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अब नतीजों का इंतज़ार

लोकसभा चुनाव के सातवें व अंतिम चरण का मतदान शनिवार को सम्पन्न हो जाने के बाद विभिन्न न्यूज़ चैनलों एवं सर्वे एजेंसियों ने उसी शाम 6.30 बजे के बाद से अपने एक्जिट पोल्स दिखला दिये हैं

अब नतीजों का इंतज़ार
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लोकसभा चुनाव के सातवें व अंतिम चरण का मतदान शनिवार को सम्पन्न हो जाने के बाद विभिन्न न्यूज़ चैनलों एवं सर्वे एजेंसियों ने उसी शाम 6.30 बजे के बाद से अपने एक्जिट पोल्स दिखला दिये हैं और अपने-अपने अनुमानों के अनुसार सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी प्रणीत नेशनल डेमोक्रेटिक एलाएंस यानी एनडीए अथवा उसके खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में लामबन्द हुए इंडिया को जीतता हुआ बतला रहे हैं। भाजपा के स्टार प्रचारक नरेन्द्र मोदी के बहुप्रचारित खुद की पार्टी के बल पर 370 और एनडीए के बूते 400 पार के नारे की तो बात अब हो नहीं रही है लेकिन ट्रेंड यह दिख रहा है कि सत्ता के नजदीक माना जाने वाला मुख्यधारा का मीडिया एनडीए को तथा स्वतंत्र व डिजिटल मीडिया, जिनमें ज्यादातर यू ट्यूबर हैं- इंडिया की जीत का अनुमान जाहिर कर रहे हैं। जो भी हो, मंगलवार को स्थिति साफ हो जायेगी जब परिणाम सामने आ जायेंगे।

यह चुनाव जिस तरीके से लड़ा गया है, वह कई सवाल खड़े करता है। पहला तो यही कि केन्द्रीय निर्वाचन आयोग, जिस पर निष्पक्षतापूर्वक व भयरहित वातावरण में चुनाव कराने की जिम्मेदारी थी, वह ऐसा करने में पूरी तरह से नाकाम रहा है। जिस दिन से इसकी घोषणा हुई थी, तभी से उसने अपनी आंखें, कानों और मुंह को बन्द कर रखा है। गहन संदेहों के घेरे में आई हुई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के जरिये ही चुनाव कराने पर सरकार के इशारे पर आमादा निर्वाचन आयोग 2019 के चुनाव के समय से ही सरकार के पक्ष में खड़ा दिखा था। उसने अपना वही रवैया इस बार भी बनाये रखा। ईवीएम के साथ ही इलेक्टोरल बॉन्ड्स के कारण विपक्षी आलोचना के केन्द्र में रही भाजपा सरकार पर यह भी आरोप लगा कि उसने अपनी जांच एजेंसियों के जरिये खूब चुनावी चंदा बटोरा है और उसके बल पर वह न केवल चुनाव लड़ रही है बल्कि उसने कथित 'ऑपरेशन लोटसट के माध्यम से विरोधी दलों को कमजोर किया, उसकी राज्य सरकारें गिराईं और एक तरह से संघवाद को कुचल दिया है।

इसके अलावा भाजपा ने कई प्रकार से आचार संहिता का उल्लंघन किया जिसमें निर्वाचन आयोग ने भरपूर साथ दिया। मोदी के चुनावी भाषणों में आचार संहिता के किसी भी नियम का ख्याल नहीं रखा गया। उन्होंने अलग-अलग सन्दर्भों में खूब हिन्दू-मुसलमान किया, कांग्रेस व अन्य विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ आधारहीन व अमर्यादित टिप्पणियां कीं। पहले तो उन्होंने इंडिया गठबन्धन को अपमानजनक शब्दों से सम्बोधित किया, फिर कांग्रेस के घोषणापत्र पर 'मुस्लिम लीग की छायाट बतलाई तथा उलजुलूल आरोप लगाये। गैरजिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार का परिचय देते हुए उन्होंने यह कहा कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वह लोगों के मंगलसूत्र छीनकर 'कई बच्चे वालोंÓ को दे देगी। उनका संकेत मुस्लिमों की ओर था। उन्होंने इंडिया सरकार द्वारा एक्सरे कर लोगों के घरों का सोना छीन लेने और सबकी बिजली-पानी काट देने का डर भी दिखाया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक भाषण को गलत उद्धृत करते हुए मोदी ने कह डाला कि यूपीए सरकार का मानना था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। मोदी इस दौरान भविष्य में विकसित भारत बनाने की तो बातें करते रहे परन्तु वे अपने 10 वर्ष के कार्यकाल के दौरान क्या विकास कर सके, इस बाबत चुप्पी साधे रखी। मोदी व भाजपा ने प्रतिपक्ष के कई नेताओं को अपमानित किया। ओडिशा के सुसंस्कृत मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बारे में अभद्र बातें कहीं। हालांकि इनमें उनकी कुछ टिप्पणियां ऐसी थीं कि स्वयं मोदी ही हास्य के पात्र बन गये।

भारत के इतिहास में यह पहला चुनाव है जिनमें कई घटनाएं पहली बार हुईं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया। इसका मकसद दोनों को चुनाव प्रचार से रोकना था। हेमंत तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जेल गये पर केजरीवाल ने पद नहीं छोड़ा। इतना ही नहीं, उन्होंने जमानत पाकर करीब दो हफ्ते जमकर प्रचार किया और अब फिर रविवार को उन्होंने जेल जाने के लिए समर्पण कर दिया। यह कदम भाजपा के लिये आत्मघाती साबित होता दिख रहा है क्योंकि इससे इंडिया और भी मजबूत बन गया तथा दोनों राज्यों में सहानुभूति लहर चल पड़ी। अन्य मामलों की तरह ही निर्वाचन आयोग इस मामले पर भी मौन बना रहा। शनिवार को कांग्रेस के जयराम रमेश ने यह कहकर सनसनी फैलाई कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कलेक्टरों को व्यक्तिगत रूप से फोन कर धमका रहे हैं। ये वही शाह हैं जिनका दावा है कि पांचवें चरण के बाद ही एनडीए को 300 से 310 सीटें मिल चुकी हैं। यानी वह सत्ता बनाने की स्थिति में आ गया है। ऐसा है तो शाह के लिये क्या ज़रूरत है कि वे कलेक्टरों को धमकियां दें? यह इस बात की ओर स्पष्ट संकेत है कि शाह जो कह रहे हैं वैसा कुछ है नहीं। यानी एनडीए सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आया है।

जिस प्रकार मोदी 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदान के पहले एक गुफा में ध्यान लगाने चले गये थे और उन्होंने इसका लगातार प्रसारण कराया, वैसा ही उन्होंने इस बार भी किया। अबकी उन्होंने कन्याकुमारी के प्रसिद्ध स्वामी विवेकानंद स्मारक में ध्यान लगाया और अनेक कैमरों द्वारा वीडियो बनवा कर उसका लगातार प्रसारण कराया। यह भी आचार संहिता का उल्लंघन था। इसके विपरीत कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन ने मजबूती से मिलकर चुनाव लड़ा। जन सरोकार के मुद्दों को अपने विमर्श का हिस्सा बनाये रखा तथा इस चुनाव को लोकतंत्र व संविधान की लड़ाई में बदल दिया।

अब देखना होगा कि चार जून को आने वाले नतीजों में लोकतंत्र व संविधान की रक्षा की गुंजाइश कितनी बचती है और तानाशाही की आशंकाएं खत्म होती हैं या नहीं।


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