लड़ रहा है लेकिन इसके लिए कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। जम्मू-कश्मीर की जनता को वापस देश की मुख्यधारा से जोड़ने का एक अवसर अब मिला था लेकिन जब लगा कि इस विचार को लेकर सफलता नहीं मिल रही तो वहां की सत्ता छोड़ने में एक क्षण भी नहीं लगाया। कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद इतने लम्बे काल तक इसलिए चलता आ रहा है क्योंकि किसी राष्ट्रवादी दल की वहां सरकार नहीं थी। हमने वहां सरकार छोड़ी है लेकिन जम्मू-कश्मीर नहीं। अपने पुरुषार्थ से जम्मू-कश्मीर के पुनरुद्धार के प्रयास जारी रखेंगे।

मंथन पत्रिका के विशेषांक के अतिथि संपादक श्री कौल ने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि अब जम्मू-कश्मीर को जानने का मानक केवल राजनीति ही रह गई है। आज आवश्यकता इस बात की है कि वहां के बारे में ज्यादा से ज्यादा तथ्यपरक जानकारियां एकत्र करें। उन्होंने कहा कि एक समय कश्मीर घाटी धर्म, पंथ, विचारधारा, साहित्य, कला की प्रयोगशाला हुआ करती थी। ऐसा वहां पहले कभी नहीं हुआ हुआ था कि दो समुदायों के बीच शास्त्रार्थ हो रहा हो और दोनों में असहमति के कारण द्वेष फैला या हिंसा हुई हो। विचार एवं मतभिन्नता को शास्त्रों के अनुसार परखने के बाद जो सामने आया, उसको सबने सदैव स्वीकार किया लेकिन आज यह धारणा बन गई है कि इस राज्य में हिंसा के अतिरिक्त कुछ नहीं बचा। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का असली चेहरा अब भी खोया नहीं है, वहां कई लोग है जो कश्मीर के वर्तमान हालात से खुश नहीं हैं। कश्मीरी समाज डरा हुआ है, बंदूक के साये में वहां के वर्तमान हालात के साथ उन्होंने समझौता कर रखा है।

डॉक्टर निर्मल सिंह ने कहा कि महाराजा हरिसिंह की भूमिका जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है और उन्हीं के साथ सबसे ज्यादा ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। वर्ष 1932 में महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर में हरिजनों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दिलवायी और बाल विवाह समाप्त करने के लिए शारदा अधिनियम भी उन्होंने ही बनाया था। मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्हें जबरन स्कूल भेजने की व्यवस्था करवायी, उनके लिए विद्यालयों में कुरान को भी पाठ्यक्रम में शामिल करवाया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को अंग्रेजों के चंगुल से बचाने के लिए ही महाराजा हरि सिंह ने 1927 में जम्मू-कश्मीर में स्टेट सब्जेक्ट की अवधारणा दी थी लेकिन देश स्वतंत्र होने के बाद अलगाववादियों ने इसे गलत अर्थ देकर कश्मीर को भारत से अलग करने के प्रयासों में इस्तेमाल किया।


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