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भारतीय सेना में कैसे बदल रही है महिलाओं की भूमिका

भारतीय सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद महिलाओं को स्थायी कमीशन भी दिया जाने लगा है, जिससे उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्राप्त करने में मदद मिलती है

भारतीय सेना में कैसे बदल रही है महिलाओं की भूमिका
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भारतीय सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद महिलाओं को स्थायी कमीशन भी दिया जाने लगा है, जिससे उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्राप्त करने में मदद मिलती है.

अमेरिका के नए रक्षा सचिव के तौर पर पीट हेगसेथ की नियुक्ति पक्की हो चुकी है. हेगसेथ सेना के पूर्व अधिकारी हैं और फॉक्स न्यूज के टेलीविजन होस्ट भी रह चुके हैं. उनकी नियुक्ति के बाद अमेरिकी सेना में महिलाओं की भूमिका पर चर्चा होने लगी है. दरअसल, हेगसेथ पिछले कुछ सालों से युद्ध में महिला सैनिकों की क्षमता और असर पर सवाल उठाते रहे हैं.

पिछले साल नवंबर में उन्होंने एक पॉडकास्ट में कहा था कि महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. दो हफ्ते पहले, सीनेट की एक सुनवाई में सेना में महिलाओं को लेकर उनकी राय पर सवाल उठाए गए थे. एक डेमोक्रेट सेनेटर ने उन पर महिला सैनिकों का अपमान करने का आरोप लगाया था. तब हेगसेथ ने कहा था कि महिलाएं लड़ाकू भूमिकाओं में जा सकेंगी, बशर्ते कि मानक ऊंचे बने रहें.

भारत में भी महिला सैनिकों को लेकर होती है बहस

सेना में महिलाओं की भूमिका पर होने वाली बहस सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है. भारत में एक ऐसी ही बहस, महिला अफसरों को कमांड भूमिकाएं देने पर हो रही है. पिछले साल नवंबर में, भारत के एक शीर्ष जनरल के पत्र में आरोप लगाए गए थे कि महिला अफसरों के नेतृत्व वाली सेना इकाइयों में प्रबंधन से जुड़ी समस्याएं थीं.

पांच पन्नों का यह पत्र, आठ महिला कमांडिंग अफसरों की आंतरिक समीक्षा से संबंधित था. लेकिन इसके मीडिया में आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर एक बहस छिड़ गई. जनरल ने पत्र में आरोप लगाया था कि महिला कमांडिंग अफसरों में ‘अहंकार संबंधी समस्याएं' हैं और उनमें अपनी इकाइयों के सैनिकों के प्रति ‘सहानुभूति की कमी' है.

अब भारतीय सेना की महिला अधिकारी सियाचिन पर भी तैनात

डीडब्ल्यू ने कई मौजूदा और पूर्व महिला अफसरों से इस पत्र के बारे में बात की. उनमें से बहुत सी अफसरों को इस पत्र की बातें परेशान करने वाली लगीं. खासकर तब, जब भारत महिलाओं को सुरक्षा बलों में नेतृत्व वाली भूमिकाएं निभाने के लिए प्रेरित कर रहा है. लेकिन 20 साल की महक प्रीत महिला सैनिकों पर कम भरोसा होने से परेशान नहीं हैं.

राजधानी दिल्ली में रहने वालीं महक प्रीत का सपना है कि वह भारतीय वायुसेना की लड़ाकू भूमिकाओं में काम करें. वे इसके लिए तैयारी भी कर रही हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिलाएं और पुरुष शारीरिक रूप से अलग-अलग हैं. लेकिन जब देश की सेवा करने की बात आती है तो यह सैनिक के जेंडर पर निर्भर नहीं करता. उन सभी को समान रूप से प्रशिक्षित किया जाता है.”

सेना में बदल रही महिलाओं की भूमिका

साल 2023 में जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत की थल सेना में फिलहाल करीब सात हजार महिला अधिकारी अपनी सेवाएं दे रही हैं. थल सेना में उनकी संख्या 1,600 से ज्यादा है. समय के साथ, रक्षा बलों में महिलाओं की भूमिका में भी बदलाव देखने को मिला है. सुप्रीम कोर्ट के कुछ आदेशों ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है.

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, महिलाओं को नर्सों के तौर पर सैन्य अस्पतालों में शामिल किया गया था क्योंकि तब पर्याप्त संख्या में पुरुष उपलब्ध नहीं थे. साल 1942 में ब्रिटिश शासन के दौरान महिलाओं की एक सहायक कोर की स्थापना की गई, जिससे महिलाएं गैर-लड़ाकू और दफ्तर संबंधी भूमिकाओं में काम कर सकें.

जर्मनी की सेना में बहुत कम है महिलाओं की संख्या

सेना की रिटायर्ड डॉक्टर माधुरी कनिटकर लेफ्टिनेंट जनरल की रैंक तक पहुंचने वाली तीसरी भारतीय महिला थीं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हमने वहां से एक लंबा रास्ता तय किया है. वास्तव में, मेरा बैच पहला था जिसमें हमें फील्ड अस्पतालों में भेजा गया और फील्ड पोस्टिंग दी गई. और उसके बाद हमने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.”

रिटायर्ड स्क्वॉड्रन लीडर चेरिल दत्ता एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर उड़ाने वालीं शुरुआती महिला पॉयलटों में से एक हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "सांस्कृतिक बदलाव की वजह से आज हमें उस नजरिए से देखा जा रहा है, जैसे देखा जाना चाहिए. वरना पहले तो रक्षा बलों में महिलाएं केवल पुरुष अफसरों की पत्नियां हुआ करती थीं.”

एक समय पर महिलाएं तथाकथित शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए रक्षा बलों में अपनी सेवाएं दे सकती थीं. इससे उन्हें एक सीमित समय के लिए अफसर का रैंक मिलता था. हालांकि, कई कानूनी रुकावटें उन्हें अपने करियर में आगे बढ़ने से रोकती थीं. साल 2020 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक आदेश के बाद महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन मिला. इससे उन्हें पुरुष समकक्षों के समान अवसर प्राप्त करने में मदद मिली, जैसे सेना में कमांड पोस्ट संभालना.

लड़ाकू भूमिकाओं में कितनी आगे महिलाएं

महिलाएं अभी भी थल सेना की कुछ मुख्य लड़ाकू भूमिकाओं में काम नहीं कर सकती हैं. इनमें पैदल सेना, बख्तरबंद और मशीनीकृत इकाइयां शामिल हैं. हालांकि, अब महिलाओं का एक समूह थल सेना की तोपखाना रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे रहा है. यह महिलाओं की भूमिका में प्रगति का संकेत है.

रिटायर्ट लेफ्टिनेंट जनरल कनिटकर कहती हैं कि महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल करने को लेकर सावधानी भरे और मजबूत कदम उठाए जा रहे हैं. वह कहती हैं, "एक बात होती है कि महिलाओं को दिखावे के लिए लड़ाकू भूमिकाओं में रखा जाए और दूसरी बात होती है कि क्या वास्तव में इसकी जरूरत है. इस समय हमारे पास लड़ाकू भूमिकाओं में पर्याप्त लोग हैं.”

कनिटकर के मुताबिक, लड़ाकू भूमिकाओं के मामले में सेना के सिस्टम का भी ध्यान रखना होता है. वह कहती हैं, "एक टैंक में, जहां एक छोटी सी जगह में तीन लोग होते हैं, वहां महिलाओं को उनकी निजता कैसे मिलेगी? इसलिए सावधानी के साथ इन कदमों को उठाना अच्छा है.”

‘योग्यता ही मायने रखती है'

वर्तमान में, भारत की सशस्त्र सेना चिकित्सा सेवा और थलसेना एवं नौसेना की चिकित्सा सेवाओं का नेतृत्व महिला अधिकारी ही कर रही हैं. साल 2020 में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि रक्षा बलों में पुरुष अभी तक महिला अफसरों की कमांड को स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से प्रशिक्षित नहीं हुए हैं. वहीं, कनिटकर कहती हैं कि चिकित्सा सेवा में उनके अनुभव में जेंडर कभी भी चिंता का विषय नहीं रहा.

उन्होंने कहा, "मेरे आस पास महिलाओं से ज्यादा पुरुष थे, लेकिन मुझे एक महिला के तौर पर कभी ऐसी टीमों का नेतृत्व करने में मुश्किल नहीं हुई. जब मैं अपने जिम्मेदारी वाली क्षेत्र में कमांडरों से बातचीत करती थी तो कभी असहजता महसूस नहीं हुई. मुझे लगता है कि योग्यता ही मायने रखती है.”

रिटायर्ड स्क्वॉड्रन लीडर दत्ता बताती हैं कि सेवा के शुरुआती समय में पुरुष सैनिक और वायुसैनिक महिलाओं के प्रति कुछ सामाजिक पूर्वाग्रह दिखाते हैं और उन्हें एक कमजोर जेंडर के तौर पर देखते हैं. वह आगे कहती हैं, "जब आप सेना में आते हैं तो अपनी सामाजिक सोच के थोड़े-से हिस्से को पीछे छोड़ देते हैं. आप एक सैनिक बन जाते हैं और आपको एक भूमिका निभानी होती है.” उनका मानना है कि जेंडर से जुड़ी बाधाएं धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं लेकिन इसमें अभी और समय लगेगा.

रक्षा बलों में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने की दिशा में भारत की प्रगति धीमी रही है. लेकिन कई लोगों का मानना है कि इसमें लगातार प्रगति हुई है. कनिटकर कहती हैं, "अब एक साथ बहुत सारी महिलाएं प्रमुख भूमिकाओं में हैं. वे दूसरों के लिए रास्ता बना रही हैं. उनके प्रदर्शन पर बहुत कुछ निर्भर करेगा. अगर वे अच्छा काम कर रही हैं तो उन्हें स्वीकार करना आसान होगा और आने वाली महिलाओं के लिए रास्ता साफ हो जाएगा.”


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