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आरओ को लेकर एनजीटी ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को लगाई फटकार

एनजीटी ने जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है वहां रिवर्स ओस्मोसिस (आरओ) उपकरणों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने के आदेश का पालन करने पर विफल रहने पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को कड़ी फटकार लगाई है

आरओ को लेकर एनजीटी ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को लगाई फटकार
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नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है वहां रिवर्स ओस्मोसिस (आरओ) उपकरणों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने के आदेश का पालन करने पर विफल रहने पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को कड़ी फटकार लगायी है और अंतिम मौका देते हुए मंत्रालय के संबद्ध अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कदम उठाने की चेतावनी दी है।

एनजीटी अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 04 नवंबर को इस मामले में सुनवायी की और अपने पहले के आदेश (05 मई 2019 ) पर अमल नहीं करने पर मंत्रालय की खिंचाई की। एनजीटी इस मसले पर चार साल से काम कर रहा है।

एनजीटी ने विशेषज्ञ रिपोर्ट के आधार पर आरओ के संबंध में आदेश दिया गया था कि जिन जगहों पर पानी में टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (टीडीएस) की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है, वहां घरों में आपूर्ति होने वाले नल का पानी सीधे पिया जा सकता है। एनजीटी ने सरकार को इस बारे में नीति बनाने का भी निर्देश दिया था। लेकिन मंत्रालय ने इसके लिए आठ माह का समय मांगा जिस पर न्यायाधिकरण ने उसके खिलाफ कानूनी कदम उठाने की चेतावनी दी है।

एनजीटी ने यह भी कहा था कि 60 फीसदी से ज्यादा पानी देने वाले आरओ के इस्तेमाल की ही मंजूरी दी जाए और लोगों को मिनरल वाले पानी से सेहत को संभावित नुकसानों के बारे में भी बताया जाए।

न्यायाधीश गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उसके द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद आदेश पारित किया था और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को ये निर्देश दिए थे। समिति ने कहा था कि अगर टीडीसी 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है तो आरओ प्रणाली उपयोगी नहीं होगी बल्कि उससे महत्वपूर्ण खनिज निकल जाएंगे और साथ ही पानी की अनुचित बर्बादी होगी।

एनजीटी ने कहा था,“ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय उन स्थानों पर आरओ के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाली उचित अधिसूचना जारी कर सकता है जहां पानी में टीडीएस 500 एमजी प्रति लीटर से कम है और जहां भी आरओ की अनुमति है वहां यह सुनिश्चित किया जाए कि 60 प्रतिशत से अधिक पानी को पुन: इस्तेमाल में लाया जाए।” समिति ने 30 अप्रैल को रिपोर्ट सौंपी थी और एनजीटी ने 20 अप्रैल को ये आदेश दिये थे। एनजीटी ने इस वर्ष 23 सितंबर को इस मसले पर पुन: सुनवायी की और इस दौरान उसने पाया कि उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है जो घोर लापरवाही है। इसके साथ मंत्रालय ने ईमेल के माध्यम ने आठ माह का समय भी मांगा है।

एनटीजी ने इस पर ऐतराज जताते हुए कहा है 31 दिसंबर तक अंतिम मौका दिया जा रहा है और आदेश का पालन नहीं करने पर एक जनवरी 2020 से मंत्रालय के संबद्ध अधिकारियों का वेतन रोक के लिए आदेश पारित किया जायेगा। उसने कहा,“एनजीटी का आदेश का पालन अनिवार्य है और ऐसा नहीं करने पर कानूनी कदम के तहत जेल की सजा भी हो सकती है।
मामले की अगली सुनवायी की तिथि 10 जनवरी 2020 मुकर्रर की गयी है।


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