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अंग्रेजी से दुश्मनी की जरूरत नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को यहां कहा कि लोगों को स्थानीय भाषा को महत्व देने के लिए अंग्रेजी भाषा से दुश्मनी करने की कोई जरूरत नहीं है

अंग्रेजी से दुश्मनी की जरूरत नहीं
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नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को यहां कहा कि लोगों को स्थानीय भाषा को महत्व देने के लिए अंग्रेजी भाषा से दुश्मनी करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी की श्रेष्ठता का विचार सिर्फ उनके दिमाग में है। यहां विज्ञान भवन में 'भविष्य का भारत : आरएसएस का एक दृष्टिकोण' सम्मेलन के अंतिम दिन एक प्रश्न के जवाब में भागवत ने कहा, "दैनिक कार्यो में अंग्रेजी का वर्चस्व नहीं है, इसका वर्चस्व हमारे दिमाग में है। हमें अपनी मातृभाषा का सम्मान करना शुरू करना होगा।"

उन्होंने कहा, "सभी को अपनी भाषा में प्रवीणता लानी चाहिए। हमें किसी भाषा से दुश्मनी करने की जरूरत नहीं है।"

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि लोगों को अंग्रेजी भाषा को त्यागने की जरूरत नहीं है, बल्कि दिमाग में जो इसका पागलपन भरा है, उसे मिटाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, "अंग्रेजी को हटाने की कोई जरूरत नहीं है, इसे वहीं रहने दो जहां वह अभी है। हमें अंग्रेजी का पागल हटाने की जरूरत है, जो हमारे दिमाग में है। एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में इसकी प्रतिष्ठा को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है.. यहां तक कि अमेरिकी भी अंग्रेजी बोलते हैं, लेकिन वे अंग्रेजी भाषा के अपने ब्रांड पर जोर देते हैं। फ्रांस के लोग फ्रेंच बोलते हैं। अगर आप इजरायल जाएं तो आपको हिब्रू सीखनी पड़ेगी। रूस जाने से पहले आपको रूसी भाषा सीखनी पड़ेगी।"

उन्होंने लोगों को कम से कम एक भारतीय भाषा सीखने की सलाह दी तथा हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए कानून लाने की बात को खारिज कर दिया।

भागवत ने कहा, "अन्य भाषाओं पर एक भाषा लागू करना कड़वाहट पैदा करता है.. लेकिन जल्द ही एक मात्र राष्ट्रीय भाषा होगी और सभी प्रशासनिक कार्य उसी भाषा में होंगे।"

'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' पर उन्होंने कहा कि यह व्यापक रूप से भारतीय परंपरा और आधुनिक शिक्षा पद्धतियों के उपयोगी तत्वों पर आधारित होनी चाहिए।

उन्होंने शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर खेद व्यक्त किया और महज डिग्री लेने की अपेक्षा व्यावसायिक शिक्षा में निपुणता पर जोर दिया।

उन्होंने यह भी माना कि देश में अनुसंधान का स्तर कम है।


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