एनटीपीसी लारा में नौकरी की मांग को लेकर हड़ताल पर सवाल
एनटीपीसी के पावर प्लांट में नौकरी की मांग को लेकर 30 से अधिक लोगों ने अपने परिवार के साथ अपनी जमीनें अधिग्रहण करने के बाद नियमानुसार नौकरी की मांग पर अपना आंदोलन बीते कई दिनों से छेड रखा है

मुआवजा लेने के बाद प्रभावित परिवारों को हड़ताल का अधिकार नहीं
रायगढ़। पुसौर के ग्राम लारा में लगे एनटीपीसी के पावर प्लांट में नौकरी की मांग को लेकर 30 से अधिक लोगों ने अपने परिवार के साथ अपनी जमीनें अधिग्रहण करने के बाद नियमानुसार नौकरी की मांग पर अपना आंदोलन बीते कई दिनों से छेड रखा है और प्रभावितों का आरोप है कि एनटीपीसी द्वारा उनकी जमीनें अधिग्रहण करने के बाद जो पुर्नवास नीति बनाई है।
वह ग्रामीणों के हितों के लिए नही है और न ही युवाओं के लिए जमीन के बदले नौकरी देने की कोई पहल की जा रही है। इसी को लेकर सभी युवा अपने परिवारों के साथ-साथ अन्य लोगों के साथ लगातार आंदोलन के जरिए एनटीपीसी प्रबंधन पर आरोप लगा रहे हैं कि पुर्नवास नीति का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। साथ ही साथ नियमानुसार बेरोजगारों को नौकरी भी देने की कोई पहल नही की गई है।
इस पूरे मामले में एक पहलू यह भी है कि आंदोलनकारियों में से अधिकांश लोगों ने अपनी-अपनी जमीनों का मुआवजा ले लिया है इतना ही नही मुआवजा लेने के बाद पुर्नवास नीति में खामियां निकालते हुए हाईकोर्ट की शरण ली थी।
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में कलेक्टर को 3 माह के भीतर सुनवाई के बाद फैसला लेने का अधिकार दिया है। बावजूद इसके भू-विस्थापितों ने अदालत का फैसला आने से पहले ही आंदोलन शुरू कर दिया है, जो कि कानून का खुला उल्लंघन है और कोर्ट की अवमानना की श्रेणी में आता है।
इन आंदोलनकारियों के पीछे एक बड़ा षडयंत्र भी काम कर रहा है जो युवाओं को यह सपने दिखा रहा है कि उन्हें एनटीपीसी जान बुझकर नौकरी नही दे रही है चूंकि उनकी जमीनें लेने के बाद नियमों में यह स्पष्ट है कि जमीनों के बदले बकायदा नौकरी का प्रावधान शासन के नियमों में उल्लेख है।
इन आंदोलनकारियों ने कोरबा के सिपथ पावर प्लांट का भी उदाहरण देते हुए यह आरोप लगाया है कि वहां के भू-विस्थापितों को रायगढ़ जिले के लारा में नौकरी दी गई है और इसीलिए पुसौर ब्लाक के आधा दर्जन से भी अधिक गांव के करीब 36 परिवार मिलकर आंदोलन कर रहे हैं।
अधिकारिक सूत्र बताते हैं कि आंदोलनकारियों को यह मालूम है कि एनटीपीसी में नौकरी नही मिलेगी बावजूद इसके गुमराह होते युवा पीछे हटने का नाम नही ले रहे हैं।
कलेक्टर न्यायालय में चल रहे प्रकरण के बाद अवमानना है खुला उल्लंघन देखने को मिल रहा है और प्रशासन भी कोर्ट की अवमानना के मामले में गंभीरता नही दिखा रहा है ,चूंकि उन्हें डर है कि यह आंदोलन और तेज न हो जाए जबकि नियमों की मानें तो लारा पावर प्लांट के लिए जिन जमीनों का अधिग्रहण किया गया था उन परिवारों को न केवल करोड़ो का मुआवजा दे दिया गया है
बल्कि समय-समय पर बोनस का भुगतान भी किया जा चुका है। अब सवाल यह उठता है कि भू-विस्थापित अचानक मुआवजा लेने के बाद फिर से कैसे आंदोलन कर रहे हैं और इनका आंदोलन अगर सही है तो प्रशासन जवाब क्यों नही दे रहा है।
बीते 60 दिनों से चल रहे आंदोलन को लेकर एनटीपीसी के बड़े अधिकारी भी सामने नही आ रहे हैं और पूरा ठिकरा जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन के उपर फोडा जा रहा है।
होना यह चाहिए कि अगर एनटीपीसी में उन आंदोलनकारियों को मुआवाजा दे दिया है तो क्यों दोबारा आंदोलन में बैठने की जरूरत पड़ी और कौन से ऐसे नियम है जिनके चलते भू-विस्थापितों को एनटीपीसी में नौकरी दी जा सकती है। एन सभी सवालों का जवाब सार्वजनिक तौर पर सामने आना चाहिए।
हड़ताल अवैध- एडीएम
ग्राम लारा में लगे एनटीपीसी पावर प्लांट में नौकरी की मांग को लेकर जो आंदोलन चल रहा है वह पूरी तरह गलत है साथ ही साथ भू-विस्थापितों को न केवल मुआवजा दे दिया गया है बल्कि बोनस भी वितरित किया जा चुका है।
ऐसे में नौकरी का कोई सवाल नही उठता और यह हड़ताल पूरी तरह अवैध है। मामला कलेक्टर न्यायालय में लंबित है बावजूद इसके हड़ताल पर बैठ जाना अदालत की अवमानना है।
पुनर्वास पर प्रशासन को गोल्डमैन रमेश का पत्र
एनटीपीसी-लारा परीक्षेत्र में 62 दिन से चल रहे आंदोलन के अंतर्गत 6 दिनों से चल रहे क्रमिक भूख हड़ताल को सामाजिक संस्थाओं का लगातार समर्थन मिल रहा है। इसी क्रम में आंदोलनकारियों के मांग को सार्थक मानते हुए कुछ जागरूक सामाजिक संस्था भी पत्र द्वारा रायगढ़ कलेक्टर को अर्जियां भेज रहे हैं।
रायगढ़ के प्रमुख सामाजिक संस्था जन चेतना के सदस्य रमेश अग्रवाल ने रायगढ़ कलेक्टर को पत्र लिखा है। जिसमें रायगढ़ कलेक्ट्रेट के पत्र क्रमांक 3131, 3132 /भू-अर्जन/2018 रायगढ़, 12 मार्च का संदर्भ लिया है।
पत्र में यह स्पष्ट उल्लेख है कि उद्योग संचनालय के पत्र 03 सितंबर 2012 मे रायगढ़ कलेक्टर द्वारा अनुशंसित एनटीपीसी के पुनर्वास को रद्द कर यह निर्देशित किया गया है कि जमीन का अधिग्रहण लैंड बैंक के अंतर्गत सीएसआईडीसी द्वारा किया गया है और यहां छत्तीसगढ़ आदर्श पुनर्वास नीति 2005 (यथा संशोधित 2007) का लागू होना बताया है। 1


