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एक दिन जनता जागती है : पाकिस्तान के चुनाव का संदेश

जब आतंकवाद के लंबे दौर के बाद 1996 में फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने और पाकिस्तान ने उन चुनावों पर सवाल उठाया तो फारूख ने कहा था कि हमारे यहां तो सरकार जनता बनाती है

एक दिन जनता जागती है : पाकिस्तान के चुनाव का संदेश
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- शकील अख्तर

हम बात पाकिस्तान की कर रहे हैं। वहां भी वह दिन आ गया। चुनाव आयोग की सारी कोशिशों के बावजूद नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग ( नवाज) और बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ( पीपीपी) बहुमत से बहुत दूर हैं। जबकि इमरान की पार्टी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था मगर उनके समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सबसे ज्यादा सौ सीटों पर जीते हैं। 264 सीटों पर चुनाव हुआ था।

जब आतंकवाद के लंबे दौर के बाद 1996 में फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने और पाकिस्तान ने उन चुनावों पर सवाल उठाया तो फारूख ने कहा था कि हमारे यहां तो सरकार जनता बनाती है मगर वहां की सरकार तीन ए बनाते और चलाते हैं। उन्होंने तीन ए को डिफाइन करते हुए हमारे साथ एक इंटरव्यू में कहा कि- पहला ए आर्मी, दूसरा ए अमेरिका और तीसरा ए अल्लाह।

मगर इस बार वहां हुए चुनाव में एक ए और जुड़ गया। और हो सकता है भविष्य में यही ए सबसे मजबूत साबित हो और एकमात्र ताकत बने। यह ए है-अवाम। पाकिस्तान में यह पहला चुनाव ऐसा है जब वहां अवाम ने सारे डर, धर्म और सूडो नेशनलिज्म (नकली राष्ट्रवाद) को छोड़कर अपने मन से वोट दिया। और एक अतीत नहीं भविष्य दिखाने वाले इमरान खान को अप्रत्याशित समर्थन दे दिया।

उन्हें यह समर्थन तब मिला जब उन्हें एक राजनीतिक पार्टी के रूप में चुनाव में हिस्सा नहीं लेने दिया गया। उनके सारे प्रत्याशी निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में उतरे और वे खुद जेल में थे। इस चौथे ए अवाम की ताकत कितनी है और यही असली है वह इस बात से समझी जा सकती है कि खुद नवाज शरीफ जो प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े उम्मीदवार हैं वह शुरूआती गिनती में इमरान की पार्टी पीटीआई समर्थित यासमीन रशीद से पीछे थे। मगर नतीजा नहीं आया, गिनती में देरी होती रही और अंत में नवाज शरीफ को बड़े अंतर से जीता हुआ घोषित कर दिया गया।

वहां का चुनाव आयोग हमारे चुनाव आयोग की तरह कभी बहुत ऊंचे मापदंड रखने वाला और विश्वसनीय नहीं रहा। इसलिए वहां इसे आश्चर्य की तरह देखा जा रहा है कि सरकार की इतनी मदद करने के बाद भी इमरान समर्थकों को अवाम ने इतना वोट दिया कि गिनती में नवाज शरीफ को जिताना भी चुनाव आयोग के लिए मुश्किल हो गया।

एक स्थिति आती है। जिसे सेचुरेशन पाइंट या हमारे यहां देसी भाषा में कहते हैं बस अब तो हदईं हो गई! हद्द हो गई! तो वह होती है। फ्रांस में 200 साल पहले हुई थी। इतिहास में फ्रांसीसी क्रान्ति के नाम से दर्ज है। और उसका प्रभाव सिर्फ फ्रांस में नहीं हुआ था पूरा यूरोप उसके प्रभाव में आ गया था और इसने दुनिया को बदल दिया। यह इसी चौथे ए की क्रान्ति थी। अवाम की। और यह सत्तासीन वर्ग और धर्म के गठजोड़ के खिलाफ थी। दुनिया में गणतंत्र और नए लोकतांत्रिक मूल्य वहीं से शुरू हुए।
अवाम की यह ताकत कई बार भारत में दिखी। कभी नहीं भी दिखी। क्योंकि धर्म एक लंबे समय तक जनता की आंखों पर पट्टी बांध देता हैं। मगर जैसा कि अभी पाकिस्तान के चुनाव ने बताया कि हमेशा नहीं। एक ना एक दिन जनता जागती है और बड़े से बड़े ताकतवर नेता, अपने आप में पूरी संवैधानिक शक्ति केन्द्रित कर लेने वाले को उखाड़ फेंकती है।

पाकिस्तान में नवाज शरीफ ने यह नहीं सोचा था कि इमरान जिन्हें उनकी सरकार ने जेल पहुंचा दिया था। कई मामलों में सज़ा हो गई थी। चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। पार्टी का वह चुनाव चिन्ह जिसने पाकिस्तान को पहली बार राष्ट्रीय गौरव से भरा था क्रिकेट बैट, वह भी सीज ( छीन लिया) कर दिया गया था। 150 के करीब मामले उनके खिलाफ दर्ज कर लिए गए थे। आतंकवाद, देश विरोधी गतिविधियां, सेना पर हमला जैसे गंभीर आरोप बनाए। मगर इन सबके बावजूद नवाज शरीफ उन्हें अवाम के मन से नहीं उतार पाए।

यह एक सबक है सबके लिए कि झूठ का भंडाफोड़ एक ना एक दिन होता है। हमने फ्रांस का उदाहरण इसीलिए दिया कि वहां का राजा लूई सिक्सटीन कहता था मैं ही सब कुछ हूं। अहं ब्रह्मास्मि! और रानी मैरी एंटोनेट कहती थीं कि जनता के पास रोटी नहीं है तो वह केक ( जिसे आम तौर पर ब्रेड लिखा जाता है) खाए! लेकिन एक दिन जनता महल पर चढ़ दौड़ी और पूरी दुनिया में एक संदेश चला गया कि शासन में सबसे बुरी चीज अति होती है।

हम बात पाकिस्तान की कर रहे हैं। वहां भी वह दिन आ गया। चुनाव आयोग की सारी कोशिशों के बावजूद नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग ( नवाज) और बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ( पीपीपी) बहुमत से बहुत दूर हैं। जबकि इमरान की पार्टी के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था मगर उनके समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सबसे ज्यादा सौ सीटों पर जीते हैं। 264 सीटों पर चुनाव हुआ था। वहां कुल 342 सीटें हैं। जिनमें 70 महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए रिजर्व हैं। फिलहाल बहुमत के लिए 133 सीटें चाहिए। नवाज शरीफ को इसमें आर्मी के समर्थन के बावजूद केवल 71 सीटें मिली हैं। बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो की पार्टी को 53 सीटें। जबकि पिछले चुनाव 2018 में इमरान की पार्टी पूर्ण बहुमत लेकर 149 सीटों पर चुनाव जीती थी और इमरान प्रधानमंत्री बने थे।

अब मामला फंसा हुआ है। बिलावल भुट्टो नवाज शरीफ को नहीं चाहते हैं और नवाज बिलावल को। और दोनों इमरान खान को नहीं। मगर जनता इमरान को चाहती है।
कहते हैं सेना का रोल बहुत निर्णायक हो गया है। फिलहाल तो उसने अपील की है कि पाकिस्तान की जनता के हितों के अनुरूप सरकार बनाएं। मगर जनता के हित वह किस में देख रही है यह सब जानते हैं। इमरान में जिन पर जनता ने विश्वास व्यक्त किया है उनमें तो बिल्कुल ही नहीं देख रही है। लेकिन पाकिस्तान की सेना को सब देख रहे हैं। उसके बारे में पंजाबी में कहा जाता है कि 'जंग कद्दी जीती नहीं, चुनाव कद्दी हारे नहीं!'

मगर इस बार उसके लिए चुनाव जीतना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। एक अवाम के धर्म के नशे और डर की गिरफ्त से बाहर निकलने की वजह से और दूसरे अंतरराष्ट्रीय दबाव से। पाकिस्तान के चुनाव में हुई धांधलियों पर अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन सबने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

जनता और इमरान की पार्टी के आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग का समर्थन किया है। आस्ट्रेलिया ने तो यहां तक कहा है कि पाकिस्तान के लोगों की पसंद को सीमित कर दिया गया। क्यों सभी राजनीतिक दलों को चुनाव नहीं लड़ने दिया गया।

जब हम कहते हैं कि दुनिया एक गांव हो गई है तो इसका मतलब यही है कि हर देश का असर दूसरे देश पर पड़ता है। जनता का एक जगह जागना दूसरी जगह भी उम्मीदें जगाता है।

लोकतंत्र एक वह आधुनिक मूल्य है जिसे कायम रखना आज पूरी दुनिया चाहती है। सब जानते हैं कि एक देश में अगर लोकतंत्र खत्म होता है दूसरे देश में भी इसका असर पड़ता है। और लोकतंत्र तभी कायम रह सकता है जब उस देश की जनता बीच-बीच में जागती रहे।

पाकिस्तान की जनता जाग गई है। हमारी तो हमेशा ही जागती रही। बस कभी थोड़ा धर्म, नफरत का ज्यादा नशा कर देने के बाद गफलत में आ जाती है। मगर वह नशा टूटता है और खुद जनता, देश सबके लिए नशे से बाहर आना बहुत जरूरी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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