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न्यूजीलैंड ज्वालामुखी:25 लोगों की स्थिति गंभीर

न्यूजीलैंड में पर्यटकों के बेहद लोकप्रिय व्हाइट द्वीप पर सोमवार को ज्वालामुखी फटने से घायल 55 लोगों में से 25 की स्थिति नाजुक बनी हुई

न्यूजीलैंड ज्वालामुखी:25 लोगों की स्थिति गंभीर
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वेलिंगटन । न्यूजीलैंड में पर्यटकों के बेहद लोकप्रिय व्हाइट द्वीप पर सोमवार को ज्वालामुखी फटने से घायल 55 लोगों में से 25 की स्थिति नाजुक बनी हुई है। ज्वालामुखी फटने की इस भीषण घटना में छह लोगाें की मौत हो गयी है और आठ अन्य लापता हैं।

पुलिस ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा कि सात विभिन्न अस्पतालों में भर्ती 25 लोगों की हालत बेहद नाजुक बनी हुई है। पुलिस ने बताया कि लापता लोगों के बचने की आशा कम है। लापता लोगोें में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और मलेशिया के पर्यटक शामिल हैं। इनके साथ न्यूजीलैंड का गाइड भी था।

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने इस घटना पर देश की तरफ से शोक व्यक्त किया है।

पुलिस ने बताया कि मृतकों की पहचान के संबंध में पूरी रिपोर्ट फिलहाल जारी नहीं की गयी है। द्वीप पर तलाशी एवं बचाव अभियान जारी है।

ट्रम्प प्रशासन ने औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र को सूचित करते हुए पेरिस समझौते से अलग होने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रक्रिया पूरी होने पर अमेरिका इस समझौते से अलग होने वाला पहला देश बन जाएगा। न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता ने पिछले माह कहा था कि अमेरिका ने महासचिव को पेरिस समझौते से हटने की आधिकारिक सूचना चार नवंबर 2019 को दे दी।

यह समझौता 12 दिसंबर 2015 को हुआ था। अमेरिका ने 22 अप्रैल 2016 को पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और तीन सितंबर 2016 को समझौते का पालन करने की स्वीकृति दी थी। पेरिस समझौता एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय समझौता है जिसे जलवायु परिवर्तन और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये दुनिया के लगभग सभी देशों ने स्वीकार किया था। इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।

ट्रम्प के अनुसार अमेरिका के इस निर्णय से सबसे अधिक फायदा देश के तेल, गैस और कोयला उद्योग को होगा। अमेरिका के इस निर्णय से विकास और पर्यावरण के बीच चुनाव का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है। सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन के संकट का सामना कर रहा है। धरती का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है, मौसम बदल रहा है और ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं। ट्रम्प प्रशासन के निर्णय से विश्व समुदाय के समक्ष जलवायु परिवर्तन के खतरे से लड़ने की चुनौती और ज्यादा बढ़ गई है। अमेरिका दुनिया में सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है।

विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस फैसले के लिए श्री ट्रंप की आलोचना की है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अमेरिका के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।



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