पुनर्वास के लिए एनटीपीसी प्रभावितों को प्रशासन ने बुलवाया
प्रशासन ने भूविस्थापितों को इस विषय पर चर्चा के लिए बुलाया है

रायगढ़ । एनटीपीसी लारा में व्यवस्थित पुर्नवास के लिए लंबी लडाई लड़ने के बाद आखिरकार न्यायालय के आदेश पर जिला प्रशासन ने भूविस्थापितों को इस विषय पर चर्चा के लिए बुलाया है।
जिसकी बैठक 22 को रखी गई है। मगर स्थानीय प्रशासन द्वारा जिस प्रकार प्रभावितों के साथ-साथ कंपनी प्रबंधन को भी अपना पत्र रखने के लिए बुलवाया गया है उससे प्रशासन की मंशा पर संदेह की उंगली उठने लगी है। देखना यह है कि प्रभावितों के मामले में वर्षो से लंबित पुर्नवास व्यवस्था आखिर किस करवट बैठती है।
वर्ष 2011 में रायगढ़ जिले के पुसौर ब्लाक के अंतर्गत आने वाले ग्राम लारा में इस वृहद पावर प्लांट को लगाने के लिए वृहद स्तर पर भू- अधिग्रहण शुरू किया गया था। जिसकी जद में निजी वन भूमि तथा शासकीय भूमि भी आ रही थी।
यहां निजी भूमि के लिए एनटीपीसी की ओर से भू-विस्थापितों के लिए व्यवस्थित पुर्नवास और रोजगार की व्यवस्था की जानी थी। किंतु प्रशासनिक उदासीनता और एनटीपीसी प्रबंधन की मनमानी के कारण इसमें व्यापक रूप से विसंगतियां पैदा हुई।
प्रारंभिक तौर पर यदि देखा जाए तो चाहे वह शासकीय हो या प्राईवेट किसी भी कंपनी की स्थापना से पूर्व संबंधित लोगों को बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए जाते है झूठे वादे किए जाते हैं मानों मरूथल में भी तुरंत जमीन खोदकर पानी पिला देंगे। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में एनटीपीसी लारा की पुर्नवास नीति की रूप रेखा तय की गई।
इस दौरान व्यापक तौर पर भू-विस्थापितों, प्रभावितों व भूमिहीनों को कोहिनुर हीरा बांटने जैसे दूर के तारे दिखाए गए। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ हुआ ही नही।
यदि इसके प्रारंभिक पृष्ठभूमि में नजर दौडाई जाए तो वर्ष 2011 में तत्कालीन कलेक्टर अमित कटारिया ने अपने ढंग से पुर्नवास नीति बनवाकर उद्योग संचालनालय को भिजवाई थी किंतु इस मामले में उद्योग संचालानलय ने एक आदेश जारी कर कहा कि जब उक्त जमीन को एनटीपीसी लारा के द्वारा लैंड बैंक योजना के तहत ली गई है तो कोई नया पुर्नवास नीति उसके लिए निर्धारित नही होगा बल्कि छत्तीसगढ़ शासन की पुर्नवास नीति पर एनटीपीसी को अमल करना होगा।
इस प्रकार कंपनी के जिम्मेदार अधिकारी जिस दस्तावेज को छुपाए रखना चाहते थे वही उनके सामने आ गया और जिला उद्योग एवं व्यापार केन्द्र के तत्कालीन जीएम द्वारा एनटीपीसी के पुर्नवास नीति को खारिज करने संबंधी पत्र कंपनी को भेजा गया। किंतु इस पत्र को सार्वजनिक न करके षडयंत्र पूर्वक कूटनीति से दबा कर रखा गया।
जब इस क्षेत्र के प्रभावित जाागरूक हुए तो उनके द्वारा पुर्नवास व नौकरी के लिए आवाज उठनी शुरू हुई। इसी दौरान उनके हाथ ये दस्तावेज लग गए। जिसके तहत वे प्रशासन व एनटीपीसी पर दबाव बनाने लगे।
पानी सिर से गुजरता देख कंपनी प्रबंधन के हाथ पांव फूलने लगे और इसके निदान के लिए जिला प्रशासन एनटीपीसी व प्रभावितों के बीच कई बार की बैठकों में समाधान तलाशने का प्रयास हुआ और अंतत: कोई समाधान नही निकलने पर भू-विस्थापितों ने हाईकोर्ट की शरण ली जिसके कारण तत्कालीन जिला कलेक्टर को इस मामले में प्रशासन का पक्ष स्पष्ट करने के लिए एक नही बल्कि तीन-तीन बार स्वयं उपस्थित होना पड़ा। यही नही संबंधित विभागीय अधिकारियों को भी माननीय हाईर्कोर्ट की कई बार दौड लगानी पड़ी।
अब पेंच यहां पर आकर फंस गया है कि पुर्नवास नीति के अनुसार जिला कलेक्टर द्वारा इसे निर्धारित किया जाता है जैसा कि एनटीपीसी शिपथ बिलासपुर में तत्कालीन कलेक्टर की पहल से हो चुका है।
तब सवाल यह उठता है कि उसी संभाग में आने वाले रायगढ़ जिले में एनटीपीसी के द्वारा पुर्नवास नीति को अलग करवाने की मंशा पर माननीय न्यायालय ने न केवल प्रश्न चिन्ह लगा दिया बल्कि इस संबंध में एक विशेष आदेश पारित किया कि कलेक्टर रायगढ़ द्वारा इन 36 याचिका कर्ताओं की बात को भी सुना जाए और एनटीपीसी प्रबंधन से भी इस संबंध में पृथक से चर्चा करने के बाद न्यायालय में अपना अभिमत दिया जावे।
गौरतलब है कि इस मामले में तत्कालीन कलेक्टर व एसडीएम ने भी हलफनामा दिया था और इसी याचिका में माननीय न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश में कलेक्टर के अभिमत की आवश्यकता जताई गई है। जिसके कारण कहीं न कहीं एनटीपीसी लारा में छत्तीसगढ़ शासन की पुर्नवास नीति अथवा जिले में चल रही पुर्नवास नीति की समीक्षा होना आवश्यक हो गया है।
इस माामले में परदे के पीछे से अब यह भी आवाज आ रही है कि पुर्नवास की स्थिति रायगढ़ जिले में सवैधानिक न होकर अब तक कंपनियों के हित में झुकी हुई और मनमानी ही रही है।
अब जब 36 याचिका कर्ताओं ने माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार अपने आवेदन जिला कलेक्टर कार्यालय में प्रस्तुत कर पावती ली है जिसमें उनके द्वारा माननीय न्यायालय की छायाप्रति भी संलग्न की गई।
तब जाकर जिला प्रशासन गंभीर हुआ और इन 36 याचिकाकर्ताओं से मिलने के लिए 21 एवं 22 मार्च निर्धारित किया गया है। किंतु इस बैठक में एसडीएम रायगढ़ संबंधित अधिकारी जिला व्यापार एवं उद्योग केन्द्र तथा एनटीपीसी केे अधिकारियों को भी इसी बैठक में सम्मलित रूप से बुलावे सम्मिलित किया गया है।
जिससे ऐसा प्रतीत होता है जिला प्रशासन माननीय न्यायालय के आदेशों को गंभीरता से तो मान रहा है परंतु एक साथ 4 पक्षों को एकसाथ बुलाकर कहीं भीतर ही भीतर एनटीपीसी को फायदा पहुंचाने की मंशा तो नही रखता है जबकि न्यायालयीन निर्देश केवल प्रभावितों को अलग से अपना पक्ष रखने के लिए दिया गया है।
अब देखना यह है कि आगामी बैठक में एनटीपीसी लारा के इस बहुप्रतिक्षित पुर्नवास नीति की चर्चा प्रभावितों के पक्ष में होती है या फिर कई बार की तरह इस बार भी प्रशासन इस मामले में उद्योग प्रबंधन की तरफ झुका नजर आता है। जानकारों की मानें तो अगर इस बार भी भू-विस्थापितों के पक्ष में फैसला नही आया तो फिर से इन प्रभावितों के लिए न्यायालय के दरवाजे खुले हैं।


