नरसंहार के एक महीने
इजरायल और हमास के बीच छिड़ी जंग को पूरे एक महीने हो गए हैं

इजरायल और हमास के बीच छिड़ी जंग को पूरे एक महीने हो गए हैं। पिछले महीने यानी 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला किया था और इसके बाद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बिना देर किए युद्ध का शंखनाद कर दिया था। उन्होंने अपनी प्रशासनिक और खुफिया असफलता के लिए इजरायल के लोगों से माफी मांगना जरूरी नहीं समझा, न ही उन्होंने इन सवालों की परवाह की कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद इस हमले की जानकारी क्यों नहीं जुटा पाई, किस तरह हमास इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने इजरायल पर भीषण हमला बोल दिया। नेतन्याहू इन सवालों की पड़ताल करने के लिए पहले वक्त निकालते, तो शायद ऐसा नरसंहार नहीं होता, जो इस वक्त हो रहा है। तब शायद हमास के असली इरादे पता चलते और ये भी मालूम होता कि आखिर हमास ने इतनी ताकत और दुस्साहस किसके बूते जुटा लिया। लेकिन शायद नेतन्याहू को युद्ध के मैदान में उतरने की हड़बड़ी थी ताकि हमास के बहाने फिलिस्तीनियों को पूरी तरह खदेड़ कर अपना कब्जा स्थायी कर लिया जाए।
जिस हमास को खत्म करने की कसम खाकर नेतन्याहू ने युद्ध शुरु किया, वो अब भी बरकरार है। शायद हमास का अमृतकुंड किसी इजरायली बंकर में ही छिपा हो और इसलिए वो खत्म नहीं हो पा रहा है। लेकिन उसके नाम पर अब तक 10 हजार से अधिक फिलिस्तीन मारे जा चुके हैं। इनमें 6 हजार से अधिक बच्चे हैं। इन बच्चों में भी बहुत से ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जीवन का एक साल भी पूरा नहीं किया, कुछ बच्चों को तो मां के पेट में ही इजरायल ने खत्म कर दिया, मानो उन अजन्मी संतानों में हमास का आतंकी रूप इजरायल को नजर आता है। खून, धूल, बारूद की गंध से लिपटे, रोते-बिलखते, डर से कांपते बच्चों की तस्वीरें और वीडियो देखकर किसी भी सामान्य इंसान की रूह कांप जाए। लेकिन युद्धोन्माद में कोई सामान्य कहां रह पाता है। इजरायली सैनिक अपने आका का हुक्म बजा रहे हैं और इजरायल अपने आका अमेरिका की फरमाबरदारी कर रहा है। बिना इस बात की परवाह किए कि उसके हाथों में इतना खून लग चुका है, जिसके दाग सदियों तक बरकरार रहेंगे।
आज इजरायल ने इतने फिलिस्तीनी नागरिकों को मारा, जिनमें इतने बच्चे, इतनी महिलाएं, इतने पत्रकार, इतने सैनिक, इतने डॉक्टर हैं, इजरायल ने आज अस्पताल को तबाह किया, आज राहत शिविर पर बम बरसाए, आज गजा पट्टी तक पहुंचने वाली बिजली, पानी की आपूर्ति रोक दी, आज संचार के साधनों को खत्म कर दिया, ऐसी ही खबरें रोजाना महीने भर से लगातार आ रही हैं। और इन खबरों को देखकर भी अगर हम सामान्य बने हुए हैं, तो फिर ये तय है कि हम मनुष्य कहलाने का हक खो चुके हैं। बताया जा रहा है कि फिलिस्तीनियों को औसतन दिन में ब्रेड की दो स्लाइस और थोड़े से पानी में गुजारा करना पड़ रहा है। बहुतों को ये भी नसीब नहीं हो रहा है। निश्चित ही अमेरिका, इजरायल और इन देशों का साथ देने वाले तमाम सत्ताधीश आला दर्जे की संवेदनहीनता और क्रूरता दिखा रहे हैं। जिन लोगों को मासूमों की मौत, भूख-प्यास, बीमारी देखकर कोई फर्क नहीं पड़ रहा, जो खून की नदियों से धरती को मैला करने में लगे हुए हैं, क्या उन लोगों से न्याय और लोकतंत्र की रक्षा की उम्मीद की जा सकती है। किस तरह से ये तमाम शासनाध्यक्ष दुनिया से आतंकवाद मिटाकर शांति स्थापना का दावा कर सकते हैं, जबकि खुद इनके कृत्य किसी आतंकवाद से कम नहीं हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ को भी अमेरिका, इजरायल और उनका साथ देने वाले तमाम देशों ने बेमानी बना दिया है। संरा महासचिव एंटोनियो गुटेरेस बार-बार शांति की अपील कर रहे हैं। मानवीय आधार पर युद्धविराम की बातें कर रहे हैं। अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी तमाम देशों में लगातार आम जनता फिलिस्तीनियों के लिए आवाज उठा रही है। खुद इजरायल की जनता नेतन्याहू की युद्धनीति का विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आई है। लेकिन फिर भी इजरायल युद्धविराम के लिए तैयार नहीं है और उधर जो बाइडेन कह रहे हैं कि पूरे युद्धविराम की जगह मानवीय जरूरत के लिए छोटे विराम लिए जाएं। इस तरह के बयानों से अमेरिका की असली नीयत समझ आ जाती है। मानवीय जरूरत तो यही है कि किसी भी हाल में युद्ध तुरंत बंद हो और नरसंहार पर रोक लगे। छोटे विराम जैसा कोई विकल्प होना ही नहीं चाहिए। मगर युद्ध रुका तो नेतन्याहू के फिलिस्तीन पर कब्जे के मंसूबे धरे रह जाएंगे। इसलिए अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इजरायल युद्ध किए जा रहा है और अमेरिका अपनी मदद जारी रखे हुए है।
दुनिया भर के कई राजनेता अपनी सरकारों से अलग राय रखते हुए इजरायल को आतंकी राष्ट्र घोषित करने की मांग उठा चुके हैं। नेतन्याहू पर युद्ध अपराधों का मुकदमा चलाने की मांगे हो रही हैं। यह देखना दुखद है कि इंसानियत के इस मुश्किल वक्त में भारत का नेतृत्व करने वाली मोदी सरकार ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है। सोमवार को ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से फोन पर बातचीत की और इसमें दोनों देशों के संबंधों पर चर्चा के साथ ही फिलिस्तीन के हालात पर भी चर्चा हुई। जिसमें राष्ट्रपति रईसी ने श्री मोदी को 'पश्चिमी उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ भारत के संघर्षÓ और 'गुट-निरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक देश होनेÓ की याद दिलाई। रईसी ने कहा, 'आज भारत से उम्मीद है कि वह ग़ज़ा के बाशिंदों के ख़िलाफ़ ज़ायनवादियों के अपराधों को रोकने के लिए अपनी पूरी क्षमताओं का इस्तेमाल करे।
ईरान ने मोदी सरकार को भारत के इतिहास और विदेश नीति का वो अध्याय याद दिलाया, जिसके बूते दुनिया में भारत के नाम की साख बनी हुई थी। लेकिन अफसोस कि मोदी सरकार ने सायास उस अध्य़ाय को बंद करने की कोशिश की है। गुटनिरपेक्षता आंदोलन को औपचारिकता के फ्रेम में जकड़ दिया है और कुछ व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए श्री मोदी इजरायल या अमेरिका के कृत्यों पर खुलकर बोल भी नहीं रहे हैं। इजरायली सरकार के अपराधों पर अमेरिका से लेकर भारत तक का यह ढीला रवैया समूची मानवता के लिए भारी पड़ेगा।


