5 ठेकेदारों के नाम निगम के खाते से निकली थी करोड़ों की राशि
जिले में स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे नगर निगम क्षेत्र में ओडीएफ को सफलतापूर्वक लागू करने की नीयत से बनाए गए टॉयलेट घोटाले की जांच लगभग पूरी हो चुकी है

रायगढ़। जिले में स्वच्छ भारत अभियान के तहत पूरे नगर निगम क्षेत्र में ओडीएफ को सफलतापूर्वक लागू करने की नीयत से बनाए गए टॉयलेट घोटाले की जांच लगभग पूरी हो चुकी है। जांच समिति ने अपनी पूरी रिपोर्ट आयुक्त को सौंपते हुए संबंधित दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की अनुशंसा की है।
रायगढ़ नगर निगम क्षेत्र के आधा दर्जन वार्डो में एक हजार से भी अधिक टायलेट बनाने के नाम पर पांच ठेकदारों ने करोड़ों रुपए निगम खाते से निकाल लिए थे जबकि हितग्राहियों तक यह पैसे आज तक पहुंचे ही नहीं है।
रायगढ़ नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नंबर 36, 37 के साथ-साथ अन्य कई वार्डो में निगम के ठेकेदारों द्वारा कागजों में टायलेट बनाकर करोड़ो रुपए की राशि बड़े आराम से न केवल निकाल ली है बल्कि भुगतान लेने वाले ठेकेदार इस राशि को खर्च भी कर चुके हैं। मजेदार बात यह है कि कागजों में बनाए गए टॉयलेट की राशि निगम के खाते से निकालने के मामले में न तो कोई रिपोर्ट ली गई और न ही कोई अन्य कार्रवाई की गई।
बिना टायलेट बनाए राशि को निकालने का मामला उजागर होने के बाद आनन-फानन में एक जांच कमेटी बनाई गई। जांच कमेटी ने भाजपा कांगे्रस, बसपा, पार्षदों के अलावा निगम के अधिकारियों को शामिल करके संबंधित वार्डों में जाकर जब जांच शुरू की तब पता चला कि हितग्राहियों ने जांच टीम को बताया कि स्वयं के पैसे से वे टॉयलेट बनाए हैं और उनकी राशि निगम ने उन्हें मांगने पर भी नहीं दी है। लगभग 20 दिन तक चली इस जांच रिपोर्ट में टीम को कई फर्जीवाड़े की पुष्टि भी होना पाया और अब जांच टीम ने पूरी रिपोर्ट आयुक्त को सौंपने के बाद बताया कि टायलेट बनाने के नाम पर बड़ी गड़बड़ी हुई है और ठेकेदार ने हितग्राहियों के नाम पर राशि निकाल भी ली है। जांच रिपोर्ट में दोषियों पर कार्रवाई की बात कही गई है।
वहीं निगम के पूर्व सभापति सुरेश गोयल भी कहते हैं कि प्रदेश का सबसे बड़ा टॉयलेट घोटाला रायगढ़ नगर निगम क्षेत्र में हुआ है और अभी भी जांच आधी अधूरी है। अगर इसकी सही ढंग से जांच हो जाए तो कई ठेकेदार के उपर एफआईआर दर्ज की जा सकती है। टायलेट घोटाले की जांच टीम द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मामले में निगम आयुक्त विनोद पांडेय अभी भी सीधे-सीधे कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। काफी कोशिश करने के बाद जब उनसे जांच रिपोर्ट के बाद आगे की कार्रवाई पर सवाल किया गया तो उनका कहना है कि अभी रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया गया है और आगे भी इस प्रकार की जांच जारी रहेगी।
निगम आयुक्त के इस जवाब से यह बात साफ हो जाती है कि निगम के अधिकारियों से निगम की सांठगांठ के चलते ही करोड़ो रुपए की राशि टॉयलेट बनाने वाले ठेकेदारों को फर्जी ढंग से भुगतान कर दिया गया है और अब अपने मातहत को बचाने के लिए निगम आयुक्त अभी और जांच की बात कहते हुए पूरे मामले को टालने का प्रयास कर रहे है।
बहरहाल 20 दिन की जांच के बाद टायलेट घोटाला जांच समिति ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें भी कई खामियां है चूंकि निगम के कई वार्डों में एक हजार से भी अधिक ऐसे टॉयलेट के नाम पर भुगतान निकाला गया है जो बने ही नहीं और कुछ जगह स्वयं हितग्राहियों ने टॉयलेट बनाए हंै और ऐसे मामलों में ठेकेदारों को बचाने की पहल राजनीति स्तर पर होनें के चलते जांच समिति ने भी अपने चहेते ठेकेदारों को क्लीन चिट देकर उनके घोटाले को दबाने का प्रयास किया। देखना यह है कि अब लगातार लग रहे आरोपों के बाद निगम आयुक्त ईमानदारी से इस मामले में कार्रवाई करते हैं या नही।


