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नई पीढ़ी से खुश नहीं हैं कंपनियांः सर्वे

एक सर्वे बताता है कि कंपनियां नई पीढ़ी के रवैये से खुश नहीं हैं. उन्हें लगता है कि युवा काम को लेकर गंभीर नहीं हैं

नई पीढ़ी से खुश नहीं हैं कंपनियांः सर्वे
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एक सर्वे बताता है कि कंपनियां नई पीढ़ी के काम के प्रति रवैये से ज्यादा खुश नहीं हैं. उन्हें लगता है कि नए ग्रैजुएट्स काम कम करते हैं और उनके नखरे ज्यादा होते हैं.

एक हालिया सर्वे के अनुसार, जेनरेशन जी यानी नए कॉलेज ग्रैजुएट अपनी पहली नौकरी में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. अगस्त 2024 में करियर और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी 'इंटेलीजेंट' द्वारा कराए गए इस सर्वे में 966 बिजनस लीडरों से बात की गई. ये लीडर बड़े पदों पर हैं और भर्तियों से जुड़े फैसले लेते हैं.

सर्वे से पता चला कि युवा पीढ़ी के काम और रवैये को देखकर कई कंपनियों में असंतोष बढ़ रहा है. इनमें सबसे बड़ी शिकायतें उनकी कार्यक्षमता, पेशेवर रवैये और टीम के साथ तालमेल बिठाने की कमी को लेकर हैं.

सर्वे में पाया गया कि 75 फीसदी कंपनियों ने इस साल नई पीढ़ी के प्रदर्शन से असंतोष जताया. मुख्य समस्याएं थीं - काम में पहल की कमी (50 फीसदी), खराब कम्युनिकेशन स्किल (39 फीसदी), और प्रोफेशनल व्यवहार की कमी (46 फीसदी). सर्वे में शामिल मैनेजरों ने बताया कि कई ग्रैजुएट काम की मूलभूत अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इसमें समस्या सुलझाने की क्षमता और फीडबैक को ठीक से न ले पाने जैसी कमजोरियां भी शामिल हैं.

इसका नतीजा यह हुआ कि छह में से एक कंपनी ने इस साल किसी-न-किसी नए ग्रैजुएट को काम से निकाला. लगभग 79 फीसदी कंपनियों को कमजोर प्रदर्शन करने वाले इन कर्मचारियों के लिए सुधार योजना बनानी पड़ी और 60 फीसदी को आखिरकार उन्हें निकालना पड़ा.

क्या हैं शिकायतें?

‘इंटेलिजेंट' के चीफ एजुकेशन एंड करियर डेवलपमेंट एडवाइजर हुई गुयेन का मानना है कि यह समस्या युवाओं के पास व्यावहारिक अनुभव की कमी और कॉलेज के माहौल से पूरी तरह अलग नौकरीपेशा माहौल में दाखिल होने के कारण होती है.

एक बयान में उन्होंने कहा, "कई नए कॉलेज ग्रैजुएट पहली बार नौकरी में आने पर संघर्ष कर सकते हैं क्योंकि यह उनके पढ़ाई के अनुभव से बिल्कुल अलग होता है. वे अक्सर वास्तविक दुनिया के अनुभव और सॉफ्ट स्किल्स में कमी महसूस करते हैं, जो काम में सफल होने के लिए जरूरी होते हैं." उन्होंने कंपनियों को सलाह दी कि वे युवाओं के लिए प्रभावी ट्रेनिंग और मेंटोरशिप प्रोग्राम शुरू करें.

सर्वे ने दिखाया कि युवाओं को लेकर कई कंपनियों के मन में यह धारणा है कि वे अपेक्षा से अधिक अधिकार जताते हैं और आलोचना से जल्दी आहत हो जाते हैं. लगभग 65 फीसदी हायरिंग मैनेजरों का मानना था कि युवा बहुत ज्यादा अधिकार जताते हैं और 63 फीसदी को लगता था कि वे आसानी से नाराज हो जाते हैं. 55 फीसदी मैनेजरों ने कहा कि वे काम के प्रति गंभीर नहीं हैं. जैसे, जर्मनी में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लोग काम को लेकर सुस्तलोग काम को लेकर सुस्त हो गए हैं.

एक और समस्या जो सामने आई, वह थी प्रोफेशनलिज्म की कमी. 21 फीसदी हायरिंग मैनेजरों ने बताया कि नए स्नातक काम का बोझ संभालने में सक्षम नहीं थे. कई बार वे काम या मीटिंग्स में देर से आते हैं. उनका भाषा या कपड़े पहनने का तरीका भी पेशेवर नहीं होता. ऐसे में कई मैनेजरों का मानना है कि युवाओं को दफ्तर में व्यवहार की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.

इस असंतोष के कारण कुछ कंपनियां 2025 में नए ग्रैजुएट्स को काम पर रखने से झिझक रही हैं. हर सात में से एक कंपनी या तो निश्चित नहीं है या फिर ऐसा नहीं करेगी.

हुई गुयेन ने सुझाव दिया कि कंपनियों और युवाओं दोनों को अपने रवैये में बदलाव लाने की जरूरत है. हायरिंग मैनेजरों को सलाह दी गई कि वे अनुभव से ज्यादा युवाओं की संभावनाओं पर ध्यान दें, जैसे कि समस्या सुलझाने की उनकी क्षमता और नई चीजें सीखने की इच्छाशक्ति. दूसरी ओर, युवाओं को सलाह दी गई कि वे अपनी पहली नौकरी में पेशेवर रवैया दिखाएं, कंपनी के माहौल व तौर-तरीकों को समझें और फीडबैक को अपनाने के लिए तैयार रहें.

क्या चाहती है नई पीढ़ी?

इसी मुद्दे के दूसरे पहलू, यानी नई पीढ़ी की सोच को लेकर ऐसा ही एक सर्वे कुछ समय पहले अमेरिकी कंपनी डेलॉइट ने भी किया था. इसमें 44 देशों के लगभग 23,000 युवाओं से बातचीत की गई. सर्वे में युवाओं के कामकाज और जीवन से जुड़ी उम्मीदों और अनुभवों को समझा गया.

रिपोर्ट बताती है कि जेन जी और मिलेनियल्स आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं. साथ ही, पर्यावरण को लेकर उनकी चिंताएं भी बढ़ रही हैं. हालांकि, आर्थिक हालात बेहतर होने की उम्मीद भी बढ़ी है. लगभग आधे युवाओं को लगता है कि अगले साल उनकी आर्थिक स्थिति सुधर सकती है.

रिपोर्ट कहती है कि इन युवाओं के लिए काम और जीवन के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. इसके अलावा नौकरी में संतुष्टि का सीधा संबंध काम के किसी मकसद से जुड़े होने से है. सर्वे से पता चलता है कि युवा ऐसी कंपनियों को पसंद करते हैं, जिनकी सोच और मूल्यों से उनकी व्यक्तिगत मान्यताएं मेल खाती हों. वे ऐसे काम से इनकार कर देते हैं, जो उनकी सोच से नहीं जुड़ता.

पर्यावरण का मुद्दा भी नई पीढ़ी के लिए अहम है. आधे से ज्यादा युवा अपनी कंपनियों से पर्यावरण पर काम करने की उम्मीद रखते हैं. सर्वे में यह भी पाया गया कि नए तकनीकी बदलाव, जैसे जेनरेटिव एआई लोगों के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों लेकर आ रहे हैं. हालांकि, इसके बारे में बहुत से लोग अनिश्चितता महसूस कर रहे हैं, लेकिन वे इसकी ट्रेनिंग और नए स्किल्स हासिल करने की उम्मीद भी कर रहे हैं.


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