अंधमूक बधिर शाला में 11 वर्षों से प्राचार्य हैं न शिक्षक
समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित संभाग के इकलौते श्रवण एवं दृष्टि बाधित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तिफरा में एक भी व्याख्याता नहीं है
बिलासपुर। समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित संभाग के इकलौते श्रवण एवं दृष्टि बाधित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तिफरा में एक भी व्याख्याता नहीं है। जबकि स्थापना वर्ष 2006 में पांच व्याख्याता व एक प्राचार्य के पद स्वीकृत किया गया था। वहीं अध्यापन कार्य वैकल्पिक शिक्षकों के माध्यम से की जा रही है।
नि:शक्तजनों के अध्ययन के लिए समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित संभाग के एक मात्र श्रवण एवं दृष्टि बाधितार्थ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तिफरा में पांच व्याख्याताओं के पद स्वीकृत है। साथ ही एक प्राचार्य का पद भी खाली है। लेकिन अभी तक यहां किसी व्याख्याता और न हीं कोई प्राचार्य पदस्थ किए गए। वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षण कार्य किया जा रहा है। यहां कुल 24 कक्षाएं लगती है। शिक्षण कार्य भगवान भरोसे चल रहा है। छात्रावास भवन जर्जर हालत में है।
वहीं बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण कमरे की भी दरकार है। जिले में श्रवण एवं दृष्टि बाधित बच्चों की शिक्षा व सर्वांगीण विकास के लिए सन् 1967 में विद्यालय की स्थापना की गई थी। वर्ष 2006 में इसका उन्नयन कर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बनाया गया है। लगभग 250 बच्चों के लिए यहां 24 कक्षाएं संचालित की जाती है। 12-12 अलग-अलग कमरे में कक्षाएं लगाई जाती है। 12 कक्षाएं के लिए केवल 07 शिक्षक है। इसी तरह दृष्टि बाधित बच्चों के लिए 12 कक्षाएं लगाई जाती है।
ललित कला, हिंदी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान के लिए पांच व्याख्याताओं का पद भी स्कूल उन्नयन के साथ ही स्वीकृत की गई है, लेकिन आज तक इस पद पर किसी की पदस्थापना नहीं करवाई जा सकी है। जिसके कारण अघ्यापन कार्य पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। शासन यहां की स्थिति से पूरी तरह अवगत है लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं किया गया है। इस विद्यालय को समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है। लेकिन विभाग के जिम्मेदार अधिकारीे स्कूल संचालन करने से बचना चाह रहे है। तभी तो स्थापना के ग्यारह वर्ष बाद भी व्याख्याताओं की पदस्थापना नहीं की जा सकी है
छात्रावास भवन जर्जर
छात्रावास भवन भी जर्जर हालत में है कई जगह से प्लास्टर उखड़ चुका है। भवन की दीवारों पर पेड़ -पौधे उग आए है सभी कमरों में पंखे भी नहीं है। हास्टल में स्वच्छ पानी की व्यवस्था भी नहीं है। वाटर कूलर पहले से ही खराब है। दूर-दराज के लगभग 150 बच्चें यहां रहते है। साथ ही यहां गर्ल्स हास्टल की व्यवस्था भी जरूरी है। छात्रावास में भोजन का मीनू कहीं पर भी चस्पा नहीं किया गया है। इससे स्पष्ट नहीं हो पाता है कि आखिर बच्चों को रोज क्या-क्या खिलाया जाता है।
गार्डन हाल-बेहाल
स्कूल परिसर में स्थित गार्डन का हाल-बेहाल है। झूले टूट चुके है। मवेशियों का दिन भर जमावड़ा रहता है। देख-रेख के अभाव में गार्डन बच्चों के खेलने लायक नहीं रह गया है। स्कूल प्रबंधन द्वारा गार्डन व्यवस्थित रहे इसके लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और नहीं इसके लिए कोई माली की नियुक्ति की गई है। ज्यादातर छात्रावास में रहने वाले बच्चों को ही गार्डन की बदहाल व्यवस्था से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सबसे ज्यादा यहीं रहने वाले बच्चें खेलते है।
शिक्षा गुणवत्ता सुधार की कोई योजना नहीं
शासन द्वारा स्कूलों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए शिक्षा गुणवत्ता योजना के साथ-साथ कई योजनाएं चलाई जा रही है। जिसका लाभ छात्रों को मिल रहा है। दूसरी ओर श्रवण एवं दृष्टि बाधित बच्चों का शैक्षिक स्तर सुधारने के लिए शासन कोई ठोस योजना अब तक नहीं बना पाई है। इस तरह इन बच्चों को शासन के कई योजनाओं से वंचित होना पड़ रहा है। यहां कोई व्याख्याता आना भी नहीं चाहता जबकि शासन द्वारा स्कूल शिक्षा विभाग के व्याख्याताओं को प्रशिक्षित कर पदस्थ किया जा सकता है।


