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किन शर्तों पर नॉर्डिक देशों को नाटो में आने देगा तुर्की

अमेरिका और बाकी सहयोगी देश इन देशों की सदस्यता पर काफी उत्साहित हैं लेकिन तुर्की ने अड़ंगा लगा दिया है.

किन शर्तों पर नॉर्डिक देशों को नाटो में आने देगा तुर्की
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तुर्की लंबे समय से नॉर्डिक देशों पर आरोप लगाता रहा है. खासतौर से स्वीडन जहां प्रवासी तुर्क लोगों का समुदाय काफी बड़ा और मजबूत स्थिति में है. तुर्की इन लोगों पर प्रतिबंधित कुर्द उग्रवादियों और फेतुल्लाह गुलेन के समर्थकों को शरण देने का आरोप लगाता है. फेतुल्लाह गुलेन अमेरिका में रहने वाले उपदेशक हैं और 2016 में तुर्की में हुए नाकाम तख्तापलट के आरोपी हैं.

तुर्की ने खड़ी की बाधा

अब तक तटस्थ रहे नॉर्डिक देशों को नाटो की सदस्यता मिलने में तुर्की एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है. नाटो के नियमानुसार किसी नये देश को शामिल करने के लिए सभी सदस्यों की मंजूरी मिलना जरूरी है. ऐसे में अगर एक देश भी इसके खिलाफ हुआ तो फिर नये देशों को शामिल नहीं किया जा सकेगा.

बीते हफ्ते तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने नाटो प्रमुख येंस स्टोल्टेनबर्ग से टेलिफोन पर कहा, "जब तक स्वीडन और फिनलैंड साफ तौर पर यह नहीं दिखाते कि वे तुर्की के बुनियादी मसलों पर साथ खड़े होंगे, खासतौर से आतंकवाद से लड़ाई में, तब तक हम इन देशों की नाटो सदस्यता पर सकारात्मक रुख नहीं दिखायेंगे."

स्टोल्टेनबर्ग ने बातचीत के बाद ट्विटर पर कहा, "हमारे अहम सहयोगी" से "नाटो के खुले द्वार" के महत्व पर बातचीत हुई है. स्टोल्टेनबर्ग का कहना है, "हम इस बात से सहमत हैं कि सभी सहयोगी देशों की चिंता को ध्यान में रखा जाना चाहिए और समाधान के लिए बातचीत जारी रहनी चाहिए." इससे पहले स्टोल्टेनबर्ग ने कहा था कि तुर्की की चिंताओं का समाधान किया जा रहा है जिससे कि आगे बढ़ने पर सहमति बनाई जा सके.

तुर्की के राष्ट्रपति ने पहले स्वीडन और फिनलैंड के प्रतिनिधिमंडल की तुर्की में मेजबानी करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद शनिवार को दोनों देशों के नेताओं के साथ एर्दोवान की टेलिफोन पर अलग-अलग बातचीत हुई. इस बातचीत में एर्दोवान ने उनसे तुर्की की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन रहे "आतंकवादी" गुटों को वित्तीय और राजनीतिक समर्थन बंद करने का आग्रह किया.

यह भी पढ़ेंः फिनलैंड और स्वीडन पर नाटो में आने से पहले हमला हुआ तो कौन बचायेगा

क्या चाहता है तुर्की

तुर्की के राष्ट्रपति कार्यालय के मुताबिक एर्दोवान ने स्वीडन की वित्त मंत्री माग्दालेना एंडरसन से कहा, "आतंकवादी संगठन को स्वीडन की राजनीतिक, आर्थिक और हथियारों से सहयोग बिल्कुल बंद होना चाहिए."

तुर्की स्वीडन से गंभीर और ठोस कदम उठाने की उम्मीद करता है. एर्दोवान ने एंडरसन से कहा है कि उनका देश चाहता है कि प्रतिबंधित कुर्दिस वर्कर्स पार्टी, पीकेके और उसकी इराकी और सीरियाई शाखाओं को लेकर तुर्की की चिंताओं का समाधान हो.

पीकेके ने 1984 से ही तुर्की के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है. तुर्की और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों ने इसे "आतंकवादी संगठन" का दर्जा दे कर प्रतिबंधित कर दिया है. यूरोपीय संघ में फिनलैंड और स्वीडन भी शामिल हैं.

फरवरी में यूक्रेन पर रूसी हमले ने इन दोनों देशों में पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन में शामिल होने की राजनीतिक इच्छा जगा दी है. इसके लिए नाटो के सभी 30 सदस्यों की सहमति जरूरी है. तुर्की ने उनकी सदस्यता का विरोध किया है.

तुर्की को फिनलैंड से ज्यादा स्वीडन से दिक्कत

वाशिंगटन इंस्टीट्यूट के फेलो सोनर कागाप्ते का कहना है कि तुर्की स्वीडन की तुलना में फिनलैंड को लेकर ज्यादा सकारात्मक है. कागाप्ते ने कहा, "अंकारा संकेत दे रहा है कि वह गठबंधन में हेलसिंकी के लिए तो हरी बत्ती दिखायेगा लेकिन स्टॉकहोम की सदस्यता रोकेगा जबतक कि स्वीडन उसे राहत नहीं देता," पीकेके के मामले में.

एर्दोवान ने एंडरसन से तुर्की के रक्षा उद्योग पर लगे प्रतिबंध उठाने की भी मांग की. स्वीडन ने यह प्रतिबंध 2019 में तुर्की की सेना के सीरिया में अभियान शुरू करने के बाद लगाया था. एंडरसन ने ट्वीट किया है कि उनका देश, "शांति, सुरक्षा और आतंकवाद से लड़ाई में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का इंतजार कर रहा है."

फिनलैंड के राष्ट्रपति के साथ एक और फोन कॉल में एर्दोवान ने कहा कि नाटो सहयोगी के लिए खतरा पैदा करने वाले "आतंकवादी" संगठन की तरफ आंखें मूंदे रहना "दोस्ती और सहयोग की भावना के खिलाफ है."

एर्दोवान का यह भी कहना है कि यह तुर्की का अधिकार है कि वह अपने देश और लोगों पर खतरे के खिलाफ "वैध और निश्चित संघर्ष के लिए सम्मान और सहयोग की उम्मीद रखे."

इसके जवाब में फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो ने एर्दोवान के साथ "खुले और सीधे फोन पर बातचीत" के लिए उनकी तारीफ की. निनिस्तो ने ट्वीट किया है, "मैंने कहा कि नाटो के सहयोगी के रूप में फिनलैंड और तुर्की एक दूसरे की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होंगे और हमारा रिश्ता और मजबूत होगा. फिनलैंड आतंकवाद की हर रूप और प्रकार में निंदा करता है. करीबी बातचीत जारी रहेगी."

रूस की नाराजगी

स्वीडन और फिनलैंड ठोस रूप से पश्चिमी देशों के साथ होते हुए भी ऐतिहासिक रूप से नाटो के साथ एक दूरी बना कर चल रहे थे. लंबे समय से चली आ रही इस नीति का लक्ष्य रूस की नाराजगी को टालना था. हालंकि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. दोनों देशों के ना सिर्फ नेता और सरकार बल्कि ज्यादातर आम लोग भी इनके नाटो में शामिल होने की ख्वाहिश रखते हैं.

रूस ने इन देशों को नाटो में शामिल होने के खिलाफ धमकियां दी हैं और फिनलैंड को गैस सप्लाई रोक दी है. आने वाले दिनों में रूस की ओर से ऐसे कुछ और कदमों की आशंका जताई जा रही है. फिनलैंड रूस के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है ऐसे में रूस की दिक्कतें उसके नाटो में शामिल होने को लेकर ज्यादा है. यूक्रेन के साथ ही लगभग यही हालात थे और वह भी नाटो में शामिल होना चाहता था. हालांकि यूरोपीय देशों ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को लेकर उतना उत्साह नहीं दिखाया जितना कि फिनलैंड और स्वीडन को लेकर. इसकी एक वजह यह भी है कि ये दोनों देश यूरोपीय संघ में पहले से ही शामिल हैं.


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