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तेजी से बढ़ रहा है यूरोप में भ्रष्टाचारः रिपोर्ट

तेजी से बढ़ रहा है यूरोप में भ्रष्टाचारः रिपोर्ट

तेजी से बढ़ रहा है यूरोप में भ्रष्टाचारः रिपोर्ट
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यूरोपीय देशों को सबसे कम भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है लेकिन पिछले दो साल से ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में यूरोपीय देशों की रैंकिंग खराब हो रही है. क्यों बढ़ रहा है यूरोप में करप्शन?

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोप में भ्रष्टाचार लगातार दूसरे साल बढ़ा है. भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने मंगलवार को अपना वार्षिक 'करप्शन परसेप्शन इंडेक्स' जारी किया. इसमें हंगरी को यूरोपीय संघ का सबसे भ्रष्ट देश बताया गया, जबकि फ्रांस और जर्मनी जैसे बड़े देशों की रैंकिंग भी गिर गई.

संस्था ने 180 देशों का सर्वे किया और पाया कि करीब एक-चौथाई देशों का स्कोर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह इंडेक्स 13 अलग-अलग स्रोतों से डेटा लेकर तैयार किया जाता है, जिनमें वर्ल्ड बैंक और निजी रिस्क कंसल्टिंग कंपनियां शामिल हैं. इसमें 0 से 100 तक का स्कोर दिया जाता है, जहां 0 का मतलब है "बेहद भ्रष्ट" और 100 का मतलब है "बहुत साफ-सुथरा."

रिपोर्ट कहती है कि यूरोप में भ्रष्टाचार से निपटने की क्षमता कमजोर पड़ रही है. इसका असर जलवायु संकट, कानून व्यवस्था और सरकारी सेवाओं पर पड़ रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कानूनी खामियां, कमजोर कार्रवाई और संसाधनों की कमी के कारण भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पा रही.

रिपोर्ट में यूरोप विशेषज्ञों ने लिखा, "अब कुछ सरकारें इससे भी आगे जाकर, एंटी-करप्शन सिस्टम को कमजोर कर रही हैं और कानून के शासन को नुकसान पहुंचा रही हैं."

हंगरी और स्लोवाकिया पर खास नजर

ईयू में सबसे खराब प्रदर्शन हंगरी का रहा, जिसका स्कोर 41 आया. यह पिछले साल से एक अंक कम है. रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान के 15 साल के शासन में "व्यवस्थित भ्रष्टाचार बढ़ा और कानून के शासन में गिरावट" आई है.

रिपोर्ट में अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों का भी जिक्र किया गया, जिसमें हंगरी सरकार के अधिकारी अंटाल रोगान पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. वह प्रधानमंत्री ओरबान के करीबी सहयोगी और उनके कैबिनेट के प्रमुख हैं. आरोप है कि उन्होंने सरकारी ठेके अपने साथियों को दिलवाए. हालांकि, ओरबान और उनकी पार्टी 'फिडेस' ने इन आरोपों को खारिज किया है.

इस क्षेत्र में हंगरी के अलावा बुल्गारिया, रोमानिया और माल्टा का प्रदर्शन भी खराब रहा. वहीं, स्लोवाकिया का स्कोर पांच अंक गिरकर 49 पर आ गया. यह प्रधानमंत्री रॉबर्ट फिको की सरकार के पहले पूरे साल में हुआ. रिपोर्ट में लिखा है, "बहुत सारी नई नीतियां भ्रष्टाचार रोकने की व्यवस्था को कमजोर कर रही हैं और जनता से राय लिए बिना लागू की जा रही हैं."

हाल ही में स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा में बड़े विरोध-प्रदर्शन हुए हैं. लोग प्रधानमंत्री फिको पर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने और रूस के करीब जाने का आरोप लगा रहे हैं. दूसरी ओर, फिको ने कहा है कि उनके विरोधी सरकार गिराने की साजिश कर रहे हैं.

भ्रष्टाचार और जलवायु संकट का गहरा रिश्ता

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि फ्रांस का स्कोर चार अंक गिरकर 67 और जर्मनी का स्कोर तीन अंक गिरकर 75 हो गया. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जलवायु नीतियों पर कॉरपोरेट लॉबिंग का असर बढ़ गया है.

संस्था ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "मानवता के सामने दो सबसे बड़ी चुनौतियां आपस में जुड़ी हुई हैं: भ्रष्टाचार और जलवायु संकट."

रिपोर्ट में कहा गया कि जलवायु फंड में पारदर्शिता की कमी से पैसों के दुरुपयोग का खतरा बढ़ गया है. इसके अलावा, नेताओं और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के बीच मिलीभगत के कारण पर्यावरण से जुड़े कड़े नियम लागू नहीं हो पा रहे. रिपोर्ट कहती है, "यह सब जलवायु संकट से निपटने की कोशिशों को कमजोर कर रहा है और कुछ खास समूहों के फायदे के लिए आम जनता को नुकसान पहुंचा रहा है."

कौन सबसे बेहतर और कौन सबसे खराब?

ग्लोबल इंडेक्स में औसत स्कोर 43 रहा, जो पिछले साल जितना ही है. दुनिया के दो-तिहाई देशों का स्कोर 50 से कम रहा.

डेनमार्क लगातार सातवें साल सबसे कम भ्रष्ट देश बना, जिसका स्कोर 90 आया. इसके बाद फिनलैंड (88) और सिंगापुर (84) रहे. वहीं, सबसे खराब प्रदर्शन दक्षिण सूडान का रहा, जिसका स्कोर सिर्फ 8 आया. इसने सोमालिया (9) को पछाड़कर दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश बना दिया.

भारत की रैंकिंग भी गिरी है और उसका स्कोर एक अंक कम हो गया है. पिछले साल भारत 93वें नंबर पर था और उसे 39 अंक मिले थे. इस साल 38 अंकों के साथ वह 96वें नंबर पर आ गया है.


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