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रूस की अपीलः अपना आईएमएफ बनाए ब्रिक्स

रूस ने अपील की है कि ब्रिक्स में आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक जैसे संस्थाएं बनाई जाएं ताकि पश्चिमी व्यवस्था को चुनौती दी जा सके

रूस की अपीलः अपना आईएमएफ बनाए ब्रिक्स
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इस महीने रूस के कजान शहर में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन होना है. इससे पहले रूस ने अपील की है कि आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक जैसे अपनी संस्थाएं बनाई जाएं.

इस साल ब्रिक्स समूह के अध्यक्ष रूस ने अपने साझेदारों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का एक विकल्प बनाने का आह्वान किया है ताकि पश्चिमी देशों के राजनीतिक दबाव का मुकाबला किया जा सके. यह अपील इस महीने के अंत में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले की गई है.

ब्रिक्स अब 10 देशों का संगठन है जिसका गठन ब्राजील, रूस, भारत और चीन ने किया था और बाद में दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ. पिछले साल इसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब भी जुड़ गए. इस हफ्ते मॉस्को में ब्रिक्स के प्रमुख वित्त और केंद्रीय बैंक के अधिकारियों की बैठक हो रही है.

इस बैठक के मेजबान, रूस के वित्त मंत्री एंटोन सिलुआनोव ने कहा कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित है और 37 फीसदी वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करने वाले इस समूह को एक विकल्प बनाना चाहिए.

सिलुआनोव ने बैठक के पहले दिन एक कार्यक्रम में कहा, "आईएमएफ और विश्व बैंक अपनी भूमिकाएं नहीं निभा रहे हैं. वे ब्रिक्स देशों के हित में काम नहीं कर रहे हैं."

उन्होंने आगे कहा, "हमें नए हालात बनाने की जरूरत है या फिर नए संस्थान बनाने होंगे, जो ब्रेटन वुड्स संस्थानों (आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक) जैसे हों. लेकिन ये हमारे समुदाय, यानी ब्रिक्स के दायरे में होना चाहिए."

प्रतिबंधों से जूझता रूस

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस की विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में रखी डॉलर और यूरो की संपत्तियां फ्रीज कर दी गईं और उसकी वित्तीय प्रणाली पर पश्चिमी देशों ने कड़े प्रतिबंध लगा दिए. इसके बाद से रूस अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजारों से कट गया है.

इन प्रतिबंधों के चलते रूस ब्रिक्स समेत अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में देरी का सामना कर रहा है क्योंकि इन देशों के बैंक पश्चिमी नियामकों की कार्रवाई के डर से सावधानी बरत रहे हैं.

रूस की केंद्रीय बैंक की गवर्नर एलवीरा नबीउलीना ने पहले "ब्रिक्स ब्रिज" पेमेंट सिस्टम की बात की थी, जो सदस्य देशों की वित्तीय प्रणालियों को जोड़ेगा, लेकिन इसमें अभी तक ज्यादा प्रगति नहीं हुई है.

अब तक ब्रिक्स देशों द्वारा स्थापित एकमात्र वित्तीय संस्थान "न्यू डेवलपमेंट बैंक" है, जिसे 2015 में ब्रिक्स सदस्यों और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बुनियादी ढांचे और सतत विकास परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराने के लिए बनाया गया था।

नहीं आएंगे सऊदी क्राउन प्रिंस

इस बीच, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने की खबर आई है. क्रेमलिन ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक देश का प्रतिनिधित्व सऊदी विदेश मंत्री करेंगे.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विदेश नीति सलाहकार यूरी उश्कोव ने कहा कि ब्रिक्स के 10 सदस्य देशों में से 9 देशों के नेता शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, जबकि सऊदी अरब की ओर से विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद इस शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे.

उन्होंने क्राउन प्रिंस की गैरहाजरी का कोई कारण नहीं बताया. रूस ने पिछले महीने कहा था कि उसने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को शिखर सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भेजा है.

जनवरी में रॉयटर्स ने खबर छापी थी कि सऊदी अरब ब्रिक्स की सदस्यता को लेकर उलझन में है और अभी भी इसमें शामिल होने पर विचार कर रहा है. अधिकारी के मुताबिक अभी तक ब्रिक्स की सदस्यता के निमंत्रण का जवाब नहीं दिया गया है. अर्जेन्टीना जैसे कई देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में झिझक दिखाई है.

चीन के साथ सऊदी अरब के बढ़ते संबंधों ने अमेरिका में चिंता पैदा कर दी है, जो सऊदी का लंबे समय से सहयोगी रहा है. हालांकि हाल के वर्षों में उनके रिश्ते कुछ तनावपूर्ण रहे हैं.

उश्कोव ने कहा, "ब्रिक्स एक ऐसी संरचना है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता." उन्होंने दावा किया कि पश्चिमी देश अन्य देशों पर दबाव बना रहे हैं कि वे इस संगठन में शामिल न हों.

आपसी विरोधाभास

उश्कोव ने कहा कि ब्रिक्स सदस्य देशों की आबादी दुनिया की 45 फीसदी है, वे लगभग 40 प्रतिशत तेल उत्पादन करते हैं और वैश्विक वस्तुओं के निर्यात में उनकी हिस्सेदारी लगभग एक चौथाई है.

'ब्रिक्स' शब्द को गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने 2003 में गढ़ा था. उन्होंने इस शब्द का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाएं अगली आधी सदी में पश्चिम के कई प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं को चुनौती देंगी और उनसे आगे निकल जाएंगी.

पिछले दो दशकों में यह समूह एक औपचारिक संरचना में तब्दील हो गया है, हालांकि इसका आर्थिक भार मुख्य रूप से चीन पर है जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. आलोचकों का कहना है कि इस समूह के प्रमुख सदस्यों के उद्देश्य विरोधाभासी हैं


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