नलकूपों की संख्या दोगुनी, कुएं हो गए खत्म
भूजल स्तर में गिरावट का सबसे बड़ा कारण माने जाने वाले गहरे नलकूपों की खुदाई पर पाबंदी लगाने की सिफारिशों के बीच इसके आंकड़े अलग कहानी बया कर रहे हैं....

बिलासपुर। भूजल स्तर में गिरावट का सबसे बड़ा कारण माने जाने वाले गहरे नलकूपों की खुदाई पर पाबंदी लगाने की सिफारिशों के बीच इसके आंकड़े अलग कहानी बया कर रहे हैं। सरकार की कोशिश है कि भूजल संवर्धन के लिए तालाबों और कुओं का निर्माण ज्यादा से ज्यादा निर्माण कराया जाए ताकि आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 6 साल से नलकूपों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई और इस बीच सैकड़ों कुएं खत्म हो गए। धरती की सतह पर वर्षाजल का भण्डारण और भूजल का कम से कम उपयोग ही जल संवर्धन का एकमात्र उपाय है। पेयजल व सिंचाई के लिए जलस्त्रोत के सहज साधन के रूप में नलकूपों के खनन से समस्या बढ़ती जा रही है। इसे रोक नहीं गया तो आने वाले समय में यह संकट और गहरा सकता है। इस गमी्र में अधिकाधिक दोहन के कारण भूजल स्तर 25 फीट तक की गिरावट दर्ज की गई है।
खेती के लिए बोर से पानी के अधिक दोहन कारण भूजल में तेजी से गिरावट आ रही है। तालाब, कुओं की संख्या कम हो जाने से धरती में पानी समा ही नहीं पा रहा है जबकि भूजल का दोहन हर दिन बढ़ रही है। तालाबों की नियमित सफाई नहीं होने स यह समस्या बढ़ रही है। पानी धरती में समाए तभी भूजल का स्तर बढ़ सकता है। तालाबों की सफाई हर तीन-चार साल होनी चाहिए। ऐसा नहीं किया जाता। मिट्टी के भराव के कारण बारिश के दिनों में तालाब लबालब होने के बावजूद पानी धरती में नहीं समा पाता। केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में तालाबों और कुओं का निर्माण कराया जाए। इसके लिए करोड़ों की राशि का आबंटन कर रही है क्योंकि दिनों-दिन भूजल तेजी से नीचे जा रहा है। जिसके कारण आने वाले समय में पानी का संकट और गहरा सकता है। शहरी क्षेत्रों में कंाक्रीट की सड़कों के जाल बढ़ने के कारण ऊपर का पानी धरती के नीचे नहीं, और भूजल समस्या और बढ़ी है।
कुआं जिले से खत्म होते रहे हैं क्योंकि गहरे नलकूप कुओं का पानी सोख ले रहे हैं। सरकार ने इसे रोकने के लिए नलकूपों की खुदाई से पहले अनुमति लेने की बंदिश लगाई है फिर नलकूपों की संख्या बढ़ती जा रही है। बिलासपुर जिले में कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार 6 साल में नलकूपों की संख्या 22778 से बढ़कर 42073 हो गई है, जो दोगुने से अधिक है। इसका असर कुओं पर पड़ा है। नलकूपों के कारण सैकड़ों कुएं सूख गए। कुओं में सिर्फ 1010 कुएं ही बचे हैं।
जिले में खेती के लिए पानी बोर से लेने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल का संकट गहरा गया है। किसान खेती के लिए घण्टों बोर से पानी निकल रहे हैं क्योंकि सिंचाई के लिए उनके पास से दूसरा विकल्प नहीं है। सिंचाई बांधों के निर्माण क्षेत्र में भी अधिक काम नहीं हुआ। जिले में दो ही बड़ी सिंचाई परियोजनाएं हैं। 87 छोटे-मोटे बांधों की स्थिति यह है कि सिंचाई के लिए खेतों तक इन बांधों का पानी नहीं पहुंचता। नलकूप न हो तो किसानों की फसल ही सूख जाए।
तालाबों के निर्माण की दिशा में काम काफी कम हुआ है। पिछले 6 साल में सिर्फ 8 सौ नए तालाबों का निर्माण हुआ। जिले में तालाबों की संख्या 8 साल पहले 1968 थी, जिनमें से कई पट भी गए। लेकिन सरकार रिकार्ड में वे आज भी तालाब के रूप में दर्ज है। तालाबों की सफाई नहीं होने से तालाब का पानी नीचे नहीं पहुंच पा रहा है भूजल के स्तर में गिरावट का यही भी एक बड़ा कारण है। हर तीन से चार साल में तालाबों की सफाई करायी जानी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में एक ग्राम पंचायत में 40 से 50 बोर हैंडपंपों के जरिए पानी लिया जाता है। नलजल योजनाओं के जरिए नलकूपों की संख्या में कमी लाई जा सकती है मगर राजनीति कारणों से नेताओं ने हैंडपंपों के लिए नलकूपों की खुदाई को बढ़ावा देते रहे हैं। हालत यह है कि वर्षा जल का केवल 20 से 25 प्रतिशत पानी ही धरती में समा जाता है। जबकि 80 से 85 प्रतिशत धरती का पानी निकला जा रहा है। इसी वजह से भूजल में लगातार गिरावट आ रही है और यही हाल रहा तो भूजल एक दिन इतना नीचे चल जाएगा जहां से पानी निकालना संभव नहीं रह जाएगा।
इसी आसन संकट को देखते हुए सभी राज्य सरकारों को तालाबों और कुओं के निर्माण अधिक से अधिक कराने की सलाह दी गई है। तालाब और कुंआ के निर्माण से भूजल में सुधार होगा। केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को तालाब और कुआं के लिए राशि का आबंटन भी शुरू कर दिया गया है। शहरी क्षेत्रों में कांक्रीट सड़कों का जाल बढ़ने से वर्षाजल का केवल 5 प्रतिशत जल धरती में पहुंच पा रहा है। बरसात का पानी शहरी शहरी क्षेत्र के सीधे नदी नालों में उतर जाता है। वाटर हार्वेस्टिंग जैसे उपायों को शहरों में गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है।


