विपक्षी एकता और जातिगत जनगणना ही है साम्प्रदायिकता का जवाब
देश कहां जाएगा बताना मुश्किल है। कश्मीर की स्थिति फिर खराब कर दी है। पंजाब में बंद हो गया खालिस्तान का मामला फिर सिर उठाने लगा है

- शकील अख्तर
देश कहां जाएगा बताना मुश्किल है। कश्मीर की स्थिति फिर खराब कर दी है। पंजाब में बंद हो गया खालिस्तान का मामला फिर सिर उठाने लगा है। दक्षिण में, उत्तर-पूर्व में सब जगह बैचेनी है। और बाकी देश जो शांत रहता था वहां धार्मिक और जातिगत भेदभाव बढ़ाने के रोज नए प्रयोग हो रहे हैं। उद्देश्य एक है। केवल और केवल चुनाव जीतना।
बाकी सवाल आप चाहे जो करते रहो बीस हजार करोड़ या पुलवामा, उसको मीडिया जनता तक जाने ही नहीं देगा! चीन की घुसपैठ, कोरोना की मौतें, नोटबंदी,गलत जीएसटी, बेरोजगारी, महंगाई,मजदूरों का पैदल चलना, किसान आंदोलन, सेना में ठेके पर भर्ती किसका असर हुआ? सब दबा दिया गया।
मगर ये विपक्षी एकता और जाति जनगणना नहीं दबा पाएंगे। विपक्ष को बस यह दो मुद्दे याद रखना चाहिए। इन्हीं दोनों से घबराकर यह सारे रिएक्शन हो रहे हैं। माफिया डान अतीक मारा जाएगा इसकी घोषणा तो टीवी एंकरों ने मुख्यमंत्री के सामने कर दी थी। बस कैसे का ही सवाल था। उसका जवाब मिल गया। टीवी पर लाइव। हथकड़ी लगाए, पुलिस से घिरे भारी खतरनाक दो अपराधियों के सिर पर हत्यारे कैसे पहुंचे। यह सवाल नहीं सवाल यह है कि क्यों पहुंचे?
मारने! मरना तो तय था। मगर उसे इस तरह दिखाना था लाइव कि संदेश दूर-दूर तक जाए। क्या है संदेश! उन्माद फैलाना। ध्रुवीकरण। दोनों तरफ का। कर्नाटक में चुनाव हैं। भाजपा के लिए जितना महत्व गुजरात का है उससे कम कर्नाटक का नहीं। आर्थिक रूप से उन्नत प्रदेश तो है ही दक्षिण का द्वार भी है। और समय ऐसा है कि इसके बाद तीन और राज्यों में सीधे कांग्रेस से मुकाबला होना है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान। जो कर्नाटक जीतेगा वह यहां से निर्णायक बढ़त लेकर जाएगा। 2024 तक। लोकसभा चुनाव तक कर्नाटक का टॉनिक काम करता रहेगा।
कांग्रेस यहां लाभ की स्थिति में है। भाजपा से टूट कर लोग आ रहे हैं। हालांकि कांग्रेस में इसका भारी विरोध हो रहा है। खासतौर से महिला कांग्रेस में। भाजपा के उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी जो विधानसभा में ब्लू फिल्म देखते हुए पकड़े गए थे। उनके खिलाफ कर्नाटक की महिला कांग्रेस ने बड़ा प्रदर्शन किया था। उन्हें ब्लू बॉय कहा था। कांग्रेस ने न केवल उन्हें ले लिया बल्कि टिकट भी दे दिया। खैर यह अलग विषय है। मगर कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति काफी अच्छी है। लेकिन भाजपा के पास हिन्दू-मुसलमान का एक ऐसा तुरुप का इक्का है जो हमेशा चल जाता है। अभी भी कई दिनों से टीवी पर कब्र, एनकाउंटर, जनाजा और अब लाइव हत्या दिखाकर यही करने की कोशिश की जा रही है। कर्नाटक पहले से ही हिजाब और हलाल के मुद्दों में उलझा रखा था। और अब इसमें अतीक और उसके भाई, बेटे को इस तरह मारकर तड़का लगाने की कोशिश की जा रही है।
लोगों की शांति और संयम ही इसका जवाब है। जनता अपने रोजमर्रा के सवालों काम धंधा न होने और आग लगाती महंगाई पर बात करना चाहती है। मगर सरकार टीवी के जरिए केवल हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा चलाना चाहती है। टीवी किसी और मुद्दे को यहां तक कि पुलवामा में मारे गए हमारे वीर जवानों पर भी बात करने को तैयार नहीं है। ऐसे में विपक्ष को सोचना होगा कि वह हिन्दू-मुसलमान मुद्दे को काउंटर कैसे करे?
इसका इलाज वही है कि देखें सत्ता पक्ष सबसे ज्यादा किससे घबरा रहा है। चीन, बीस हजार करोड़, नोटबंदी, किसान, पुलवामा किसी का असर नहीं हुआ। एक तो जनता तक पहुंचे नहीं। दूसरे पहुंचे भी तो वह हिन्दू-मुसलमान के नशे में इतनी चूर है कि उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन जैसे ही वह विपक्षी एकता की बात सुनती है। उसके मन में कुलबुलाहट होने लगती है। सत्ता परिवर्तन की उम्मीद उसे दिखने लगती है। नशा टूटता है। और फिर जब जातिगत जनगणना की बात सुनती है तो धर्म का नशा पूरी तरह काफूर हो जाता है। उसे जातिगत आधार पर अपने साथ होने वाला भेदभाव याद आने लगता है। और इसमें यह भी कि भेदभाव का कोई संबंध उस मुसलमान से नहीं है जिसे अपना दुश्मन समझकर वह लड़ती जा रही थी।
जातिगत जनगणना के साथ उसे मंडल आने के बाद नौकरी में और सबसे ज्यादा उसके बच्चों को उच्च शिक्षा में मिले आरक्षण के फायदे याद आने लगते हैं। और क्या-क्या सुविधाएं मिल सकती हैं जिनसे सामाजिक भेदभाव की वजह से वह और उसके पुरखे वंचित रहे यह भी याद आ जाता है। फिलहाल धर्म की राजनीति का तोड़ और कोई नहीं दिखता। यह दो मुद्दे विपक्षी एकता और जातिगत जनगणना ही ऐसे हैं जो सत्तापक्ष की हिन्दू-मुसलमान राजनीति की हवा निकाल सकते हैं।
विपक्ष ने अच्छा कहा और सही कहा कि अतीक को कानून सज़ा देता। सब यह चाहते थे। किसी एक ने भी उसके अपराधों का समर्थन नहीं किया। लेकिन कानून व्यवस्था का यह हाल कि तीन लड़के आकर पुलिस के बीच में कनपटी पर पिस्तौल रखकर चला दें। नारे लगाएं और लगातार फायरिंग करते रहें। सवाल यही उठाए जा रहे हैं कि सत्तापक्ष के नेता जिस तरह इसका समर्थन कर रहे हैं! वह हत्या के समर्थन से ज्यादा संविधान और कानून को न मानने का ऐलान है।
कौन नहीं जानता कि पिछले 9 सालो में हिंसा ज्यादा बढ़ी है। अपराध पहले भी होते थे। लड़ाई झगड़े भी। मगर अब उनमें क्रूरता और घृणा ज्यादा आ गई है। खासतौर पर दलित, महिला, पिछड़ों के मामले में। नफरत का जहर जब फैलता है तो वह किसी को नहीं छोड़ता। सवर्णों के आपसी झगड़ों में भी जूते पर थूक कर चटवाना, खंबे से बांधकर मर जाने तक मारना, मध्यप्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष, सवर्णों में टाप ब्राह्मण की पत्नी द्वारा एक मेडिकल स्टोर वाले द्वारा रात को दवा दे देने और उसके बारे में सावधानियां बताने के लिए धन्यवाद करने पर हुई भयानक ट्रोलिंग, क्योंकि मेडिकल वाला मुसलमान था, से लेकर सुषमा स्वराज केन्द्रीय मंत्री 2014 से पहले तक भाजपा की टाप नेता को बाल पकड़कर घसीटने-मारने तक की सज़ा का सुझाव उनके पति को देने जैसे कई उदाहरण हैं जो क्रूरता और घृणा की हद से बाहर निकल जाने को बताते हैं। इसे रोका नहीं जा रहा। हिंसा और घृणा रोकना है तो प्रेम फैलाओ। वह अपने आप नफरत को रोक देगा। मगर टीवी, व्हाट्सएप से और ज्यादा कोशिशें हो रही हैं कि क्रूरता और बढ़े। बच्चों तक में इसका असर फैल जाए। और फैल भी गया। पहले दिल्ली के बड़े स्कूल में एक छह साल की बच्ची ने उसी उम्र की दूसरी बच्ची से उसका धर्म पूछकर उसके मुंह पर थूक दिया। दूसरे इन्दौर में एक 8-10 साल के बच्चे को इसी उम्र के उसके दोस्त पूरे कपड़े उतारकर मारते हैं और नारे लगवाते हैं।
देश कहां जाएगा बताना मुश्किल है। कश्मीर की स्थिति फिर खराब कर दी है। पंजाब में बंद हो गया खालिस्तान का मामला फिर सिर उठाने लगा है। दक्षिण में, उत्तर-पूर्व में सब जगह बैचेनी है। और बाकी देश जो शांत रहता था वहां धार्मिक और जातिगत भेदभाव बढ़ाने के रोज नए प्रयोग हो रहे हैं।
उद्देश्य एक है। केवल और केवल चुनाव जीतना। विपक्ष की समझ में आया कि अलग -अलग कोई नहीं लड़ सकता। और चुनाव लड़ने और जीतने की बात तो अलग, उससे पहले जेल से कौन बचेगा? वे एक हो रहे हैं। लेकिन सिर्फ एकता से काम नहीं चलेगा। चुनाव का अजेन्डा भी चाहिए। ऐसा जो धर्म के अजेन्डे का काट कर सके।
धर्म के खिलाफ सामाजिक बराबरी, सम्मान और न्याय का अजेन्डा। यह दोनों ही विपक्ष को ताकतवर बनाएंगे। और इसी से भाजपा और संघ की नफरत और विभाजन की राजनीति का अंत होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


