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नूंह हिंसा : रहने के लिए कोई जगह नहीं, प्रवासी बड़ी संख्या में अपने मूल स्थान पर लौट रहे

हरियाणा के हिंसा प्रभावित नूंह क्षेत्र के टौरू इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के निवासियों ने 31 जुलाई को सांप्रदायिक झड़पों के बाद दुर्व्यवहार और यातना का आरोप लगाया है

नूंह हिंसा : रहने के लिए कोई जगह नहीं, प्रवासी बड़ी संख्या में अपने मूल स्थान पर लौट रहे
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टौरू (हरियाणा)। हरियाणा के हिंसा प्रभावित नूंह क्षेत्र के टौरू इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के निवासियों ने 31 जुलाई को सांप्रदायिक झड़पों के बाद दुर्व्यवहार और यातना का आरोप लगाया है और अब उन्‍हें यहां अपना भविष्य अनिश्चित दिख रहा है, यहां तक कि वे सिर पर छत से भी वंचित हो गए हैं।

प्रभावित निवासियों में से एक नूर मोहम्मद की झोपड़ी को अधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया है। उन्‍होंने गलत तरीके से निशाना बनाए जाने पर निराशा जताई है और हिंसा में उनकी भागीदारी की बात कहे जाने पर सवाल उठाया है।

2 अगस्त को कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने 200 से अधिक झुग्गियों को यह आरोप लगाते हुए ध्वस्त कर दिया था कि इस बस्ती के 14 युवक 31 जुलाई को नूंह जिले में हुई हिंसक झड़प के दौरान पथराव में शामिल थे।

लगभग 150 प्रवासी परिवार तब सुर्खियों में आ गए, जब अधिकारियों ने दावा किया कि कुछ निवासी सांप्रदायिक झड़पों के दौरान दंगों में शामिल थे।

हालांकि, टौरू झुग्गी बस्ती में रहने वाले परिवार इन दावों का विरोध करते हुए कहते हैं कि उन्होंने बेदखली की कोई औपचारिक सूचना या उनके खिलाफ शिकायत प्राप्त किए बिना एक दशक तक इस क्षेत्र में जीवन बिताया है।

राष्ट्रीयता के अपने दावों को प्रमाणित करने के प्रयास में कुछ निवासियों ने अपनी भारतीय पहचान के प्रमाण के रूप में अपने आधार और पैन कार्ड दिखाए। यह समुदाय मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और असम से आया है। समुदाय के लोग उन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी बताए जाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

कचरा बीनने वाले नूर आलम ने कहा, "हमारा घर बेवजह गिरा दिया गया। हम दो दिनों तक सड़क पर सोए और अब हम अपने एक रिश्तेदार के पास जा रहे हैं, जो गुरुग्राम में रहता है।"

वहीं, हाशिम ने कहा, "मैं यहां 2018 से रह रहा हूं। एक कंपनी में काम करता हूं। मेरा घर भी तोड़ दिया गया। हमारे पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। मैं अपने परिवार के साथ तीन दिनों तक सड़क पर सोया। मुझे अपने परिवार के साथ वापस असम लौटना पड़ रहा है, क्योंकि यहां कोई हमें किराए पर घर नहीं दे रहा है।”

हाशिम ने दबे स्वर में कहा, "उन्होंने हमें रोहिंग्या कहा, जबकि हम भारत के निवासी हैं और हमारे भी अधिकार हैं।"

झुग्गी बस्ती के एक अन्य निवासी हसन अली ने बुरेे हालात का दर्द साझा किया। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, "हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है - न खाना और न ही सोने के लिए छत, खासकर बरसात के इस मौसम में हम पर भारी मुसीबत आन पड़ी है। हमें न तो अधिकारियों से कोई मदद मिल रही है और न ही किसी और से।"

इसी बस्ती में रहने वाले हमजा खान ने मौजूदा हालात पर चिंता जताई। उन्‍होंने कहा कि वह असम से आकर यहां रहने लगे। चुनाव के समय उनका परिवार मतदान करने के लिए असम चला जाता है। यहां कुछ लोग पश्चिम बंगाल के हैं, वे भी मतदान करने के लिए अपने मूल स्‍थान पर चले जाते हैं। खान ने कहा, "अब हमारेे पास कोई विकल्प नहीं बचा है। हममें से ज्यादातर लोग अपने मूल स्‍थान पर लौट गए हैं और मैं भी जल्द ही यहां से चला जाऊंगा।"

नूंह में हाल की हिंसा ने अल्पसंख्यक समुदाय पर भय की छाया डाल दी है। वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्‍हें किसी भी समय निशाना बनाए जाने का अंदेशा है।

दूसरी ओर, अधिकारियों का दावा है कि पिछले चार वर्षों में तावडू क्षेत्र में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) की जमीन पर अवैध रूप से झुग्गियां बनाई गई थीं। हिंसा की जांच करते हुए पुलिस ने दावा किया कि अधिकांश प्रदर्शनकारियों ने तावडू और उसके आसपास पथराव किया था और झड़पों के दौरान दुकानों, पुलिस और आम लोगों को निशाना बनाया था।


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