एक लाख कलाकार लॉकडाउन से भुखमरी की कगार पर
देश में कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन से न केवल फिल्मी कलाकार और रंगकर्मी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं बल्कि संगीत से जुड़े लोगों की भी हालत बहुत खस्ता हो गई है

नयी दिल्ली। देश में कोरोना महामारी के कारण लागू लॉकडाउन से न केवल फिल्मी कलाकार और रंगकर्मी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं बल्कि संगीत से जुड़े लोगों की भी हालत बहुत खस्ता हो गई है और छोटे कलाकारों का जीना मुहाल हो गया है और उनके खाने के लाले पड़ गए हैं।
सुप्रसिद्ध संगीत विशेषज्ञ एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ मुकेश गर्ग ने यूनीवार्ता से कहा कि इस लॉकडाउन से संगीत से जुड़े करीब एक लाख छोटे कलाकारों के लिए आजीविका का सवाल खड़ा हो गया है क्योंकि लॉकडाउन के कारण पिछले करीब तीन महीने में देश भर में संगीत का एक भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सका और मोहल्लों में संगीत सिखाने के जितने स्कूल खुले हुए थे, वे सब पूरी तरह बंद हो गए तथा जो कलाकार संगीत का ट्यूशन कर अपनी आजीविका चलाते थे उनके लिए भी जीना मुहाल हो गया है ।
करीब 35 साल तक ‘संगीत’ नामक पत्रिका के सम्पादन से जुड़े डॉ. गर्ग ने कहा कि इस लॉकडाउन में देश के किसी बड़े कलाकार, चाहे वे विश्वमोहन भट्ट हो या अमजद अली खान, का एक भी कॉन्सर्ट नही हो पाया है और न ही कोई संगीत समारोह हो सका। इतना ही नहीं दिल्ली शहर में आए दिन कहीं न कहीं संगीत के कार्यक्रम होते रहते थे, वे सारे कार्यक्रम ठप हो गए हैं और इवेंट आयोजित करने वाली कंपनियां भी खस्ता हालत में आ गई हैं। इतना ही नहीं बड़े कलाकारों के साथ काम करने वाले संगतकार भी बहुत ही मुश्किल की जिंदगी जी रहे हैं। देश में करीब दस हज़ार संगतकार होंगे जो किसी बड़े कलाकार के साथ तबला हारमोनियम पखावज आदि बजाते थे ,उनकी रोजी-रोटी भी खतरे में पड़ गई है ।
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन का बस एक फायदा यह हुआ है कि अब संगीत पर कई ऑनलाइन वेबिनार और कार्यक्रम होने लगे तथा लेक्चर आयोजित किए जाने लगे हैं जिससे संगीत पर गंभीर विचार विमर्श शुरू हो गया है ,अन्यथा पहले संगीत के बारे में देश में कोई विचार विमर्श नहीं होता था। संगीत के चिंतन के पहलू पर कभी बातचीत नहीं होती थी।
डॉ. गर्ग ने कहा कि संगीत को केवल प्रदर्शनकारी कला के रूप में ही पेश किया जाता रहा था लेकिन लॉकडाउन के कारण राजस्थान विश्वविद्यालय ,प्रयागराज समिति के अलावा जश्ने अदब जैसी अन्य संस्थाओं ने कई विभिन्न लेक्चर आयोजित किए। उनमें से पांच आयोजनों में तो उन्होंने भाग भी लिया और संगीत के बारे में उद्घाटन और समापन व्याख्यान दिए।
संगीत संकल्प न्यास’ संस्था के संस्थापक डॉक्टर गर्ग का यह भी कहना है कि भारत रत्न से सम्मानित रविशंकर और पंडित गोदई महाराज का यह जन्मशती वर्ष है पर उनकी स्मृति में कोई समारोह नहीं हो पाया बल्कि इस वर्ष ऑनलाइन कार्यक्रम ही हो पाए ।
उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण देश में जो स्थिति पैदा हो रही है उससे यह लगता है कि आने वाले दो वर्षों में देश में संगीत के बड़े आयोजन नहीं हो सकेंगे और अब छोटी गोष्ठियां ही हो सकेंगी। इससे हिंदुस्तानी संगीत को बहुत धक्का पहुंचेगा क्योंकि बिना दर्शकों और श्रोताओं के अभाव में ये कलाकार अपनी कला को कैसे पेश कर पाएंगे ।अब यह भी सवाल उठने लगा है कि क्या भविष्य में संगीत के कार्यक्रम ऑनलाइन ही किए जाएं लेकिन ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित करने से दिक्कत यह है कि मंच पर जिस तरह माइक्रोफोन आदि की सुविधा होती हैं उस तरह ऑनलाइन कार्यक्रमों में सुविधा नहीं मिल पाएगी जिससे कार्यक्रमों की गुणवत्ता नहीं रह पाएगी और दर्शक कलाकारों से सीधे नहीं जुड़ पाएंगे। इससे कलाकारों का भी मन हतोत्साहित रहेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में कुमार गंधर्व और अली अकबर की जन्मशती हम लोग कायदे से नहीं मना पाएंगे ।इ स वर्ष तो रविशंकर की जन्मशती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हम लोग नहीं मना पा रहे हैं।
डॉ गर्ग कालिदास सम्मान, तानसेन सम्मान और कुमार गंधर्व सम्मान के निर्णायक भी रहे हैं और उन्होंने संगीत और साहित्य नामक पुस्तक भी लिखी है तथा गत पांच दशकों से संगीत के क्षेत्र से जुड़े है।उन्हें संगीत शिरोमणि और आचार्य बृहस्पति सम्मान सहित अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं।


