इस्लामिक स्टेट की हमलों की धमकियों के बीच जर्मनी में आए नए प्रवासी
इस्लामिक स्टेट की हमलों की धमकियों के बीच अफगान शरणार्थियों का एक नया समूह जर्मनी पहुंच गया है. देश में शरणार्थी विरोधी बहस अपने चरम पर है और पुलिस ने सुरक्षा बढ़ा दी है
इस्लामिक स्टेट की हमलों की धमकियों के बीच अफगान शरणार्थियों का एक नया समूह जर्मनी पहुंच गया है. देश में शरणार्थी विरोधी बहस अपने चरम पर है और पुलिस ने सुरक्षा बढ़ा दी है
जर्मन पुलिस ने इस साल कोलोन शहर में होने वाले कार्निवाल के लिए सुरक्षा बढ़ा दी है. हाल ही में एक चरमपंथी वेबसाइट पर चार शहरों को संभावित हमले के निशाने पर दिखाया गया था. इनमें दो जगहें कोलोन में, एक नूर्नबर्ग में और एक नीदरलैंड के रॉटरडैम शहर में थीं.
हालांकि, किसी हमले की ठोस साजिश की जानकारी नहीं है. फिर भी, पुलिस इस खतरे को गंभीरता से ले रही है. कोलोन पुलिस के ऑपरेशंस प्रमुख मार्टिन लोएत्स ने कहा, "इस तरह की धमकियों का मकसद जनता में डर फैलाना है. लेकिन हम पूरी तरह तैयार हैं."
कोलोन पुलिस पहले ही घोषणा कर चुकी थी कि इस साल सुरक्षा सख्त होगी. खासकर हाल ही में म्यूनिख में हुए कार हमले जैसी घटनाओं के बाद सतर्कता और बढ़ा दी गई है. इस बार सुरक्षा के लिए 1,500 अतिरिक्त पुलिसकर्मी तैनात किए जाएंगे.
हालांकि, पुलिस ने जनता से ना घबराने की अपील की है. नूर्नबर्ग पुलिस की प्रवक्ता ने कहा, "फिलहाल किसी ठोस खतरे की जानकारी नहीं है. हमारी सुरक्षा एजेंसियां चौकस हैं और खुफिया एजेंसियों के साथ लगातार संपर्क में हैं."
कोलोन कार्निवाल जर्मनी के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. खासकर राइनलैंड और दक्षिणी जर्मनी में यह बहुत लोकप्रिय है. कोलोन और डुसेलडोर्फ जैसे शहर अपनी भव्य परेड, स्ट्रीट पार्टियों और रंग-बिरंगे आयोजनों के लिए मशहूर हैं.
कोलोन की मेयर हेनरीएटे रेकर ने कहा, "हम चाहते हैं कि लोग बिना डर के कार्निवाल का आनंद लें. हमने सुरक्षा के लिए सभी जरूरी कदम उठाए हैं."
अफगानों को शरण देने पर बढ़ी बहस
सुरक्षा बढ़ाने के साथ ही जर्मनी ने अफगान शरणार्थियों को स्वीकार करने का कार्यक्रम भी दोबारा शुरू कर दिया है. मंगलवार को 155 अफगान नागरिक इस्लामाबाद से बर्लिन पहुंचे. इनमें से आधे से ज्यादा को जर्मन सरकार के विशेष कार्यक्रम के तहत शरण दी गई है.
अगस्त 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद जर्मनी अब तक 35,000 से ज्यादा अफगानों को शरण दे चुका है. इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो जर्मन संस्थानों के लिए काम कर चुके हैं. हालांकि, हाल ही में हुए चुनावों से पहले सरकार ने यह कार्यक्रम अस्थायी रूप से रोक दिया था.
इस फैसले से राजनीतिक बहस तेज हो गई है, खासकर हाल ही में विदेशियों द्वारा किए गए हमलों के बाद. इन घटनाओं के बाद जर्मनी में सख्त आव्रजन नीतियों की मांग बढ़ गई है.सैक्सनी राज्य के गृह मंत्री और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के नेता आर्मिन शुस्टर ने सरकार के रवैये की आलोचना की. उन्होंने कहा, "हम राज्यों ने कई बार इन कार्यक्रमों को तुरंत बंद करने की मांग की थी. सरकार ने चुनाव से पहले इन उड़ानों को रोक दिया, लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोबारा शुरू कर दिया. यह राजनीति से प्रेरित फैसला लगता है."
पाकिस्तान में हालात खराब
इस बीच, पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों की स्थिति और खराब होती जा रही है. इस्लामाबाद और रावलपिंडी में रह रहे कई अफगानों को मार्च के अंत तक शहर छोड़ने का आदेश दिया गया है. जर्मनी के मानवाधिकार संगठन इस पर चिंता जता रहे हैं.
शरणार्थियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था प्रो असाइल के प्रवक्ता मार्कुस बेहेरेंट ने कहा, "पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों की स्थिति बेहद मुश्किल हो गई है. कई लोगों को पश्चिमी देशों में शरण देने का वादा किया गया था, लेकिन वे अब फंसे हुए हैं."
जर्मनी का विशेष शरण कार्यक्रम उन लोगों पर केंद्रित है, जो तालिबान सरकार के निशाने पर हो सकते हैं. इनमें महिला अधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और पूर्व सरकारी कर्मचारी शामिल हैं. अब तक 3,000 अफगानों को इस कार्यक्रम के तहत शरण देने की मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन सिर्फ 1,000 ही जर्मनी पहुंच पाए हैं. इस कार्यक्रम पर सरकार अब तक करीब ढाई करोड़ यूरो खर्च कर चुकी है.
सुरक्षा और आप्रवासन पर बहस तेज
जर्मनी में एक के बाद एक हुए हमलों के बाद सुरक्षा चिंताओं और आव्रजन नीति को लेकर जर्मनी में बहस तेज हो गई है. जहां पुलिस बड़े आयोजनों को सुरक्षित बनाने में जुटी है, वहीं सरकार पर प्रवासन नीतियों को सख्त करने का दबाव भी बढ़ रहा है.
ग्रीन पार्टी की नेता क्लाउडिया रोथ ने कहा, "हमें अपनी सुरक्षा और मानवीय मूल्यों के बीच संतुलन बनाना होगा. हाल के हमले चिंताजनक हैं, लेकिन हम पूरी आबादी को दोष नहीं दे सकते."
जर्मनी में सुरक्षा उपायों और शरणार्थियों को शरण देने की नीति के बीच बहस जारी है. 23 फरवरी को हुए चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी सीडीयू के नेता फ्रीडरिष मैर्त्स सख्त आप्रवासन नीति के समर्थक हैं. शरणार्थी विरोधी पार्टी एएफडी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में संसद में विपक्ष में होगी. इस तरह संसद सदस्यों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा होगा जो जर्मनी की शरण नीति में बड़े बदलाव चाहता है. ऐसे में शरणार्थियों के भविष्य पर संदेह बना रहेगा.