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मप्र के ई-टेंडरिंग घोटाले में कुछ नहीं मिला, सबको मिली क्लीन चिट

मध्य प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर देने वाले ई-टेंडरिंग घोटाले के आरोपों से घिरी मैक्स मंटेना को क्लीन चिट मिल गई है।

मप्र के ई-टेंडरिंग घोटाले में कुछ नहीं मिला, सबको मिली क्लीन चिट
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भोपाल । मध्य प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर देने वाले ई-टेंडरिंग घोटाले के आरोपों से घिरी मैक्स मंटेना को क्लीन चिट मिल गई है।

इस कंपनी पर ई-टेंडरिंग घोटाले के लगे आरोपों को पहले आर्थिक अन्वेषण विभाग (ईओडब्ल्यू) सिद्ध नहीं कर पाया था और अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रकरण को हैदराबाद उच्च न्यायालय ने खारिज करके कंपनी के प्रमुख को निर्दोष करार दिया है।

ईओडब्ल्यू भोपाल ने 10 अप्रैल 2019 को एक प्रकरण दर्ज किया था, जिसमें कहा गया था मध्य प्रदेश के ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर जारी ई-टेंडर में अनाधिकृत एक्सेस बनाई गई। आरोप लगा कि मैक्स मंटेना ने सिंचाई विभाग के टेंडर क्र. 10030 में 1030 करोड़ रुपए के टेंडर के लिए प्रतिनिधि के माध्यम से अपनी बोली लगाई थी।

संदेह जताया गया था कि 2016 के बाद से ऐसे 80,000 करोड़ रुपए के टेंडरों में हेराफेरी की गई। मामले में ईओडब्ल्यू न्यायाल्य में पहले साक्ष्य पेश नहीं कर पाई। ईओडब्ल्यू के मामले के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के प्रकरण दर्ज किया था।

यह कंपनी तेलंगाना की है, इसलिए मामला तेलंगाना उच्च न्यायालय में गया, जहां से उसे खारिज कर दिया गया है।

मंटेना ग्रुप के प्रमोटर एमएस राजू इस प्रकरण में निर्दोष साबित हुए हैं।

तेलंगाना उच्च न्यायालय के जस्टिस एम लक्ष्मण ने साक्ष्य और परिस्थिति को देखते हुए मंटेना के खिलाफ की गई कार्रवाई को कानून का दुरुपयोग माना है।

अदालत ने कहा कि अगर यह कानूनी कार्रवाई जारी रहती है तो याचिकाकर्ता मंटेना के प्रति अन्याय होगा, इसलिए इस प्रकरण को यहीं खारिज कर दिया जाए।

अदालत ने सख्त भाषा में लिखा कि केवल संदेहों को विश्वास का कारण नहीं बनाया जा सकता, कुछ सबूत होने चाहिए।

जस्टिस लक्ष्मण ने आठ अगस्त 2023 को दिए अपने फैसले में साफ लिखा है कि ईडी ने प्रकरण आर्थिक अन्वेषण विभाग (ईओडब्ल्यू) भोपाल की ई-टेंडर संबंधी एफआईआर के आधार पर दर्ज किया था। किंतु, ईओडब्ल्यू का प्रकरण ही सिद्ध नहीं हो पाया।

उल्लेखनीय है कि ई-टेंडर प्रकरण के सभी आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने छोड़ दिया है। जस्टिस लक्ष्मण ने फैसले में लिखा कि ईडी ने संदेह व्यक्त किया था कि 2016 के बाद से ई-टेंडर में हेराफेरी हुई है और इसमें 80 हजार करोड़ की राशि शामिल है, उसके भी कोई साक्ष्य नहीं मिले।

ई-टेंडर प्रकरण में ऐसी किसी हेराफेरी (टैम्परिंग) को साबित नहीं किया जा सका है, जिससे यह भरोसा किया जा सके कि कोई आपराधिक आय प्राप्त की गई है।

जस्टिस लक्ष्मण ने इस प्रकरण में पूर्व के दो फैसलों का हवाला दिया। विजय मंडल चौधरी और जे. सेकर के केस का उल्लेख करते हुए जस्टिस लक्ष्मण ने कहा कि किसी अपराध के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हासिल की गई संपत्ति (धन) को ही आपराधिक आय माना जा सकता है।

आपराधिक आय को सिद्ध करने के लिए सबसे पहले तो यह साबित होना चाहिए कि अपराध हुआ है। किसी धन संपत्ति को हवाला कानून के तहत लाने के लिए पर्याप्त आधार होना चाहिए। केवल संदेह को तो विश्वास का कारण नहीं बनाया जा सकता।

हाईकोर्ट ने यह रेखांकित किया कि इस प्रकरण में तो अपराध ही साबित नहीं हुआ, फिर आपराधिक आय का प्रकरण कैसे बनता है।

प्रवर्तन निदेशालय ने ईओडब्ल्यू की जिस चार्जशीट को आधार बनाया था, उस चार्ज शीट के आरोपी पहले ही बरी हो गए हैं, ईओडब्ल्यू ने दो चार्ज शीट लगाई थीं। संबंधित ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपियों को छोड़ दिया था।

मध्य प्रदेश सरकार ने आरोपियों को बरी करने के आदेश को भी कहीं चुनौती नहीं दी थी। लिहाजा उन्हें बरी करने का आदेश अंतिम रूप से लागू हो गया।

ईडी भी 2016 के बाद के कथित घोटालों के दावे पर कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। इसी कारण याचिकाकर्ता मैक्स मंटेना ने ईडी के प्रकरण को खारिज करने के लिए तेलंगाना हाई कोर्ट के सामने याचिका प्रस्तुत की थी।

अब हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस मामले से संबंधित कोई याचिका हो तो भी उसे रोक दिया जाए।


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