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चीन पर निर्भरता कम करने के लिए जर्मनी को भारत से उम्मीद

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स इस हफ्ते भारत के दौरे पर हैं. जर्मनी उम्मीद कर रहा है कि भारत के बड़े बाजार में बढ़ी हुई पहुंच से जर्मनी की चीन पर निर्भरता कम होगी, भले ही भारत "नया चीन" न बने

चीन पर निर्भरता कम करने के लिए जर्मनी को भारत से उम्मीद
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जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स इस हफ्ते भारत के दौरे पर हैं. जर्मनी उम्मीद कर रहा है कि भारत के बड़े बाजार में बढ़ी हुई पहुंच से जर्मनी की चीन पर निर्भरता कम होगी, भले ही भारत "नया चीन" न बने.

कारों से लेकर लॉजिस्टिक्स तक, जर्मन कंपनियों को भारत के विकास की संभावनाओं से बड़ी उम्मीद है. वे कुशल युवाओं की बड़ी संख्या, सस्ती लागत और करीब 7 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर का फायदा उठाना चाहती हैं. इसी उम्मीद में जर्मनीके चांसलर ओलाफ शॉल्त्स एक बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत पहुंच रहे हैं.

यह दौरा ऐसे समय पर हो रहा है जब जर्मनी की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था लगातार दूसरे साल मंदी का सामना कर रही है. साथ ही, यूरोपीय संघ और चीन के बीच व्यापार विवाद को लेकर चिंताएं हैं, जो जर्मन कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है.

2022 में यूक्रेन युद्ध से पहले रूस की सस्ती गैस पर अत्यधिक निर्भरता के कारण जर्मनी को झटका लगा था, जिसके बाद उसने "डि-रिस्किंग" की नीति अपनाई. जर्मनी चीन पर भी अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, चीन अब भी जर्मनी का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है.

अहम है भारत

जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स डीआईएचके के विदेशी व्यापार प्रमुख वोल्कर ट्रायर ने कहा कि 2022 में भारत में जर्मन प्रत्यक्ष निवेश लगभग 25 अरब यूरो (27 अरब डॉलर) था, जो चीन में निवेश के लगभग 20 फीसदी के बराबर है. उनका मानना है कि यह हिस्सेदारी दशक के अंत तक 40 फीसदी तक पहुंच सकती है.

ट्रायर ने कहा, "चीन गायब नहीं होगा, लेकिन भारत जर्मनी की कंपनियों के लिए अधिक महत्वपूर्ण बनता जाएगा. भारत इस मामले में एक परीक्षण है. यदि चीन से जोखिम कम करना है, तो भारत इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा क्योंकि यहां का बाजार बड़ा है और देश की आर्थिक गति तेज है."

शॉल्त्स अपने कैबिनेट के अधिकांश सदस्यों के साथ, शुक्रवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे और भारत-जर्मन वार्ता के सातवें दौर की अध्यक्षता करेंगे. अर्थव्यवस्था मंत्री रॉबर्ट हाबेक एक दिन पहले पहुंचेगे और द्विवार्षिक एशिया-प्रशांत सम्मेलन का उद्घाटन करेंगे, जो जर्मन व्यापार के लिए है.

‘चीन जमा एक' रणनीति

एक अध्ययन के अनुसार, जर्मन कंपनियां भारत में निवेश को लेकर नौकरशाही, भ्रष्टाचार और टैक्स सिस्टम को एक बाधा मानती हैं. यह अध्ययन कंसल्टेंसी कंपनी केपीएमजी और जर्मन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स अब्रॉड (एएचके) द्वारा किया गया था.

फिर भी, वे भारत में उज्ज्वल भविष्य देख रही हैं. 82 फीसदी कंपनियों को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनके रेवेन्यू में वृद्धि होगी. 59 फीसदी कंपनियां अपनी निवेश योजनाओं का विस्तार कर रही हैं, जबकि 2021 में यह आंकड़ा सिर्फ 36 प्रतिशत था.

उदाहरण के लिए, जर्मन लॉजिस्टिक्स कंपनी डीएचएल 2026 तक भारत में 50 करोड़ यूरो का निवेश करेगी. यह निवेश तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार का फायदा उठाने के लिए किया जा रहा है.

डीएचएल डिवीजन के प्रमुख ऑस्कर दे बोक ने कहा, "हम एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जबरदस्त विकास की संभावना देख रहे हैं, जिसमें भारत का एक बड़ा हिस्सा है."

चीन में बिक्री में गिरावट और घरेलू उत्पादन लागत बढ़ने के कारण संकट से जूझ रही जर्मन कार कंपनी फोक्सवागन भारत में नए साझेदारी की संभावनाओं पर विचार कर रही है. कंपनी के पास पहले से भारत में दो कारखाने हैं और इसने फरवरी में स्थानीय साझेदार महिंद्रा के साथ एक सप्लाई समझौता किया है.

फोक्सवागन के वित्त प्रमुख अर्नो एंटलिट्ज ने मई में कहा था, "मुझे लगता है कि हमें भारत की संभावनाओं को कम नहीं आंकना चाहिए, न केवल बाजार के लिहाज से, बल्कि अमेरिका और चीन के बीच की अनिश्चितता के लिहाज से भी."

इसी तरह, कोलोन स्थित इंजन निर्माता डॉयट्ज ने इस साल भारत की मोटर कंपनी टेफ (टीएएफई) के साथ एक समझौता किया है, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ट्रैक्टर निर्माता कंपनी है. इस समझौते के तहत टेफ मोटर्स डॉयट्ज के 30,000 इंजन लाइसेंस के तहत बनाएगी.

भारत में बाधाएं

कंसल्टेंसी कंपनी बीसीजी के प्रबंध निदेशक जोनाथन ब्राउन कहते हैं, "भारत के पक्ष में मुख्य तर्क राजनीतिक स्थिरता और सस्ते कामगार हैं. इसलिए आपको 'चाइना + 1' रणनीति अपनानी चाहिए जिसमें भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है."

2023 में जर्मनी और भारत के बीच व्यापार ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है. भारत को दशक के अंत तक जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है.

यूरोपीय संघ और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर कई साल से बातचीत चल रही है लेकिन अब तक इसमें कोई खास प्रगति नहीं हो पाई है. बीसीजी के ब्राउन ने कहा, "बाजार में प्रवेश के लिए बाधाएं बहुत बड़ी हैं लेकिन एक बार जब आप वहां पहुंच जाते हैं, तो आपके पास जबरदस्त संभावनाएं हैं. हालांकि जर्मन उत्पादों को केवल वहां बेचना कारगर नहीं होगा."


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