एलओसी पर और कुछ नहीं, खोई हुई चौकिओं पर कब्जे की जंग हो रही है
पिछले एक अरसे से सीजफायर के जारी रहने के बावजूद एलओसी पर होने वाली भीषण गोलाबारी के पीछे का सबसे बड़ा कारण खोई हुई उन फारवर्ड पोस्टों पर कब्जे की जंग

-सुरेश एस डुग्गर--
जम्मू । पिछले एक अरसे से सीजफायर के जारी रहने के बावजूद एलओसी पर होने वाली भीषण गोलाबारी के पीछे का सबसे बड़ा कारण खोई हुई उन फारवर्ड पोस्टों पर कब्जे की जंग है जिसमें हर बार पाक सेना को मुंह की खानी पड़ रही है। यह जंग सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट पर हवाई हमलों के बाद से आरंभ हुई है।
सेनाधिकारियों के बकौल, कल पल्लांवाला तथा अखनूर सेक्टर में भी पाक सेना की फारवर्ड पोस्टों पर कब्जा जमाने की कोशिशों को भारतीय सेना ने नाकाम बना दिया था। यह फारवर्ड पोस्टें एलओसी पर पाकिस्तान की ओर ही हैं और भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारतीय सेना ने टैंक भेदी मिसाइलों की मदद से उन्हें उड़ा दिया था।
अब पाक सेना इन चौकिओं को पुनः बनाना और कब्जाना चाहती है। पर भारतीय पक्ष ऐसा करने नहीं दे रहा। दरअसल 814 किमी लंबी एलओसी पर पाक सेना की तकरीबन तीन दर्जन जिन फारवर्ड पोस्टों को भारतीय सेना ने तोपखानों और मिसाइलों की मदद से नेस्तनाबूद किया था वे लांचिंग पैडों के तौर पर इस्तेमाल की जा रही थीं जहां से आतंकियों को इस ओर लांच किया जा रहा था।
सिर्फ आतंकियों को ही नहीं बल्कि इन चौकिओं का इस्तेमाल भारतीय इलाकों मे भारतीय सेना के गश्ती दलों तथा भारतीय सेना के कुछ फारवर्ड बंकरों पर कब्जा जमाने के इरादों संे बैट हमलों के लिए भी प्रयोग में लाया जा रहा था। और जब भारतीय सेना को आक्रामक रूख अपनाने का निर्देश मिला तो पाक सेना तिलमिला उठी है।
नतीजा सामने है। पाक सेना चाह कर भी अभी तक अपनी खोई हुई फारवर्ड पोस्टों तथा बंकरों को वापस नहीं पा सकी है। जानकारी के लिए करगिल युद्ध के बाद भारतीय सेना ने अपनी उन फारवर्ड चौकिओं तथा बंकरों को खाली ही नहीं किया जो हजारों फुट की ऊंचाई पर थे और जिन पर कब्जे की जंग ही असल में करगिल युद्ध के रूप में सामने आई थी।
ऐसे में भारतीय सेना के आक्रामक रूख का नतीजा सामने है। बिफरी और तिलमिलाई हुई पाक सेना भयानक सर्दी के बीच सारी एलओसी को गोलाबारी और मिसाइल हमलों से गर्माए हुए है जबकि सच्चाई यह है कि जबरदस्त और आक्रामक जवाबी कार्रवाई के कारण उसे भयानक क्षति के उस दौर से गुजरना पड़ रहा है जो उसे कभी युद्धों में भी नहीं उठानी पड़ी थी।


