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नीतीश ने राजनीति करने का सियासी ट्रेंड बदला

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहचान 'न्याय के साथ सुशासन' की रही है, मगर हाल के दिनों में इन्होंने राजनीति करने का खुद का ट्रेंड बदल लिया है

नीतीश ने राजनीति करने का सियासी ट्रेंड बदला
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पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहचान 'न्याय के साथ सुशासन' की रही है, मगर हाल के दिनों में इन्होंने राजनीति करने का खुद का ट्रेंड बदल लिया है, इसलिए इनकी छवि अब सामाजिक मुद्दों पर सियासत करने वाले राजनेता की बनने लगी है।

ऐसा नहीं है कि शुरुआत में नीतीश ने सामाजिक बदलाव को लेकर कदम नहीं उठाया था, लेकिन अब समाज की कुरीतियों के लिए जन जागरूकता अभियान चलाकर वह सियासत में नया ट्रेंड स्थापित करने की ओर अग्रसर हुए हैं।

वैसे, नीतीश को करीब जानने वाले एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि नीतीश शुरुआत से ही राजनीति में पुराने, घिसे-पिटे ट्रेंड को छोड़कर नई राह अपनाते रहे हैं। वह सामाजिक बदलाव की सियासत में यकीन रखते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और छात्राओं को स्कूल पहुंचाने के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री साइकिल योजना, मुख्यमंत्री पोशाक योजना शुरू की। कड़ी आलोचनाओं और असफलता जैसी बातों के बाद भी नीतीश ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू की।

राजनीति के जानकार और नीतीश को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि नीतीश कुमार बिहार की सियासत में उन सामाजिक मुद्दों को अपने अभियान में शामिल करते रहे हैं, जो मुद्दा आम लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।

उन्होंने कहा, "नीतीश न केवल ऐसे मुद्दों को लेकर अपना वोटबैंक मजबूत करते हैं, बल्कि इससे समाज को भी लाभ पहुंचता है। राजनीति करने की उनकी शैली भी पुराने नेताओं से भिन्न है। ऐसे में जब उनके निर्णयों से समाज को लाभ पहुंचता है, तो स्वभाविक है कि उनके वोटबैंक में भी इजाफा होता है।"

बिहार सरकार ने शराबबंदी के लिए लोगों को जागरूक करने के मकसद से न केवल मानव श्रृंखला बनवाई, बल्कि गांव-गांव तक इस अभियान को पहुंचाया। शराबबंदी की सफलता के बाद नीतीश की पार्टी जद (यू) ने सामाजिक कुरीतियों- दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है।

वैसे, नीतीश ऐसे सामाजिक मुद्दे उठाते रहे हैं, जो आम लोगों के हितों से जोड़कर उसे अभियान बना देते हैं। ऐसे में विपक्ष चाहकर भी नीतीश की आलोचना नहीं कर पाता। इसी के तहत नीतीश ने पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर महिला सशक्तीकरण के लिए पूरे देश में नजीर पेश की है।

किशोर कहते हैं, "नीतीश सियासी मुद्दों को आम लोगों के हितों से जोड़कर देखते हैं। उनका फैसला कई बार खुद के एक खास तर्क पर आधारित होता है। विपक्ष में रहने के बावजूद उनका नोटबंदी, राष्ट्रपति चुनाव और जीएसटी के मुद्दे पर केंद्र सरकार का खुलकर समर्थन करना यह प्रमाणित करता है कि वह राजनीति में दलीय स्वार्थ से ऊपर उठकर कई फैसले लेते हैं।"

जनता दल (युनाइटेड) के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि नीतीश की पहचान अलग तरह की सियासत करने की रही है। वह कहते हैं कि नीतीश के मुख्यमंत्रित्वकाल में बिहार लगातार पिछले 12 वर्षो से विनिर्माण क्षेत्र की विकास दर में राष्ट्रीय औसत से आगे रहा है। अपने सीमित संसाधनों से ही बिहार सरकार मानव विकास सूचकांक को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने की कोशिश में है।

सरकार ने मानव विकास सूचकांक को बेहतर बनाने के लिए ही राज्य में शराबबंदी, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी बुराइयों को खत्म करने के लिए समाज में जनजागरूकता अभियान चलाया गया है, जिससे प्रति व्यक्ति आय के माध्यम से सामान्य जीवनस्तर को सुधारा जा सके।

वैसे, विपक्ष को नीतीश के इन अभियानों में खुद का चेहरा चमकाने का स्वार्थ नजर आता है। राजद विधायक भाई वीरेंद्र कहते हैं कि नीतीश सत्ता के लिए और खुद के फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। उन्हें समाज से ज्यादा खुद का चेहरा चमकाने की ज्यादा चिंता रहती है। उन्होंने कहा कि शराबबंदी के नाम पर गरीबों को जेल भेजा जा रहा है, लेकिन रसूखदार लोगों के यहां चोरी-छिपे शराब अब भी पहुंच रही है। हाल ही में गया से भाजपा सांसद हरि मांझी के बेटे को शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार किया है।

बहरहाल, इतना तो जरूर है कि नीतीश ने सामाजिक मुद्दों पर सियासत कर बिहार में राजनीति का नया ट्रेंड स्थापित किया है, जिसमें विपक्ष को भी आलोचना के लिए बहुत कुछ नहीं मिलता।


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