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नए रास्ते

रामखिलावन को डर था कि कहीं ठेकेदार पगार न काट ले। कहीं काम से ही न निकाल दे । वैसे तो कभी देरी से पहुँचने की आदत उसकी थी नहीं पर आज उसे काम पर पहुँचने में एक घंटे की देरी हो चुकी थी

नए रास्ते
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- रमेश शर्मा

रामखिलावन को डर था कि कहीं ठेकेदार पगार न काट ले। कहीं काम से ही न निकाल दे । वैसे तो कभी देरी से पहुँचने की आदत उसकी थी नहीं पर आज उसे काम पर पहुँचने में एक घंटे की देरी हो चुकी थी । रामखिलावन उस ज़माने में आकर बुरी तरह फँस गया था जहाँ ज़माना लोगों के बजाय लोगों द्वारा उपयोग की जा रही चीजों के लिए जाना जाने लगा था। यह रामखिलावन जैसे दिहाड़ी मजदूर का जमाना तो था नहीं कि उसकी किसी को चिंता हो।

भयानक तेज गति से भागते इस समय में एक घंटे की देरी? उसे लगा उससे भारी भूल हो गयी। न जाने अब आगे क्या हो।नहीं नहीं.... भले कुछ भी हो जाता , उसे इस तरह रास्ते में रूकना नहीं चाहिए था । किसी तरह जीवन की गाड़ी को सरका सरका कर चला रहे रामखिलावन मजदूर के हाथों की पहुँच से अभी भी स्मार्ट फोन कोसों दूर था । हड़बड़ी और डर में जेब में पड़े नोकिया के पुराने मॉडल की मोबाइल पर अचानक उसका हाथ चला गया। उसे निकालते ही उसकी नज़र उस पर गयी । मोबाइल की घड़ी ठीक दस बजा रही थी।

'ससुरा मोबाइल में भी घड़ी काहे फीट कर दिया है कम्पनी ने , हाथ घड़ी कम था क्या आदमी को परेशान करने के लिए ! पांच मिनट देरी हुई नहीं कि दिमाग उधर ही भागने लगता है' वह बडबडाता हुआ सायकिल से उतरा और सटाक से स्टेंड मारकर साईकिल को लॉक कर दिया । एक बार के लिए चारों तरफ नज़रें फिरा लेने के बाद उसे थोड़ी तसल्ली हुई । 'साला खडूस अभी पहुंचा नहीं।' राहत की साँस लेते हुए ठेकेदार के लिए उस वक्त यही संबोधन निकला उसकी जुबाँ से।
उसने सेकेण्ड भर भी देरी नहीं की । नए बन रहे अपार्टमेंट की तरफ झट से दौड़ा दौड़ा वह ऊपर चढ़ गया। 'शुक्र है पगार कटने से बच गयी'।
'पगार कटना , काम छूट जाना .....याने बहुत सारी परेशानियों का एक साथ घर में आना' इसकी कल्पना एक मजदूर ही कर सकता है जो उसे भोगा हो या जिसने ऐसा होते हुए देखा हो।

इस बात की कल्पना करके ही वह एक बार पुन: सकते में आ गया था ।
उसके पहुँचने से पहले ही रायमुनी ईंटों की चार पंक्तियाँ ऊपर चढ़ा चुकी थी । चार पंक्तियाँ याने लगभग चार सौ ईंट ।
'कहाँ रह गया था जानेमन, इतनी देरी कैसे हुई?' रामखिलावन की तरफ आँख मटकाकर रायमुनी मजाक करने लगी।
कहीं यह ठेकेदार को उसके देर से पहुँचने की खबर न बता दे, यह सोचकर रामखिलावन कुछ समय के लिए फिर सकते में आ गया । उसने कहा कुछ नहीं , बस रायमुनी की तरफ देखकर मुस्कुरा भर दिया । उसे विश्वास था कि उसके साथ काम करने वाले जितने भी कुली रेज़ा हैं , उसकी शिकायत ठेकेदार से कभी नहीं करेंगे।
'घर में कोई बीमार है ? पत्नी झगड़ा कर रही थी का? या कोई और मसला है?....अरे कुछ तो बता, किस बात के लिए देरी हुई आज' रायमुनी ने मुस्कुराते हुए फिर से रामखिलावन को छेड़ दिया।

'अरे जाने दे न ! लगता है ठेकेदार से मेरा पगार कटवाकर ही दम लेगी तू'
'पगार काटें तेरे दुश्मन ! तूने ऐसा सोच कैसे लिया पागल कि मैं तेरा पगार कटवाऊँगी' - रायमुनी चेहरे पर बनावटी नाराज़गी लाते हुए अपनी बात एक साँस में कह गयी ।
'क्या बताऊँ तुम्हें कि मुझे किस बात के लिए आज देरी हुई। बताऊंगा तो तू विश्वास भी नहीं करेगी।' -रामखिलावन इतना भर कह सका था कि अचानक दूर से उसकी ओर ठेकेदार आता हुआ दिखाई पड़ा।

'शुक्र है इसने सुना नहीं , नहीं तो अभी हजार बात सुनाता और ऊपर से पगार भी काट लेता'- वह मन ही मन बुदबुदाने लगा । उसकी हालत देख रायमुनी ने उसकी ओर कनखियों से देखते हुए बायीं आँख मारी और मुस्कुराते हुए नीचे उतर गयी। अभी उसे ईंटों की न जाने और कितनी पंक्तियाँ ऊपर चढ़ाकर सजानी थी। ईंटों को पंक्तियों में सजाकर ही तो उसका जीवन सजने की कगार पर पहुँच पाता था। अब तक का उसका जीवन सज पाया या नहीं वह तो वही जाने पर रायमुनी को अब तक हर समय खुश रहते हुए ही लोगों ने देखा था।

नवनिर्मित अपार्टमेंट में पहुँचते ही ठेकेदार सबको आज का काम समझाने लगा था। ठेकेदार की भाषा बहुत असहज कर देने वाली भाषा होती थी । आज भी वह वही भाषा बरत रहा था ।

'बहुत खडूस आदमी है स्साला!' ठेकेदार के जाते ही रायमुनी के मुंह से निकले शब्द फिर से वहां के वातावरण को सहज करने लगे थे।
काम की गति ज्यों ज्यों बढ़ने लगी, कुली रेज़ा के बीच के आपसी संवाद भी उसी गति से बढ़ने लगे थे।
'तू क्या बचपन से इतनी ही बातूनी थी?' रामखिलावन ने रायमुनी को फिर एक बार आँख मारते हुए छेड़ दिया
'अरे जीवन मिला है प्यार से बात करने को ! अब तू ही बता ,क्या तुम्हारी तरह चुप्पा मारकर अपनी जवानी बिता दूँ !'
'ना भई ना ! तू बोलती रहती है न, तो सच में काम जल्दी सरकता है' रामखिलावन ने रायमुनी को उसी अंदाज में जवाब देते हुए कहा।
रामखिलावन की बातें सुनकर रायमुनी खिलखिला उठी। कुछ देर के लिए उसकी खिलखिलाहट हवा में इस तरह तैरने लगी जैसे कि पहली मानसून में तेज़ पड़ने वाली फुहारें हवा की दिशा में इधर उधर भागने लगती हैं ।

नए बन रहे उस अपार्टमेंट में सात रेज़ा , पांच कुली और छ: मिस्त्री एक साथ काम कर रहे थे । दोपहर एक बजे उन्हें एक घंटे के लिए जब विश्राम मिलता तो सभी अठ्ठारह लोग एक जगह बैठकर अपना अपना झोला निकालते। किसके झोले में क्या निकलेगा किसी के लिए यह कौतुहल का बिषय नहीं होता था। रोज की तरह पेट को शांत करने का वही सामान। किसी के झोले में सूखा भात, अचार और आलू का भरता तो कहीं बोरे-भात, भाजी और टमाटर की सूखी चटनी। मजदूर का झोला किसी के लिए कौतूहल का बिषय कब बन सका है कि उनके लिए बन पाता। जिसके पास जो होता था उसे ही वे एक घंटे के दरमियान खाकर उसी समय के भीतर सुस्ताने की कोशिश करते। ऑफिस के बाबू और साहब लोगों के लिए यह समय लंच का समय कहा जाता है पर जब इन मजदूरों की बात आती है तो यह समय लंच का समय न होकर सुस्ताने का समय बन जाता है । भाषा भी आदमी आदमी के बीच कितना विभेद करती है । इस विभेद को बरतने का ठेका ठेकेदार को मिला हुआ था।
घड़ी की सुईयाँ इधर दोपहर दो को छूने को होतीं नहीं कि अचानक ठेकेदार की कर्कश आवाज दूर से सुनाई देती --
'सुस्ता लिए बे हरामखोरों ! चलो अब जल्दी काम पर लगो।'

ठेकेदार ठीक दोपहर दो बजे धमक आता था । इस बीच सुबह से अब तक हुए एक एक काम का वह मुआयना भी करता। कहीं कुछ कमी बेशी दिखी नहीं कि उसके मुंह से माँ बहन की गालियों की बौछारें भी पड़ने लगतीं।

रेज़ाओं से भी वह इस तरह का व्यवहार करता जैसे वे स्त्री न होकर हाड़ मांस के पुतले भर हों । पुरूषों और महिलाओं के लिए उसके मुंह से एक समान गालियाँ निकलतीं । कोई बाहरी आदमी उसे सुन ले तो यह लग सकता था उसे कि जैसे वह कोई रोबोट है। एक ऐसा रोबोट जिसके भीतर गंदी गंदी गालियाँ इंस्टाल की हुई हैं जिसे समय अनुसार वह उगलेगा। रेज़ाओं के छोटे छोटे बच्चे जो इधर उधर रेत के ऊपर खेलते रहते थे उसके आते ही खेलना छोड़कर इस आधे अधूरे अपार्टमेंट के किसी कोने में दुबक जाते थे। उनका दुबकना भी उसके भीतर की सूख चुकी नदी को कभी पानीदार नहीं कर सका । उसके हिस्से ऐसे कई किस्से थे जो उसके रोबोट हो जाने को सही भी ठहराते।

हर शनिवार मजदूरों को जब वह पेमेंट करने आता तो लठ लठ से शराब पिए हुए होता । शराब के नशे में वह बहकी बहकी बातें करता । कुछ ऐसा कह जाता कि मजदूर उसकी बातें सुनकर सन्न भी रह जाते ।

'मेरी बीबी भाग गयी । मेरी बीबी क्यों भाग गयी, कोई बताएगा भी!' पेमेंट देते समय हर किसी से वह यही सवाल किया करता।
उसकी बीबी के किसी के साथ भाग जाने का किस्सा तो सभी जानते थे पर वह क्यों भागी , किसके साथ भागी कोई नहीं जानता था ।
'कोई आइडिया है तो बता न' -रायमुनी ने एक बार रामखिलावन से पूछा जरूर था। रामखिलावन को इस बात की जानकारी थी या नहीं, कहा नहीं जा सकता था। वैसे रामखिलावन उस ठेकेदार का सबसे पुराना आदमी था इसलिए रायमुनी को लगता था कि रामखिलावन को हो न हो इस बात की जानकारी जरूर होगी।
'छोड़ न ये सब बात! फायदा क्या है ये सब जानने में!' - रामखिलावन ऐसी बातों को टाल देता था।

उस दिन शुक्रवार था। ग्यारह बज चुके थे। ठेकेदार सुबह नौ बजे ही साईट पर पहुँच गया था। रायमुनी इस बात को लेकर परेशान थी कि रामखिलावन अभी तक काम पर क्यों नहीं पहुंचा। रामखिलावन इतना नासमझ तो नहीं है कि जानबूझ कर देरी करे'- ईंटों को सजाते सजाते वह इसी उधेड़ बुन में लगी थी।
इसी बीच उसे ठेकेदार की कर्कश आवाज़ सुनाई पड़ी - 'ये हरामखोर रामखिलावन कहाँ मर गया आज! अभी तक नहीं पहुंचा।'
किसी अनिष्ट की आशंका से रायमुनी का मन विचलित होने लगा। ठेकेदार से नज़रें बचाते हुए उसने रामखिलावन को सीधे फोन लगा दिया।
'हल्लो'

'हाँ कहाँ हो तुम अभी? ठेकेदार का पारा इधर सातवें आसमान पर चढ़ गया है।
'मैं आज नहीं आ सकता!'

'पर हुआ क्या यह तो बताओ!'
'ठेकेदार की बीबी मर गयी । उसके दाह संस्कार की व्यवस्था में लगा हूँ'
'ठेकेदार की बीबी? वही जो किसी के साथ भाग गयी थी'
'हाँ वही'

'तो फिर उसका शौहर कहाँ गया?'
'वह पहले ही मर चुका है'
'मर चुका है मतलब?'
'हाँ मर चुका है'

'मरते समय आज ही उसने मुझे बताया कि ठेकेदार ने उसका मर्डर करवा दिया था'
'ओह्ह...फिर तो यह बहुत खतरनाक आदमी है'

'उस दिन तुमने मुझसे पूछा था न कि मैं क्यों एक घंटे देरी से पहुंचा । उस दिन वह बहुत बीमार हालत में मुझे अचानक रास्ते में मिल गयी थी। मुझे पता था कि वह इसी गाँव में कहीं रहती है, पर वह इस तरह मुझे मिल जाएगी इसका अंदेशा मुझे बिल्कुल नहीं था । वह मुझे पहचानती थी । आमने सामने होते ही अपना दुखड़ा सुनाने लगी। बताने लगी कि उसके साथ जीवन एकदम नरक हो गया था। उसे कहीं न कहीं तो भागना ही था।
'कौन था वह?'

'अब ये न पूछो कि कौन था वह , पर था एक सज्जन। उसने उस महिला का दर्द बांटने की कोशिश की जीवन में और जीवन से ही हाथ धो बैठा।
'उसका घर परिवार?'

'कोई नहीं था उसका। एक अनाथ और कुंवारा लड़का था । कोई नहीं था इसलिए उसकी मृत्यु की कोई छानबीन भी नहीं हुई ।'
'ओह्ह यह तो बहुत बुरा हुआ उसके साथ !'

'हाँ ! कई बार अच्छा करने वाले के साथ बुरा भी हो जाता है। क्या पता मेरे साथ भी बुरा हो जाए।'
'अब बुरा हो जाने के डर से क्या आदमी अपनी मनुष्यता ही छोड़ दे? बताओ रामखिलावन! तुमने अच्छा ही किया जो आज वहां रूक गए'
इसी बीच कॉल डिस्कनेक्ट हो गया।

रायमुनी की बातों ने रामखिलावन को थोड़ी ताकत दी । पगार और नौकरी के चले जाने के भय से ग्रस्त उसके भीतर बैठे डरपोक आदमी से आज उसे कुछ देर के लिए निजात मिली।

रायमुनी को पता नहीं क्या सूझा कि उसने उसे दोबारा कॉल करते हुए कहा - 'तुम सिर्फ एक मजदूर भर नहीं हो रामखिलावन, तुम एक समझदार और अच्छे आदमी भी हो। तुम डरना नहीं! समझदार और संवेदनशील आदमी डरा नहीं करते !'

रामखिलावन को लगा कि कई बार आदमी अपने होने से बहुत ऊपर उठकर बातें करने लग जाता है. रायमुनी उसकी नज़र में एक रेज़ा भर नहीं थी , बल्कि वह कुछ और भी थी। उसकी निडरता और खुद्दारी ने रामखिलावन के भीतर एक नयी उम्मीद को उस समय जन्म दिया और वह अपने भीतर जन्मे द्वन्द से बाहर आने लगा ।
'अरे गोली मारो ऐसे धूर्त ठेकेदार को, दो हाथ धरे हैं तो कहीं भी कमाकर खा लेंगे' - रायमुनी की बातों से उसके भीतर न जाने कैसी हिम्मत आ गयी थी कि उसके विचार तेजी से बदल रहे थे। उसने महसूस किया कि मन के भीतर जीवन के प्रति उम्मीद का आकार बड़ा हो रहा है और डर तेजी से सिकुड़ रहा है। भीतर दशकों से जमी अनचाही चीजों की बर्फ आज पिघलने लगी थी ।

जीवन में नए रास्ते दिखाई दे रहे थे और उसका मन हल्का हुआ जा रहा था ।


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