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ममता के विधायकों, मंत्रियों के वेतन में बढ़ोतरी के ऐलान पर बीजेपी ने कहा, 'स्वीकार नहीं करेंगे'

पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा विधायक दल ने गुरुवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सभी मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 40,000 रुपये प्रति माह की भारी बढ़ोतरी की घोषणा का जोरदार विरोध किया

ममता के विधायकों, मंत्रियों के वेतन में बढ़ोतरी के ऐलान पर बीजेपी ने कहा, स्वीकार नहीं करेंगे
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कोलकाता। पश्चिम बंगाल विधानसभा में भाजपा विधायक दल ने गुरुवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सभी मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 40,000 रुपये प्रति माह की भारी बढ़ोतरी की घोषणा का जोरदार विरोध किया।

बढ़ोतरी के बाद विधायकों को वेतन और भत्तों सहित मिलने वाला मासिक भुगतान अब मौजूदा 81,000 से 1.21 लाख रुपये होगा। इसी तरह वेतन और भत्तों सहित मंत्रियों को मिलने वाला मासिक भुगतान 1.10 लाख से बढ़कर 1.50 लाख रुपये हो जाएगा।

राजभवन से बाहर आने के बाद नेता विपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा, "हम इस बढ़े हुए वेतन के खिलाफ हैं। हमारी विधायी टीम ने राज्यपाल सीवी. आनंद बोस से मुलाकात की है। उनसे गुरुवार को सदन में पारित मंत्रियों और विधायकों के वेतन वृद्धि के प्रस्ताव पर सहमति नहीं देने का अनुरोध किया है।"

उन्होंने आगे कहा कि हम राज्य सरकार के संविदा कर्मचारियों के लिए 'समान काम के बदले समान वेतन' की मांग कर रहे हैं। लेकिन, राज्य सरकार ने मांग को नजरअंदाज किया है। हम राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार के समकक्षों के बराबर महंगाई भत्ता बढ़ाने की भी मांग कर रहे हैं। लेकिन, राज्य सरकार ने बचने के लिए बार-बार विभिन्न अदालतों का दरवाजा खटखटाया है।

सुवेंदु अधिकारी ने कहा, "इसलिए, हम मंत्रियों और विधायकों के लिए बढ़े हुए वेतन के खिलाफ हैं। हम चाहते हैं कि उस पैसे का उपयोग राज्य के लोगों के कल्याण के लिए किया जाए।"

दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाले शासन ने मंत्रियों और विधायकों के लिए वित्तीय भत्ते बढ़ाए हैं। राज्य वित्त विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार 2010-11 के दौरान पश्चिम बंगाल में 34 साल के वाम मोर्चा शासन के अंतिम वर्ष में मंत्रियों और विधायकों के वेतन और अन्य भत्तों के कारण राज्य के खजाने का कुल व्यय 4 करोड़ रुपये से कुछ ज्यादा था। पिछले वित्तीय वर्ष 2022-23 के अंत तक यह राशि बढ़कर 52 करोड़ रुपये हो गई थी।

अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पीके मुखोपाध्याय ने कहा, "पिछली सरकार के दौरान वेतन आदि बेहद कम थे। अब भी देश के अन्य प्रमुख राज्यों की तुलना में काफी कम हैं। संभवतः ऐसे सवाल नहीं उठाए जाते, अगर राज्य सरकार के कर्मचारियों और केंद्र सरकार में उनके समकक्षों को मिलने वाले महंगाई भत्ते के बीच कम से कम कुछ समानता होती।"

उन्होंने आगे कहा, "ऐसा नहीं है कि हाल ही में मंत्रियों और विधायकों के वेतन और अधिकारों में बढ़ोतरी की गई है। पिछली बढ़ोतरी को लागू किए हुए काफी समय बीत चुका है। लेकिन, ये सवाल पहले कभी नहीं उठाए गए थे। निश्चित रूप से ऐसे कारण हैं कि ये सवाल अब क्यों उठाए जा रहे हैं।"


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