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न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो नववर्ष का संकल्प

दुनिया भर में मान्य अंग्रेजी कैलेंडर का नया वर्ष फिर आ गया है

न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो नववर्ष का संकल्प
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दुनिया भर में मान्य अंग्रेजी कैलेंडर का नया वर्ष फिर आ गया है। पश्चिम का यह कैलेंडर दुनिया भर में सर्वमान्य है और कुछ परम्पराएं लेकर आता है। इसे मनाने की परिपाटी में दो बातें साफ दिखाई देती हैं- पहला है सभी एक-दूसरे को 'आपको नया साल मंगलमय हो' कहते हैं; और दूसरे यह कि ज्यादातर लोग कोई नया संकल्प लेते हैं। इसे कुछ लोग निभाते हैं, कुछ निभाने की कोशिश करते हैं और ज्यादातर लोग या तो अगली सुबह ही भूल जाते हैं अथवा उसे एक साल बाद फिर दोहराते हैं। जो भी हो, पिछले कुछ समय से देश में चल रहे राष्ट्रवाद के झंझावात के बाद भी नववर्ष का आयोजन बदस्तूर जारी है। कुछ लोग व्यक्तिगत तौर पर या अपने संगठन के साथियों के साथ इसके खिलाफ हल्ला बोलते हैं। कथित विदेशी संस्कृति के खिलाफ उनकी मुहिम किसी शहर-राज्य में दिखती है तो कहीं उनको बिलकुल भाव नहीं मिलता। 14 फरवरी (वैलेंटाइन दिन), 25 दिसम्बर (क्रिसमस और 1 जनवरी को इनका विरोध उफान पर होता है लेकिन 31 दिसम्बर की रात से शुरू होने वाले आयोजन नये साल की पहली तारीख तक चलते हैं- कहीं छोटे तो कहीं बड़े स्वरूपों में।

जो भी हो, नया साल लग ही गया है, तो मुबारकबाद देना तो बनता है। यह सबसे आसान काम है इसलिये सभी इसका निभाव कर लेते हैं। रही बात नये साल के संकल्प की, तो उसे निभाना थोड़ा कठिन होता है। व्यक्तिगत तौर पर कोई क्या संकल्प लेता है, उसे निभाता है या निभाने में नाकाम रह जाता है: उस पर अभी से अमल करना शुरू करता है अथवा उसे अगले साल के लिये मुल्तवी कर देता है- इससे किसी का कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिये। पर हां, जहां तक देश के सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य में मंगलकामना की बात की जाये, तो यह कठिन है लेकिन अपरिहार्य भी है। चूंकि देश की खुशहाली के साथ खुद का भी मंगल सम्पृक्त है, इसलिये इस मद्देनज़र नववर्ष का संकल्प तय करते समय कुछ बातों पर विचार करना ज़रूरी है।

पहले तो यह देखें कि 2024 किस मायने में महत्वपूर्ण है। हालांकि किसी भी साल की महत्ता को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। हर वर्ष का अपना महत्व होता है- कुछ का महत्व उसके बीतने के बाद ऐतिहासिक संदर्भों के कारण महसूस होता है, तो कुछ साल ऐसे भी होते हैं जिनके बारे में पहले से तय होता है कि यह अहम होने जा रहा है। भारत आज की तारीख में जिस मुकाम पर खड़ा है, साफ है कि 2024 कुछ ऐसे घटनाक्रम लेकर आ रहा है जिनका दूरगामी परिणाम पड़ना तयशुदा है। इस परिप्रेक्ष्य में कम से कम तीन भावी परिघटनाओं की शिनाख्त तो हो ही सकती है- 14 जनवरी से प्रारम्भ होने जा रही राहुल गांधी की 'भारत न्याय यात्रा', 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम मंदिर का उद्घाटन और उसके बाद लोकसभा का चुनाव, जिसके बारे में कुछ लोगों का अनुमान है कि उसे राम मंदिर के उद्घाटन के तुरन्त बाद भी कराया जा सकता है। अगर आम चुनाव मध्यावधि न होकर अपने वक्त पर होता है तो अप्रैल के आसपास होगा। जब भी हो, उसका महत्व तो सर्वाधिक है; और पहले हो चुके रहेंगे दोनों आयोजनों का असर उस पर होगा- राममंदिर व न्याय यात्रा का।

2014 में जहां नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जीता था, वहीं 2019 में उनकी अनेक असफलताओं के बावजूद बालाकोट व पुलवामा ने मोदी को दूसरी सफलता दिलाई थी। अब तीसरी बार जनता के सामने जाने के पहले मोदी राममंदिर के भरोसे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में विधानसभा के चुनाव भाजपा ने मोदी की छवि एवं उनकी कथित गारंटियों के बल पर जीते हैं, तो कांग्रेस ने तेलंगाना, उसके पहले कर्नाटक तथा और भी पहले हिमाचल प्रदेश जीता था। इस बार मोदी अपने कारोबारी मित्र गौतम अदानी के साथ अपने रिश्तों, मणिपुर की घटनाओं, आपराधिक संहिता कानूनों में फेरबदल और संसद से करीब डेढ़ सौ सांसदों के निलम्बन के चलते मुश्किल में दिखते हैं। दूसरी तरफ़ कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रतिपक्ष 'इंडिया' लगातार मजबूत हो रहा है। तीन राज्यों में पराजय के बाद भी कांग्रेस सिरमौर है। वे सारी आशंकाएं कम से कम अब तक तो गलत साबित हुई हैं जो इस आशय की थीं कि गठबन्धन में एकजुटता कायम नहीं रह पायेगी। विपक्षी गंठजोड़ नेतृत्व, सीटों के बंटवारे, साझा कार्यक्रम आदि के सम्बन्ध में कहीं भी असमंजस में नहीं दिखता। इस गठबन्धन में शामिल सभी 28 दल एकजुट हैं और अब तक के संकेत यही बतला रहे हैं कि वे एक साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे।

7 सितम्बर, 2022 को कन्याकुमारी से निकलकर 30 जनवरी, 2023 को श्रीनगर में तिरंगा झंडा फहराने के साथ एक अभूतपूर्व यात्रा राहुल ने अपने नाम पर दर्ज की थी, अब उसके सीक्वल के रूप में 14 जनवरी को जो यात्रा निकल रही है वह मोदी प्रदत्त आर्थिक विषमता, राजनैतिक शक्तियों के केन्द्रीकरण और सामाजिक धु्रवीकरण के खिलाफ है। राहुल गांधी, उनकी पार्टी और गठबन्धन के अन्य सहयोगी दल जिस प्रकार से सामाजिक न्याय के नारे को उठाये हुए हैं, उससे प्रतीत होता है कि लोकसभा-2024 भावनात्मक मुद्दा (धु्रवीकरण-साम्प्रदायिकता) बनाम सामाजिक न्याय होने जा रहा है। देखना यह है कि मतदाता अपना वर्ष मंगलमय बनाने के लिए किस रास्ते को अपनाती है। विवेक के इस्तेमाल की ज़रूरत इसलिये है क्योंकि जनता और देश का मंगल अंतर्गुम्फित है।


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