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स्टेच्यू आफ यूनिटी का विरोध

गुजरात में एक समय था, जब नरेन्द्र मोदी को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा जाता था,  पर अब हालात बदल चुके हैं

स्टेच्यू आफ यूनिटी का विरोध
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नई दिल्ली। गुजरात में एक समय था, जब नरेन्द्र मोदी को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा जाता था, पर अब हालात बदल चुके हैं। मोदी के पोस्टर ना सिर्फ फाड़े जा रहे हैं, बल्कि उन पर कालिख भी पोती जा रही है। हालात यह है, कि पोस्टर की सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, दूसरी तरफ इस पोस्टरों पर सरदार पटेल का स्थान आदिवासी नेता बिरसा मुंडा ने ले ली है। विरोध करने वाले आदिवासी हैं, जो नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्टेच्यू आफ यूनिटी कर रहे हैं।

गुजरात के आदिवासी इलाके में सरकार को जिस तरह की चुनौती मिल रही है, उसके सरकार परेशान है। इस मूर्ति का अनावरण 31 अक्टूबर को होना है और विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। आज इन आदिवासियों को अपना समर्थन देने गुजरात विधायक छोटूभाई वसावा भी पहुंचे। सरकारी अधिकारियों की मांने तो पूरे जिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सरदार पटेल के जितने भी पोस्टर थे, उनमें से 90 फीसदी या तो फाड़ दिए गए हैं या फिर उन पर कालिख पोत दी गई।

आदिवासी नेता प्रफुल वसावा ने कहा, "यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जनजातीय समुदाय भाजपा से कितना असंतुष्ट है। उन्होंने जनजातीय समुदाय के सबसे बेशकीमती संसाधन उनकी जमीनों को कथित विकास कार्यों के लिए छीन लिया।" उन्होंने कहा, "अधिकारियों ने फटे पोस्टरों को नए पोस्टर से बदल दिया है और पुलिस इन पोस्टरों की सुरक्षा कर रही है। यह दुनिया में शायद पहली बार हो रहा है कि किसी प्रधानमंत्री के पोस्टरों की सुरक्षा पुलिस द्वारा की जा रही है।" उन्होंने कहा, "नर्मदा के जनजातीय समूह 2010 से इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं और अब पूरे प्रदेश की जनता इसके विरुद्ध है।"

वसावा ने कहा, "जनजातीय के रूप में सरकार ने हमारे अधिकारों का हनन किया है। गुजरात के महान सपूत के खिलाफ हमारा कोई विरोध नहीं है। सरदार पटेल और उनकी इज्जत बनी रहनी चाहिए। हम विकास के भी खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह परियोजना हमारे खिलाफ है, क्योंकि इसे बनाने के लिए आदिवासियों के संसाधनों पर कब्जा किया गया है।"


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