जातिगत जनगणना ही करेगी हिन्दू- मुसलमान राजनीति का मुकाबला!
जातिगत जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिससे भाजपा सबसे ज्यादा घबराई हुई है

- शकील अख्तर
बिहार अभी भी कई मामलों में लीड कर रहा है। इस तरह से झूठी खबरों के खिलाफ तो कर ही रहा है। जातिगत जनगणना में भी उसी ने पहल की थी। हाईकोर्ट से रोक लगी मगर फिर नीतीश कुमार और तेजस्वी की सरकार ने उसके खिलाफ लड़ कर उसे हटवाया और जातिगत जनगणना का काम फिर शुरू हो गया।
जातिगत जनगणना एक ऐसा मुद्दा है जिससे भाजपा सबसे ज्यादा घबराई हुई है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल एक बार इसकी मांग उठाने के बाद फिर चुप हो गए हैं। इसकी शुरूआत राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव में की थी। और देश में एक माहौल बना और राजनीतिक रूप से कर्नाटक में कांग्रेस को फायदा हुआ वह जीती। लेकिन उसके बाद कांग्रेस इसे भूल गई है। राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने कहा कि वह जातिगत जनगणना करवाएगी मगर अभी तक उसकी कोई शुरूआत नहीं की है।
कांग्रेस को और नए बने विपक्षी गठबंधन इंडिया को समझ लेना चाहिए कि किसी मुद्दे को आधे अधूरे मन से उठाने से कोई फायदा नहीं होता है। उल्टे नुकसान की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। क्योंकि विरोधी तो आपके खिलाफ हो ही जाते हैं। लेकिन उससे सहमत लोग आपकी दुविधा की वजह से पूरी तरह आपके साथ नहीं आते हैं।
31 अगस्त और एक सितम्बर को मुबंई में होने वाली 26 विपक्षी दलों की तीसरी बैठक में संयोजक का चुनाव और 11 सदस्यीय संचालन समिति की घोषणा का तो एक औपचारिक महत्व है। असली बात वह माहौल बनाना है जिससे जनता हिन्दूृृ-मुसलमान के जाल से निकलकर बाहर आए। पिछले 9 साल में जो हिन्दू- मुसलमान का नशा करवाया गया है उसका तोड़ जातिगत जनगणना ही है। कमंडल का जवाब मंडल की तरह।
मुबंई में अगर इंडिया ने जातिगणना जनगणना का मुद्दा उठा दिया और सरकार बनने की दशा में इसका आदेश सबसे पहले निकालने की घोषणा कर दी तो फिर भाजपा का कोई हिन्दू-मुस्लिम अजेंडा नहीं चल पाएगा। सीधा प्रस्ताव पास करना है कि इंडिया की सरकार बनने पर कैबिनेट की पहली बैठक में जातिगत जनगणना करवाने का आदेश पारित किया जाएगा।
देखिए इस प्रस्ताव के पास होते ही कैसे माहौल बदलता है। साम्प्रदायिकता का सारा नशा काफूर हो जाएगा। पिछड़े दलित आदिवासी को जैसे ही अपने अधिकार मालूम होंगे वह अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए खड़ा हो जाएगा। आज तो उसे बेरोजगारी, महंगाई, सरकारी शिक्षा, सरकारी चिकित्सा खत्म होने का कोई अहसास ही नहीं है। वह तो नफरत की आग में जल रहा है। मणिपुर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। नफरत और विभाजन की आग जलते साढ़े तीन महीने हो गए। प्रधानमंत्री नहीं गए तो नहीं गए।
आग कैसे बुझेगी? इस पर कोई बात नहीं। मीडिया तो पूछ भी नहीं सकता है। एक परम गोदी एंकर ने टमाटर पर ही पूछ लिया तो उसे जेल की याद दिला दी गई। माहौल ऐसा है कि सारे सवाल राहुल के लिए ही हैं। झूठे, महाझूठे सब। लोकसभा के सारे कैमरे खंगाल लिए मगर उस फ्लाइंग किस का कोई फ्लाइंग हिस्सा भी नहीं मिला। क्या आरोप लगाने वाली मंत्री पर कोई कार्रवाई नहीं होना चाहिए। उसी प्रोग्राम में जिसमें टमाटर के भाव और जेल की यादें दिलाई गईं फ्लाइंग किस का मुद्दा फिर उठा। मंत्री ने यह कहकर बचाव किया कि पत्र मैंने नहीं लिखा। मगर लोकसभा में बोला तो उन्होंने ही था। फिर साबित करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। और सदन के बाहर टीवी प्रोग्राम में उस आरोप को फिर से दोहराया ही।
मजेदार है टीवी गाली भी खा रहा है और प्रचार भी उनका ही कर रहा है। हिन्दू-मुसलमान का भरपूर जहर इसी एंकर ने फैलाया और उसी को जेल की याद दिलाई जा रही है।
खैर यह मीडिया तो आखिरी आखिरी तक अपनी वफादरी निभाएगा। इसका इलाज तो जनता ही करेगी। जब हिन्दू-मुसलमान की तरह जातिगत जनगणना को भी यह गलत तरीके से पेश करेगा तो उससे जब पिछड़े का नुकसान होगा तो वह सीधे इस मीडिया से बात करेगा। बिहार में यह मीडिया उस तरह उपद्रव नहीं कर पाता है जिस तरह शेष हिन्दी प्रदेशों में कर रहा है। वहां तमिलनाडु की एक गलत खबर दिखाने पर बिहार सरकार और तमिलनाडु सरकार ने एक पत्रकार पर जिस तरह कड़ी कार्रवाई की उससे पूरे बिहार में सही संदेश गया कि झूठी खबर दिखाने का नतीजा बहुत बुरा होगा।
बिहार अभी भी कई मामलों में लीड कर रहा है। इस तरह से झूठी खबरों के खिलाफ तो कर ही रहा है। जातिगत जनगणना में भी उसी ने पहल की थी। हाईकोर्ट से रोक लगी मगर फिर नीतीश कुमार और तेजस्वी की सरकार ने उसके खिलाफ लड़ कर उसे हटवाया और जातिगत जनगणना का काम फिर शुरू हो गया।
बिहार की तरह ही हिन्दी भाषी क्षेत्र के दूसरे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी इसकी मांग तेज हो गई है। मगर वहां की भाजपा सरकार ने इसे करवाने से मना कर दिया। अब वहां की दो बड़ी पार्टियों सपा और बसपा को देखना है कि अगर वे इस मांग को जोरदार तरीके से नहीं उठाते हैं तो उनके पिछड़े और दलित समर्थकों पर क्या प्रभाव पड़ता है। क्या यूपी का ओबीसी नहीं चाहता कि सरकारी क्षेत्रों में उसे अपनी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी मिले? दलित नहीं चाहता कि उसका आरक्षण जो लगातार कम किया जा रहा है वह वापस पूरा मिले और निजी क्षेत्र में उसे आरक्षण दिया जाए।
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने खुलकर प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की मांग की है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्रों में तो हालत यह है कि एक तो उन्हें खत्म ही किया जा रहा है दूसरे जो हैं वहां आरक्षण वाले पद भरे ही नहीं जा रहे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों का भी यही हाल है। अकेले रेल्वे में ही तीन लाख से ज्यादा पद खाली पड़े हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का कहना है कि सरकारी विभागों में तीस लाख से ज्यादा पद खाली हैं।
मगर अब यह कोई मुद्दा ही नहीं रहा। जब सेना में ठेके पर भर्ती होने लगे तो बाकी विभागों का तो महत्व ही क्या? इस बात को इस तरह समझ लीजिए कि अगर कांग्रेस या लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी इस तरह का फैसला लेते तो क्या होता? सीधे-सीधे उन पर देश बेचने का आरोप लगा दिया जाता। मीडिया उनकी लींचिंग का माहौल तैयार कर देता।
राहुल ने इसी लिए एक सिम्पल नारा दिया था। जितनी आबादी उतना हक। देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर! अगर कांग्रेस और विपक्षी दलों का गठबंधन इंडिया इस नारे को ठीक से उठा ले तो हिन्दू-मुसलमान गुब्बारे की सारी हवा निकल जाएगी।
गरीब को अपना अधिकार क्यों नहीं चाहिए। अभी राहुल रामेश्वर के साथ मुलाकात में न्याय स्कीम की बात कर रहे थे। राहुल अगर 2024 में जीत जाएंगे तो इसे जरूर लागू करेंगे। हर गरीब को छह हजार रुपया महीना। 72 हजार रुपए साल का देना। मगर समस्या यह है कि राहुल के आसपास के लोग ही उन्हें काटने में लगे रहते हैं।
आपको एक आश्चर्यजनक बात बताएं। सबको मालूम है कि टीवी राहुल को नहीं दिखाता है। पूरी भारत जोड़ो यात्रा गायब कर दी। लेकिन कांग्रेस तो महान है। जब राहुल का रामेश्वर से मिलने का वीडियो आया तो उसे जिसने पूरा दिखाया उससे कांग्रेस कहने लगी कि आप अपने चैनल से इसे हटाओ। है ना आश्चर्य। और घोर आश्चर्य इसमें यह है कि उस वीडियो का पूरा लिंक राहुल ने खुद अपने ट्वीट में दिया था।
अब पार्टी में राहुल से बड़ा कौन है यह कांग्रेस ही जाने। राहुल का वीडियो दिखाने पर आपत्ति क्यों? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। कांग्रेस किस तरह अपनी पार्टी चलाती है यह वह जाने! मगर अब राहुल पार्टी पॉलिटिक्स से ऊपर उठकर जनता के नेता बन गए हैं। कांग्रेस में जी-23 बनी थी। 23 वरिष्ठ नेताओं का गुट। जो राहुल को पार्टी से बाहर करना चाहता था। मगर राहुल को यात्रा से मिले भारी जन समर्थन से वह घबरा गया। चुप बैठ गया। मगर अब राहुल के नजदीक के लोग उनका कद कम करने में लग गए हैं। कांग्रेसी नेता को हमेशा अपने शिकंजे में रखना चाहते हैं। इन्दिरा गांधी नहीं रहीं। शुरू में उनके लिए भी बहुत कोशिश हुई। उन्हें पार्टी तोड़ना पड़ी। मगर राजीव, सोनिया पर कांग्रेसियों ने अपना कब्जा बना कर रखा। ऐसा ही राहुल पर चाहते हैं। अब यह राहुल पर है कि वे इन्दिरा बन कर खुद लोगों से मिलना जुलना शुरू करते हैं या राजीव और सोनिया की तरह कांग्रेसियों की आंख कान से ही सब देखते सुनते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


