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अंगदान कर मृत बच्ची बनी 'आशा की किरण'

यहां 13 साल की एक लड़की की बिमारी से मौत होने के बाद उसके माता-पिता ने अपनी बेटी के अंगदान का फैसला लिया, जिससे आंतरिक अंगों के काम न करने से पीड़ित चार मरीजों की जान बची

अंगदान कर मृत बच्ची बनी आशा की किरण
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चंडीगढ़। यहां 13 साल की एक लड़की की बिमारी से मौत होने के बाद उसके माता-पिता ने अपनी बेटी के अंगदान का फैसला लिया, जिससे आंतरिक अंगों के काम न करने से पीड़ित चार मरीजों की जान बची। इन चार में से एक मरीज मुंबई का है, जबकि तीन का इलाज यहां पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में किया गया।

प्रत्यारोपण के बाद प्राप्त कॉर्निया यहां दो कॉर्नियल नेत्रहीन रोगियों की दृष्टि बहाल करेगा।

पीजीआईएमईआर के निदेशक जगत राम ने दाता परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, "यह एक अत्यंत कठिन निर्णय है, लेकिन दाता परिवार आशा की किरण हैं, अंग विफलता रोगियों के अंधेरे जीवन में एक चांदी की परत है। उनके उदार उपहारों से हर साल सैकड़ों लोगों को जीने का दूसरा मौका मिलता है।"

निदेशक ने आगे साझा किया, "साथ ही, हम ब्रेन डेथ सर्टिफिकेशन कमेटी, ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर, टेस्टिंग लैब, इलाज करने वाले डॉक्टरों और विशेष रूप से इंटेंसिविस्ट से प्रक्रिया में शामिल पीजीआईएमईआर की पूरी टीम की प्रतिबद्धता को कम नहीं आंक सकते। अंगों के इष्टतम उपयोग के लिए सर्वोत्तम स्थिति में संभावित दाता और प्रत्यारोपण सर्जन जो अपने कौशल और तालमेल से बहुमूल्य जीवन बचाते हैं।"

यह 8 जुलाई का सबसे घातक दिन था, जब चंडीगढ़ की डोनर गर्ल सेरेब्रल एडिमा के कारण बेहोश हो गई और उसे सेक्टर-16 के सरकारी मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल ले जाया गया। हालांकि, स्थिति बिगड़ने के कारण, उसे बेहद गंभीर स्थिति में पीजीआईएमईआर में स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन 10 दिनों के संघर्ष बावजूद परिवार और डॉक्टरों के सभी प्रयास छोटी लड़की का जीवन नहीं बचा पाए। बाद में 18 जुलाई को उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।

जब यह स्पष्ट हो गया कि लड़की कॉमा की स्थिति से बाहर नहीं निकलेगी, तब पीजीआईएमईआर के प्रत्यारोपण समन्वयकों ने दुखी पिता से अनुरोध किया कि क्या वह अंगदान पर विचार कर सकते हैं? दृढ़निश्चयी पिता ने अपार धैर्य दिखाया और अंगदान के लिए सहमति व्यक्त की।

मृत घोषित लड़की के पिता अपनी व्यक्तिगत भावनाओं के कारण अपनी पहचान गुमनाम रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "यह ऐसी चीज है, जिससे किसी परिवार को नहीं गुजरना चाहिए। हमने अंगदान के लिए 'हां' कहा, क्योंकि हम जानते थे कि यह किसी और की मदद कर सकता है और उन लोगों को दिल के उस दर्द से नहीं गुजरना पड़ेगा, जिससे हम गुजरे। हम जानते थे कि यह करना सही है।"

उन्होंने कहा, "हम सिर्फ यह चाहते हैं कि लोग कारण के बारे में जानें और यह किसने किया, यह जानने की क्या जरूरत है। हमने ऐसा किया है, ताकि हमारी बेटी दूसरों के माध्यम से जीवित रहे। हमने इसे अपनी शांति और सांत्वना के लिए किया है। हमें उम्मीद है कि हमारी बेटी की कहानी उन परिवारों को प्रेरित करेगी, जो खुद को ऐसी ही स्थिति में पाते हैं।

पीजीआईएमईआर के अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक और रोटो (उत्तर) के कार्यवाहक नोडल अधिकारी अशोक कुमार ने ताजा मामले के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, "चूंकि दाता परिवार चाहता था कि उनकी बेटी दूसरों में जीवित रहे, उनकी इच्छा का सम्मान करना हमारा नैतिक कर्तव्य बन गया। परिवार की सहमति से हमने उसका दिल, लीवर, किडनी और कॉर्निया सुरक्षित कर लिया।"

"एक बार अंगदाता उपलब्ध हो जाने के बाद, हर कोई तेजी से कार्रवाई में लग गया, यह सुनिश्चित करने में कोई कसर न रहे कि दाता की विरासत संरक्षित रहे। चूंकि क्रॉस-मैचिंग ने पीजीआईएमईआर में दिल के लिए कोई मिलान प्राप्तकर्ता नहीं दिखाया, इसलिए हम तुरंत अन्य प्रत्यारोपण अस्पतालों के संपर्क में आए। प्राप्तकर्ताओं के मिलान के विकल्प और अंत में, नोटो के हस्तक्षेप के साथ, सर एचएन रिलायंस अस्पताल, मुंबई को हृदय आवंटित किया गया।"

मामले के लिए बनाए गए ग्रीन कॉरिडोर के बारे में विस्तार से बताते हुए, कुमार ने कहा, "काटे गए अंगों के सुरक्षित और तेज परिवहन को सुनिश्चित करने के लिए, पीजीआईएमईआर से चंडीगढ़ के तकनीकी हवाईअड्डे तक पुनप्र्राप्ति समय के साथ लगभग सुबह 6.35 बजे एक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। मुंबई के लिए आगे की उड़ान से बच्ची का हृदय भेजा गया।"


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