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आप में भितरघात

आम आदमी पार्टी की, जिसके सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सीढ़ी बनाकर राजनीति में ऊंचाइयां हासिल की थीं, लेकिन अब उन पर ही गंभीर आरोप लग रहे हैं

आप में भितरघात
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किसी ख्याल को जंजीर कर रहा हूँ मैं

शिकस्ता ख्वाब की ताबीर कर रहा हूँ मैं

मेरे मकान का नक्शा तो है नया लेकिन

पुरानीं ईंट से तामीर कर रहा हूँ मैं

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बीते सप्ताह दुनिया ने फ्रांस में एक नई क्रांति देखी। जब दुनिया पूंजीवाद, तानाशाही और राजशाही के चंगुल में फंसी हुई थी, तब इससे निकलने के लिए लोकतंत्र की नयी बयार फ्रांस से ही बही थी। और अब एक बार फिर, जब यह विचार जोर पकड़ रहा था कि दुनिया में दक्षिणपंथी ताकतों का बोलबाला हो रहा है, तब फ्रांस में उदारवादी और मध्यमार्गी इमैनुएल मैक्रों ने धुर दक्षिणपंथी नेता मरी-ल-पेन को हरा दिया। महज 39 साल के मैक्रों ने सबसे युवा राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल किया है। फ्रांसीसी गणतंत्र में 1958 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि चुना गया राष्ट्रपति सोशलिस्ट अथवा रिपब्लिकन पार्टी से नहीं है। विश्व राजनीति में पिछले कुछ समय से संरक्षणवादी विचारधारा जोर पकड़ रही है, यानी अपने देश और अपने नागरिकों के हितों को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बताना, नेताओं का नया शगल हो गया है। पहले के नेताओं की भी प्राथमिकता यही थी, लेकिन उसमें संकुचित सोच नहीं थी, अब अपने हितों के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा मिल रहा है।अमरीका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद ऐसा ही लग रहा था फ्रांस भी संरक्षणवाद की राह पर आगे बढ़ेगा। वहां आर्थिक मंदी का असर महंगाई और बेरोजगारी के रूप में है। शरणार्थियों की समस्या है। और पिछले कुछ समय से आतंकवाद का साया बढ़ गया है। ऐसे में फ्रांस के उदार समाज में भी कट्टरता पैर फैला रही थी। लेकिन मैक्रों की जीत से शायद परिदृश्य में बदलाव आए।https://www.youtube.com/embed/NCvdSuFXmTs
फ़्रांस के बाद दक्षिण कोरिया में भी निज़ाम बदला है। उत्तर कोरिया के साथ पिछले कुछ समय से तनाव बढ़ गया है और इस बीच हुए चुनाव में वामपंथी झुकाव वाले पूर्व मानवधिकार वकील मून-जाए-इन ने ज़बरदस्त जीत हासिल की है। दिलचस्प तथ्य यह कि मून उत्तर कोरिया के शरणार्थी के बेटे हैं और उन्होंने उत्तर कोरिया के तानाशाह किम-जोंग के साथ संवाद का समर्थन किया है। ऐसी आशंका फैलाई जा रही है कि उत्तर कोरिया के कारण परमाणु युद्ध हो सकता है, ऐसे में दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति के द्वारा संवाद की बात विश्व शांति के आसार बढ़ाती है। भारतजी दक्षिण कोरिया के नए राष्ट्रपति के साथ अमेरिका कितना सहयोग करेगा ?

एक ओर निजाम बदल रहे हैं, दूसरी ओर अपने नेताओं के प्रति लोगों की निगाहें बदल रही हैं। जी हां बात हो रही है, भारत की राजनीति की.. जहां कुछ दलों में इन दिनों राग बगावत गाया जा रहा है। पहले बात करते हैं आम आदमी पार्टी की, जिसके सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को सीढ़ी बनाकर राजनीति में ऊंचाइयां हासिल की थीं, लेकिन अब उन पर ही गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोप विपक्षी दल के नेता नहीं लगा रहे, बल्कि उनकी सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने उनकी ईमानदारी पर सवाल उठाया है। दरअसल पंजाब, गोवा और फिर दिल्ली नगर निगम के चुनावों में मिली हार के बाद आम आदमी पार्टी का कुनबा बिखरने लगा है। उसके कई नेता अरविंद केजरीवाल से बिदकने लगे हैं। कुछ ने उनका साथ छोड़ दिया है, कुछ कुमार विश्वास की तरह हैं, जो साथ रहकर भी साथ दिखाई नहीं देते हैं और कुछ कपिल मिश्रा की तरह बगावती हो गए हैं। कपिल मिश्रा तो अब केजरीवाल की राह पर चलते हुए अनशन पर ही बैठ गए हैं। भारत जी इस ईमानदारी के दावे वाले अनशन के बारे में आप क्या सोचते हैं? जो आरोप केजरीवाल पर लग रहे हैं, उनके बारे में आपका क्या कहना है? अगर वाकई उन्होंने पैसे लिए थे, जैसा कि श्री मिश्रा का आरोप है, तो अब तक कपिल मिश्रा चुप क्यों थे?

आप के बाद अब बसपा में भी मायावती के करीबी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बहन जी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। उन्होंने मायावती के खिलाफ कई ऑडियो टेप जारी कर सनसनी मचा दी, जिसके बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित किया गया। अब नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आरोप लगाया है कि मायावती उनकी हत्या करवा सकती हैं। कपिल मिश्रा की ही तरह श्री सिद्दीकी को अपनी नेता में अचानक खोट नज़र आने लगा है। वैसे बसपा के हालात पर गौर करें तो पार्टी न राज्य की सत्ता में है और ना ही केंद्र की सत्ता में उसकी कोई दखल है। ऐसे में पार्टी में टूट- फूट तो होगी ही।


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