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आतंकी ठिकानों को तबाह करने के बाद पूरा हुआ 'ऑपरेशन सिंदूर' : तुहिन सिन्हा

ऑपरेशन सिंदूर को भाजपा प्रवक्ता तुहिन सिन्हा ने देश के लिए निर्णायक और ऐतिहासिक जीत बताया है

आतंकी ठिकानों को तबाह करने के बाद पूरा हुआ ऑपरेशन सिंदूर : तुहिन सिन्हा
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मुंबई। 'ऑपरेशन सिंदूर' को भाजपा प्रवक्ता तुहिन सिन्हा ने देश के लिए निर्णायक और ऐतिहासिक जीत बताया है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य पूरा हो चुका है। भारतीय सेना ने ऐसे आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया है, जिसमें वे सीमा के उस पार फल-फूल रहे थे। उन्होंने कहा कि इन आतंकवादियों ने पिछले 30 साल में देश में न जाने कितने आतंकवादी हमले को अंजाम दिया है।

भाजपा प्रवक्‍ता तुहिन सिन्हा ने कहा कि इन आतंकवादी हमलों में हजारों भारतवासियों की जान गई थी। ऑपरेशन सिंदूर में आतंक के नौ ठिकानों को भारतीय सेना ने तबाह किया है। इस हमले में 100 से अधिक आतंकवादियों की मौत हुई है।

उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान के आतंकवादी हमले में जवाबी कार्रवाई करते हुए उसे सबक सिखाना जरूरी था। भारत की कार्रवाई में पाकिस्‍तान को जबरदस्‍त नुकसान हुआ है। 'ऑपरेशन सिंदूर' का उद्देश्‍य पूरा हुआ जो बहुत बड़ी सफलता है। पाकिस्‍तान ने अमेरिका से गुहार लगाई और आननफानन में सीजफायर पर फैसला लिया गया। इसे भारत की जीत के रूप में ही देखा जाएगा। सरकार ने तय किया है कि भारत की जमीन पर अगर कोई आतंकवादी हमला होता है तो उसे एक्‍ट ऑफ वॉर के रूप में देखा जाएगा और कड़ी कार्रर्वाई की जाएगी। 'ऑपरेशन सिंदूर' का उद्देश्‍य पूरा हो गया है।

संसद सत्र बुलाने के सवाल पर उन्‍होंने कहा कि जब समय अनुकूल होगा तो संसद सत्र भी बुलाया जाएगा। अब तक दो सर्वदलीय बैठकें हो चुकी हैं, सरकार विपक्ष को सारी सूचनाएं दे रही है। सरकार विपक्ष के साथ सलाह करके आगे बढ़ रही है। उन्‍होंने दुख जताते हुए कहा कि शनिवार शाम जैसे ही सीजफायर की घोषणा हुई, कांग्रेस के नेताओं ने अपनी "ओछी राजनीति" शुरू कर दी और इस ऑपरेशन की तुलना साल 1971 से करने लगे। उन्हें इस बात की भी जानकारी नहीं है कि 1971 और 2025 में जमीन-आसमान का अंतर है। साल 1971 की लड़ाई पूर्वी पाकिस्तान की स्‍वतंत्रता के लिए लड़ी गई थी।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी इंदिरा गांधी नहीं हो सकते, इंदिरा गांधी ने 93 हजार पाकिस्‍तान के सैनिक, जो हमारी जेलों में बंद थे, उन्हें आसानी से छोड़ दिया था। वह सही समय था, जब इंदिरा गांधी उस मजबूत स्थिति में थीं कि अगर वह चाहतीं तो पीओके वापस आ सकता था। लेकिन उन्‍होंने वह मौका गंवा दिया।


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