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‘भविष्य’ की खातिर प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका की खींचतान

चीन और अमेरिका दोनों प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए पूरी मशक्कत कर रहे हैं.

‘भविष्य’ की खातिर प्रशांत क्षेत्र में चीन और अमेरिका की खींचतान
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अमेरिका की उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन ने कहा है कि उनका देश प्रशांत क्षेत्र में अपने निवेश को दोगुना करने जा रहा है. क्षेत्र की पांच दिन की यात्रा पूरी करते हुए मंगलवार को न्यूजीलैंड में शरमन ने एक समझौते पर दस्तखत किए. इस दौरान उन्होंने कहा कि भविष्य प्रशांत क्षेत्र में लिखा जाएगा.

पिछले कुछ महीनों में अमेरिका ने प्रशांत क्षेत्र में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. ऐसा चीन की बढ़ी सक्रियता के जवाब में किया जा रहा है. पिछले महीने ही सोलोमन में अपना दूतावास दोबारा खोलने की योजना का ऐलान किया था. सोलोमन ने अप्रैल में चीन के साथ एक रक्षा समझौता किया था जिस पर अमेरिका और उसके क्षेत्रीय सहयोगी ऑस्ट्रेलिया ने चिंता जताई थी.

रविवार को शरमन सोलोमन में थी जहां उन्होंने ‘ग्वादल नहर की लड़ाई' की स्मृति में आयोजित एक समारोह में हिस्सा लिया था. हालांकि सोलोमन के प्रधानमंत्री मनासे सोगावारे के इस समारोह में ना आने को लेकर हलकों में हैरत देखी गई. इस बारे में शरमन ने कहा कि इसका उन्हें खेद है. उन्होंने कहा, "मुझे उनके लिए खेद है कि उन्होंने उस मजबूत साझेदारी और स्वतंत्रता के लिए लड़े गए उस युद्ध को याद करने का मौका खो दिया जिसकी वजह से आज सोलोमन आइलैंड्स का वजूद कायम है.”

सोमोआ, टोंगा, सोलोमन और ऑस्ट्रेलिया के बाद अपने दौरे के अंतिम पड़ाव न्यूजीलैंड में मंगलवार को शरमन ने कहा कि अमेरिका हमेशा से प्रशांत क्षेत्र का देश रहा है. उन्होंने कहा कि दुनियाभर में पुराने रिश्तों को दोबारा मजबूत करना और नए संबंध बनाना राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्राथमिकता है और उनके अधिकारी प्रशांत क्षेत्र के साथ सहयोग का हर रास्ता अपना रहे हैं. शरमन ने कहा, "इसलिए, हम यहां प्रशांत क्षेत्र में अपना निवेश दोगुना कर रहे हैं.”

चीन बनाम अमेरिका

जब शरमन से पत्रकारों ने पूछा कि इस इलाके में प्रभाव की लड़ाई चीन जीत रहा है या अमेरिका तो उन्होंने कहा कि वह इस मसले को इस तरह नहीं देखतीं. शरमन ने कहा, "यह कोई लड़ाई नहीं है. मुझे लगता है कि कोई भी देश हर उस देश के साथ संबंध बनाने की कोशिश करता है जो उसे आगे बढ़ने में सहायक हो सके. अमेरिका किसी देश को हममें या चीन में से, या फिर हममें से और किसी अन्य देश में से किसी एक को चुनने के लिए नहीं कहता.”

अमेरिकी उप विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका बराबरी का मुकाबला और उस अंतरराष्ट्रीय नियम आधारित व्यवस्था का सम्मान चाहता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित की गई थी और जिसने चीन को बड़ा बनने में मदद की. उस व्यवस्था का लाभ सभी देशों को मिलना चाहिए.

यह भी पढ़ेंः ताइवान के चारों तरफ सैन्य अभ्यास जारी रखेगा चीन

शरमन ने कहा कि चीन के बारे में उन्होंने न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डर्न से भी चर्चा की है. दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष अभियानों और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में ज्यादा सहयोग से काम करने को लेकर समझौते हुए.

चीन और दक्षिण कोरिया आए करीब

जिस वक्त वेंडी शरमन प्रशांत क्षेत्र में पुराने सहयोगियों से संबंधों की मजबूती की बात कर रही थीं, लगभग उसी वक्त अमेरिका का करीबी सहयोगी दक्षिण कोरिया चीन के साथ संबंधों को मजबूत करने के समझौतों पर दस्तखत कर रहा था. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विदेश नीति के सामने दक्षिण कोरिया के लिए अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाने को लेकर खासी मुश्किल पेश आ रही है.ताइवान विवाद का बढ़ जाना इस मुश्किल की आग में घी जैसा साबित हुआ है.

मंगलवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने चीनी शहर किंगदाओ में दक्षिण कोरियाई विदेश मंत्री पार्क जिन से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद अलग-अलग बयानों में दोनों देशों ने कहा कि तीन दशक पुराने व्यवसायिक संबंधों को आधार बनाते हुए भविष्य में सहयोग बढ़ाया जाएगा. दोनों देश सप्लाई चेन को टूटने देने से बचाने के लिए संवाद बढ़ाने पर राजी हुए. साथ ही उप मंत्री व राजनयिक अधिकारियों के स्तर पर नियमित ‘दो+दो' बातचीत पर भी सहमति बनी.

मार्च में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति बने यून सुक योल उत्तर कोरिया से परमाणु खतरे को देखते हुए अमेरिका और जापान के साथ रक्षा संबंध मजबूत बनाने के पक्षधर हैं. लेकिन चीन उत्तर कोरिया पर ज्यादा प्रभाव रखता है और दक्षिण कोरिया का सबसे बड़ा निर्यात साझीदार भी है. लेकिन, चीन जापान को अपने प्रतिद्वन्द्वी के तौर पर देखता है और अमेरिका से भी उसके संबंध तनावपूर्ण हैं.

ताइवान में विवाद को जन्म देने के बाद अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी दक्षिण कोरिया गई थीं लेकिन तब यून छुट्टी पर थे और उन्होंने पेलोसी से फोन पर ही बात की. इस बात को लेकर उनकी आलोचना भी हुई कि वह जानबूझ कर पेलोसी से मिलने से बच रहे थे ताकि चीन के साथ संबंधों पर कोई आंच नहीं आए.


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