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जर्मनी चुनाव: पहली टीवी बहस में माइग्रेशन रहा सबसे बड़ा मुद्दा

रविवार को चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और उनके प्रतिद्वंद्वी फ्रीडरिष मैर्त्स के बीच हुई पहली बड़ी टीवी बहस में माइग्रेशन का मुद्दा छाया रहा

जर्मनी चुनाव: पहली टीवी बहस में माइग्रेशन रहा सबसे बड़ा मुद्दा
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रविवार को चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और उनके प्रतिद्वंद्वी फ्रीडरिष मैर्त्स के बीच हुई पहली बड़ी टीवी बहस में माइग्रेशन का मुद्दा छाया रहा.

जर्मनी के आम चुनाव में अब सिर्फ दो हफ्ते बचे हैं, और प्रवासन (माइग्रेशन) सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है. दो प्रमुख उम्मीदवारों के बीच 90 मिनट की टीवी बहस में शॉल्त्स ने अपनी सरकार की नीतियों का बचाव किया. उन्होंने कहा, "जर्मनी में इससे कड़े प्रवासन कानून कभी नहीं बने." लेकिन चुनावी दौड़ में सबसे आगे चल रहे उदार दक्षिणपंथी पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के नेता फ्रीडरिष मैर्त्स ने उन पर सीमा सुरक्षा में असफल होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "आपकी सरकार में 20 लाख से ज्यादा अवैध प्रवासी जर्मनी में घुसे हैं. यह संख्या पूरे हैम्बर्ग की आबादी से भी ज्यादा है."

शॉल्त्स ने मैर्त्स पर चरम-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के साथ सहयोग करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "यह आपके शब्दों और राजनीतिक मर्यादाओं का उल्लंघन है. जब चीजें मुश्किल होंगी, तब आप पर भरोसा नहीं किया जा सकता."

मैर्त्स की पार्टी सीडीयू/सीएसयू चुनावी सर्वेक्षणों में लगभग 30 फीसदी समर्थन के साथ आगे चल रही है. पिछले हफ्ते आप्रवासन के विरोध में संसद में मैर्त्स के प्रस्ताव पर एएफडी ने उनके साथ मतदान किया था. हालांकि उन्होंने एएफडी के साथ किसी भी तरह के सहयोग से इनकार किया. उन्होंने कहा, "हमारे और एएफडी के बीच बहुत बड़ा अंतर है. हमारी नीतियां बिल्कुल अलग हैं."

सड़कों पर भारी विरोध प्रदर्शन

प्रवास को लेकर चल रही यह बहस अब संसद से निकलकर सड़कों तक पहुंच गई है. 8 फरवरी को म्यूनिख में ढाई लाख से ज्यादा लोग एएफडी और सीडीयू की प्रवासन नीति के विरोध में उतरे. एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "हम अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था को उन लोगों के हाथों बर्बाद नहीं होने देंगे, जो हमें बांटना चाहते हैं."

हालांकि, इन प्रदर्शनों का चुनावी रुझानों पर खास असर नहीं दिख रहा है. मैर्त्स की पार्टी अब भी आगे है, जबकि शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) 15 से 18 फीसदी तक समर्थन पर सिमट गई है. वहीं, एएफडी 21 फीसदी समर्थन के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.

जब राजनीतिक दल प्रवासन पर बहस में उलझे हैं, तब जर्मनी के उद्योग जगत के दिग्गज नेता प्रवास-विरोधी माहौल को लेकर चिंता जता रहे हैं. सीमेंस, मर्सिडीज-बेंज और डॉयचे बैंक जैसी कंपनियों के प्रमुखों ने कहा कि जर्मनी को प्रवासियों का स्वागत करने वाली अर्थव्यवस्था बने रहना चाहिए.

सीमेंस के सीईओ रोलांड बुश ने कहा, "चुनावी माहौल में जोनोफोबिक (विदेशी-विरोधी) विचार तेजी से बढ़ रहे हैं. जर्मनी को खुला और बहुलतावादी समाज बने रहना चाहिए. यह चुनाव प्रवासन के खिलाफ गुस्सा निकालने का जरिया नहीं बनना चाहिए. लोकतंत्र स्थिर न रहा तो अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो जाएगी."

मर्सिडीज-बेंज के सीईओ ओला क्यालिनियस ने प्रवासन की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, "अवैध प्रवासन और कुशल श्रमिकों को आकर्षित करना, दोनों अलग चीजें हैं. हमें अपने विकास के लिए दुनिया के सबसे प्रतिभाशाली दिमाग चाहिए. लेकिन इस मुद्दे पर डर फैलाया जा रहा है."

डॉयचे बैंक के सीईओ क्रिस्टियान सेविंग ने कहा, "हमें नए प्रवासियों को तुरंत काम में लगाना होगा. हमारी कंपनियों में दुनिया भर से लोग काम कर रहे हैं और हम उनकी कड़ी मेहनत की सराहना करते हैं." उन्होंने यूरोपीय संघ को भी ज्यादा मजबूत बनाने पर जोर दिया और कहा, "डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका में वापसी के बाद हमें यूरोपीय बाजार को और संगठित करना होगा."

23 फरवरी का रास्ता

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, प्रवासन मुद्दे ने अन्य विषयों जैसे आर्थिक सुधार, कर नीति और यूक्रेन युद्ध को भी पीछे छोड़ दिया है. पर्यावरण का मुद्दा भी पीछे छूट गया है. जब अमेरिका के यूरोपीय सामानों पर टैरिफ लगाने की बात आई तो चांसलर शॉल्त्स ने कहा, यूरोपीय संघ "एक घंटे के भीतर कार्रवाई कर सकता है." शॉल्त्स ने कहा कि ट्रंप के नए कार्यकाल से निपटने के लिए उनकी रणनीति "स्पष्ट शब्दों और सौहार्दपूर्ण बातचीत" पर आधारित होगी.

उन्होंने कहा, "हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए. अमेरिका के राष्ट्रपति जो कहते हैं, वही उनका मतलब होता है."

मैर्त्स ने यूरोप के लिए एक साझा रणनीति की वकालत की. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ को ट्रंप के साथ बराबरी के स्तर पर जवाब देना होगा.

शॉल्त्स ने एक बार फिर यूक्रेन को लंबी दूरी की टॉरस मिसाइलें देने से इनकार कर दिया. उन्होंने अपने कंजर्वेटिव प्रतिद्वंद्वी फ्रीडरिष मैर्त्स पर इस मुद्दे पर अस्थिर रुख अपनाने का आरोप लगाया. शॉल्त्स ने कहा, "मैं नहीं मानता कि रूस के भीतर गहराई तक तबाही मचाने वाले हथियार भेजना सही होगा. अगर आप जर्मनी की जिम्मेदारी संभालते हैं, तो यह वह कदम नहीं है जो उठाया जाना चाहिए."

मैर्त्स ने जवाब में कहा कि उन्होंने हमेशा इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट रखा है, "मेरी स्थिति में कभी कोई बदलाव नहीं आया."

उन्होंने जोर देते हुए कहा, "क्रूज मिसाइलों की आपूर्ति का फैसला यूरोपीय संघ को करना चाहिए. अमेरिका देता है, फ्रांस देता है, ब्रिटेन देता है; हमें भी देना चाहिए था."

16 फरवरी को होने वाली अगली बड़ी बहस में शॉल्त्स और मैर्त्स के साथ एएफडी नेता एलिस वीडेल और ग्रीन पार्टी के चांसलर पद के दावेदर रॉबर्ट हाबेक भी शामिल होंगे. इससे साफ है कि प्रवासन ही इस चुनाव का सबसे अहम मुद्दा रहेगा.

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या जर्मनी के मतदाता प्रवासन विरोधी राजनीति का समर्थन करेंगे, या फिर कॉरपोरेट नेताओं की चेतावनी को गंभीरता से लेंगे. इस चुनाव का नतीजा जर्मनी की राजनीति और अर्थव्यवस्था का भविष्य तय करेगा.


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