महाकुंभ भगदड़ पर नए सवाल
जनता की सहनशक्ति, उसकी कमजोर स्मरणशक्ति या अन्याय के आगे खामोश रहने की आत्मघाती प्रवृत्ति, कारण जो भी हो

जनता की सहनशक्ति, उसकी कमजोर स्मरणशक्ति या अन्याय के आगे खामोश रहने की आत्मघाती प्रवृत्ति, कारण जो भी हो, लेकिन ऐसी ही किसी वजह से देश में मानवनिर्मित (सरकार निर्मित पढ़ा जाए) आपदाएं थम ही नहीं रही हैं। छह महीने पहले महाकुंभ में भगदड़ मची थी, वह भी ऐसी ही एक आपदा थी। भाजपा सरकार ने इस महाकुंभ का आयोजन कुछ इस अंदाज में किया था मानो देश में मोदीजी सत्ता में हैं तो महाकुंभ का योग बना, अन्यथा नक्षत्र-तारे तो अपनी चाल बदल लेते। 144 साल बाद महाकुंभ का अद्भुत संयोग बना है, यही श्रद्धालुओं को बताया गया। देश ही नहीं विदेशों से भी आध्यात्म का सुख लेने लोग आ रहे हैं, इस बात को सगर्व सरकार और मीडिया ने प्रस्तुत किया। यानी कुंभ में डुबकी लगाने वाले तो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठे, मगर सरकार इसी में खुश होती रही कि कितने विदेशियों ने यहां डुबकी लगाई। पूरे देश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे थे। बहुतों को धर्म का पालन करना था, बहुतों को भेड़ चाल का हिस्सा बनना था कि जब इतने लोग पहुंच रहे हैं तो हम भी पहुंच जाए। सरकार चाहती भी यही थी कि महाकुंभ के लिए रिकार्डतोड़ आगंतुक पहुंचें। रोजाना आंकड़े पेश होते थे, आज इतने लाख लोगों ने डुबकी लगाई, आज इतने लाख लोग और पहुंच गए। बताया गया कि करीब 7 हजार करोड़ रुपए महाकुंभ के आयोजन में खर्च हुए और 66 करोड़ लोग 45 दिन में पहुंचे।
सब कुछ अच्छे से चल रहा था और सरकार चाहती भी यही थी कि इस सफल आयोजन की गूंज पूरी दुनिया में जाए। दुनिया के उन्नत देश ओलंपिक, फुटबॉल वर्ल्ड कप जैसे आयोजनों से जब अपनी धाक जमा सकते हैं, तो भारत महाकुंभ के जरिए अपनी धूम मचाना चाहती थी। लेकिन 29 जनवरी को मची भगदड़ ने महाकुंभ की व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। पहले तो उप्र सरकार ने यह स्वीकार ही नहीं किया था कि भगदड़ हुई है, जबकि दिल्ली से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने मृतकों के लिए श्रद्धांजलि पेश कर दी। इसके बाद सरकार ने माना कि भगदड़ हुई है, लेकिन उसमें कितने हताहत हुए, यह आंकड़े पहले पेश नहीं किए गए। जो पेश हुए, उनकी सच्चाई पर सवाल उठे। क्योंकि जहां एक साथ लाखों लोग मौजूद थे, वहां मौतों का आंकड़ा 37 बताया गया, जबकि कई पत्रकारों ने कहा था कि उन्होंने मुर्दाघरों में कहीं ज्यादा लाशें गिनी हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी जब राज्यसभा में कुंभ में हजारों मौतों का हवाला दिया था तो भाजपा सांसदों ने उन्हें टोका था कि वे गलत कह रहे हैं। तब श्री खड़गे ने कहा था कि आप सही आंकड़े बता दीजिए। लेकिन संसद में इस पर मोदी सरकार ने चर्चा होने ही नहीं दी और उप्र विधानसभा में आदित्यनाथ योगी ने 37 मौतों का आंकड़ा दिया, साथ ही बताया कि इन्हें मुआवजा भी दिया गया है।
लेकिन अब मीडिया संस्थान बीबीसी की रिपोर्ट ने महाकुंभ पर नए सवाल खड़े किए हैं। बीबीसी ने महाकुंभ की भगदड़ में प्रभावित लोगों के परिजनों से मुलाकात की, 11 राज्यों में 50 से अधिक जिलों में करीब सौ परिवारों से बीबीसी रिपोटर््स ने मुलाकात की, तब पता चला कि कम से कम 82 लोगों की मौत भगदड़ में हुई है। इन 82 मौतों को बीबीसी ने मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा है. पहली श्रेणी उन मृतकों की है, जिनके परिजनों को 25-25 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया गया। दूसरी श्रेणी उन मृतकों की है जिनके परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए नकद दिए गए। वहीं तीसरी श्रेणी में ऐसे मृतकों को रखा गया है जिनके परिजनों को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। गौरतलब है कि योगी सरकार ने 36 परिवारों को 25 लाख डिजीटल तरीके या चैक से मुआवजे के तौर पर दिए, वहीं 26 परिवारों को नकद में मुआवजा दिया गया है, ऐसा बीबीसी का दावा है। इसके बदले उनसे फर्जी कागजों पर हस्ताक्षर कराए गए, जिनमें मौत का कारण बदल दिया गया है।
यह बेहद गंभीर खुलासा है और इस पर बाकायदा ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स की जांच होनी चाहिए क्योंकि सरकारी खजाने से निकली हरेक पाई का हिसाब होता है, ऐसे में अगर नकद से 26 परिवारों को मुआवजा दिया गया है तो नक़दी देने का निर्णय किस नियम के तहत हुआ, नक़दी का वितरण किसके आदेश पर हुआ, नक़दी के वितरण का लिखित आदेश कहां है, नक़दी वितरण में क्या कोई अनियमितता हुई, ये सारे सवाल उठ रहे हैं। यहां नरेन्द्र मोदी के नोटबंदी और कैशलेस भुगतान के दावे पर भी सवालिया निशान लग गए हैं। क्योंकि जब सरकारें ही नकद से काम करने लगेंगी तो सरकारी हिसाब-किताब कैसे पुख्ता होगा, और फिर क्या गारंटी है कि यहां काले धन का इस्तेमाल नहीं होगा।
इन सारे सवालों के जवाब सरकार के पास ही हैं, लेकिन उसका रवैया पहले भी खामोश रहने का था और अब भी वैसा ही दिख रहा है। बीबीसी की खोजी रिपोर्ट पर अखिलेश यादव, कांग्रेस सभी सवाल उठा रहे हैं, लेकिन इनके जवाब देने की जगह फिलहाल भाजपा का जोर मोदी सरकार के 11 साल के जश्न पर है। बेशक सरकार खुशियां मनाएं, लेकिन लोगों की खुशी भगदड़ का शिकार न हो, इस बारे में सरकार क्या कर रही है, इसका जवाब तो देना ही चाहिए।


