अधिसूचना किसी एजेंसी को नए अधिकार नहीं देती : गृह मंत्रालय
मंत्रालय ने कहा कि अधिसूचना 'किसी को भी नए अधिकार नहीं देती है' और 'सभी अलग-अलग मामलों में मंत्रालय या राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत बनी रहेगी

नई दिल्ली। किसी भी कंप्यूटर को भेदने, उसकी निगरानी या उसे डिक्रिप्ट करने का कई खुफिया व जांच एजेंसियों और दिल्ली पुलिस को कथित रूप से अनुमति देने के मामले में आलोचनाओं का सामना कर रहे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आज स्पष्टीकरण जारी किया।
मंत्रालय ने कहा कि अधिसूचना 'किसी को भी नए अधिकार नहीं देती है' और 'सभी अलग-अलग मामलों में मंत्रालय या राज्य सरकार की अनुमति लेने की जरूरत बनी रहेगी।'
मंत्रालय के बयान के अनुसार, सूचना व प्रौद्योगिकी(आईटी) अधिनियम, 2000 में 'पर्याप्त सुरक्षा उपाय' किए गए हैं और इसी तरह के प्रावधान और प्रक्रियाएं समान सुरक्षा उपायों के साथ टेलीग्राफ अधिनियम में पहले से मौजूद हैं।
बयान के अनुसार, "मौजूदा अधिसूचना टेलीग्राफ अधिनियम के अंतर्गत जारी अधिकार के समरूप है।"
बयान के अनुसार, "प्रत्येक अलग-अगल मामलों में गृह मंत्रालय या राज्य सरकार से अनुमति की जरूरत होगी। गृह मंत्रालय ने अपनी शक्तियों को किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या सुरक्षा एजेंसी को नहीं सौंपे हैं।"
कंप्यूटर संसाधनों के जरिए सूचनाओं के कानूनी भेदन या निगरानी या डिक्रिप्शन के कुछ बिंदुओं के बारे में चर्चा करते हुए, मंत्रालय ने सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के इंटरसेप्शन, निगरानी और डिक्रिप्टेशन के लिए प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 का हवाला दिया है।
बयान के अनुसार, नियम में बताया गया है कि संबंधित विभाग, सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर में आदान-प्रदान किए गए, प्राप्त किए गए या संग्रहित सूचनाओं को भेदने, निगरानी करने और डिक्रिप्ट करने के लिए प्राधिकृत करने का अधिकार दे सकता है।
बयान के अनुसार, "20 दिसंबर को जारी वैधानिक आदेश वर्ष 2009 में बनाए गए नियम के अनुसार जारी किया गया है और यह तब से प्रचलन में है। अधिसूचना मौजूदा आदेश को आईएसपी(इंटरनेट सेवा प्रदाताओं), टीएसपी और मध्यवर्ती संस्थाओं द्वारा विधिबद्ध करने के लिए जारी किया गया।"
बयान के अनुसार, "हस्तक्षेप, निगरानी और डिक्रिप्शन के प्रत्येक मामले में संबंधित विभाग जैसे केंद्रीय गृह सचिवालय से स्वीकृति लेना आवश्यक होगा।"


