भाजपा निर्मित अराजकता के बावजूद खुलेगी लोकतंत्र की नयी राह
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 9 वर्षों के दौरान केन्द्र सरकार चलाते हुए अनगिनत लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है और संसदीय परम्पराओं को बगैर किसी संकोच के तोड़ा है

- डॉ. दीपक पाचपोर
क्या भाजपा व केन्द्र सरकार जवाबदेही से बच जायेगी? अब नहीं! कुछ समय पहले तक तो यह सम्भव था, क्योंकि विपक्ष विभाजित व भयभीत था। राहुल पर हुई कार्रवाई ने उन सभी को जतला दिया है कि निरंकुशता और प्रशासनिक बर्बरता से कोई बचेगा नहीं। केन्द्रीय जांच एजेंसियों के गैर जिम्मेदाराना व मनमाने उपयोग ने जिन दलों के नेताओं में डर बिठा दिया था, वे अब महसूस कर रहे हैं कि जब सबसे बड़े नेता (राहुल) के साथ यह व्यवहार हो रहा है तो वे किस खेत की मूली हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 9 वर्षों के दौरान केन्द्र सरकार चलाते हुए अनगिनत लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन किया है और संसदीय परम्पराओं को बगैर किसी संकोच के तोड़ा है। संविधान के उन नियमों का ही वह पालन करती है जिनसे उसे फायदा हो। जहां स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों के निर्वाह की बात हो, वह उसे या तो 'चाणक्य नीति' के नाम पर लोक-लाज को ताक पर रखकर तोड़ती है अथवा नियम-कायदों को अप्रासंगिक बतलाकर उन्हें भंग करती है।
लोकतांत्रिक उदारता एवं सदाशयता का सम्भवत: भाजपा को अता-पता नहीं है। इसी प्रवृत्ति ने देश को इस संवैधानिक अराजकता के मार्ग पर ढकेल दिया है जो सबके लिये खतरनाक है- अगर स्वयं भाजपा आगे सत्ता में आती है तो भी या कोई और आता है, तब भी। वह इसलिये क्योंकि संविधान के केन्द्र में नागरिक है, न कि राजनैतिक दल या सरकारें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कार्यकाल सरकार के अमर्यादित आचरण का ऐसा उदाहरण है जो आने वाले समय में नज़ीर की तरह याद किया जायेगा, कि सियासी पार्टियों व सरकारों को कैसा व्यवहार 'नहीं' करना चाहिये।
भाजपा सरकार ने ऐसे बहुतेरे उदाहरण पेश किये हैं, जिनमें ताज़ा है कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लेकर किया गया उसका बर्ताव। कानूनी प्रावधानों के अनुरूप कार्रवाई करते हुए भी लोकतांत्रिक मर्यादाओं के उसे अनुकूल नहीं कहा जा सकता। हालांकि इस घटनाक्रम ने विपक्ष को जिस तरह से एकजुट व ताकतवर बना दिया है, उससे उम्मीद की जा सकती है कि भाजपा निर्मित इस अराजकता के बीच भी भारतीय लोकतंत्र की नयी राह खुलेगी- 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के परिणामों के जरिये।
राहुल प्रकरण पर काफी कहा व सुना जा चुका है, जिस पर और कुछ यहां लिखे जाने की आवश्यकता नहीं रह गई है, लेकिन यह लोगों के बीच साफ संदेश जा रहा है कि अब केन्द्र सरकार के पीछे छिपी भाजपा व उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ महसूस करने लग गये हैं कि जिस कांग्रस को वे जड़ से खत्म कर देना चाहते हैं, वह शक्ति बटोरकर दोबारा उठ खड़ी हो रही है। उसके साथ वे लोग भी आ रहे हैं जो समझने लग गये हैं कि राहुल हों या गांधी परिवार (साथ में सोनिया व प्रियंका) के बारे में जैसा जहरीला दुष्प्रचार किया गया है और दुर्भावना फैलाई गई है, वैसे वे हैं नहीं और यह कुनबा जन सरोकार के मुद्दों को लेकर जनता के पक्ष में हरदम खड़ा रहता है।
'जर्सी गाय', '50 करोड़ की विधवा' जैसे घृणित शब्दों से नवाजे जाने तथा तमाम तरह के अपमान व कटुता के बावजूद सोनिया गांधी ने न मैदान छोड़ा और न ही कई तरह के लांछनों व आरोपों के बाद भी राहुल व प्रियंका ने जनता का साथ छोड़ा। हर कठिन समय में और जन सरोकार के मसलों पर राहुल-प्रियंका-सोनिया की तिकड़ी लोकतंत्र की रक्षा में डटी रही।
केन्द्र सरकार व भाजपा प्रणीत राज्य सरकारों के जनविरोधी कामों के विरूद्ध कांग्रेस ने अगर हमेशा तैनाती दी तो इसका कारण पार्टी का यही नेतृत्व रहा है। भाजपा सरकार के गलत निर्णयों के खिलाफ आवाज उठाने व उसकी आलोचना का पहले तो मखौल उड़ाया गया परन्तु पिछले कुछ समय में जब पाया गया कि कांग्रेस, खासकर राहुल की वे सारी बातें सच हो रही हैं जो वे कहते आये हैं, तो उनके बारे में अवधारणा बदली और लोग जानने लगे हैं कि वे न केवल चीजों को सटीक दृष्टि से देखने का माद्दा रखते हैं वरन ज्यादातर बातों के परिणामों को लेकर उनके अनुमान भी खरे उतरते हैं।
फिर, वह चाहे कोरोना को लेकर हो या रोजगार के मामले में हो, चीन के बाबत हो या पूंजीपतियों के सम्बन्ध में कही गयी बातें। करीब 4 हजार किलोमीटर की लम्बी 'भारत जोड़ो यात्रा' ने राहुल को लेकर बनाई गई अवधारणा व छवि को पूरी तरह से ध्वस्त कर रख दिया। इस दौरान उन्होंने घृणा के बदले जो मुहब्बत की राह दिखलाई उसे भी लोगों का जबर्दस्त प्रतिसाद मिला। पूंजी के कुछ हाथों में समा जाने और मोदी द्वारा अपने दोनों खास मित्रों- गौतम अदानी व मुकेश अंबानी को देश के सारे उपक्रम दिये जाने का उन्होंने खुलकर विरोध किया। यात्रा के बाद भी उन्होंने अपना आक्रामक तेवर लोकसभा में जारी रखा।
बौखलाई भाजपा को राहुल के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दिये भाषण से मौका मिला। इसे देश विरोधी वक्तव्य बतलाते हुए भाजपा व उसकी सरकार ने राहुल को झुकाने की कोशिश की जिसमें नाकामी ही हाथ लगी। गुजरात की एक कोर्ट में उनके खिलाफ ठंडा पड़ चुका अवमानना का मामला फिर से खोला गया और उनकी संसद की सदस्यता छीन ली गयी। अब बंगला भी खाली कराया जा रहा है। कानून व लोकसभा अध्यक्ष सचिवालय ने गज़ब की फुर्ती इस मामले में दिखलाई। नियमों का पालन तो हुआ लेकिन सरकार की दुर्भावना साफ दिख गई।
इससे बाजी पलट गई। लोगों को समझ में आ गया कि सरकार ने यह कदम राहुल की आवाज दबाने के लिये किया है। अवाम जान गई कि अदानी के शेयर घोटाले पर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बारे में वे सवाल न पूछ पायें इसके लिये यह पूरा नाटक रचा गया है। इसमें यह भी बताया गया है कि कैसे मोदी के सहयोग से ही अदानी विश्व के दूसरे क्रमांक पर पहुंच गये, जो कि 2014 में अमीरों की सूची में 609वें नंबर पर थे। इस घोटाले की चर्चा दुनिया भर में हुई और मोदी की पार्टी, उनके कार्यकर्ताओं एवं आईटी सेल द्वारा उनकी (पीएम) गढ़ी गई छवि को बड़ा धक्का पहुंचा है। एक तरह से कहें तो मोदी के महामानव होने, पार्टी के देशभक्त होने एवं संघ के राष्ट्रवाद की ही कलई खुल गई। दरअसल इसी छवि के कारण देश की जनता के एक बड़े हिस्से ने अपने अधिकारों व नागरिक चेतना को तक सत्ता के आगे गिरवी रख दिया है और इसी के बल पर मोदी शक्तिशाली बने हुए हैं तथा मनमानी कर रहे हैं। इस छवि के ढहने का अर्थ है भाजपा द्वारा अपनी राजनैतिक व सामाजिक शक्ति को गंवा बैठना। प्रेस कांफ्रेंस, विधायिका के अंदर व बाहर खुले संवादों से भागने वाले मोदी को जवाब न देना पड़े इसके लिये भाजपा अब देश भर की सड़कों पर मंच बनाती फिर रही है।
सवाल यह है कि क्या भाजपा व केन्द्र सरकार जवाबदेही से बच जायेगी? अब नहीं! कुछ समय पहले तक तो यह सम्भव था, क्योंकि विपक्ष विभाजित व भयभीत था।राहुल पर हुई कार्रवाई ने उन सभी को जतला दिया है कि निरंकुशता और प्रशासनिक बर्बरता से कोई बचेगा नहीं। केन्द्रीय जांच एजेंसियों के गैर जिम्मेदाराना व मनमाने उपयोग ने जिन दलों के नेताओं में डर बिठा दिया था, वे अब महसूस कर रहे हैं कि जब सबसे बड़े नेता (राहुल) के साथ यह व्यवहार हो रहा है तो वे किस खेत की मूली हैं।
कई ऐसे प्रतिपक्षी दल जो अब तक कांग्रेस से किनारा हुए थे, वे भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा सोमवार की रात भोज के साथ आयोजित एकता बैठक में शामिल हुए। विपक्षी एकता ही तमाम समस्याओं का निवारण है। विभाजित व खंडित विपक्ष ही भाजपा की ताकत है जो उसे निरंकुश बनाता है। सवाल यह नहीं है कि अगले चुनावों में कौन जीतता है या कौन हारता है। महत्वपूर्ण तो यह है कि जो भी सरकार में रहे, वह संविधान का शासन चलाए तथा संसदीय परम्पराओं का निर्वाह करे। इसके लिये मजबूत सरकार नहीं वरन शक्तिशाली विपक्ष आवश्यक है। जो लोकतंत्र आज राह भटक चुका है उसे वापस सही मार्ग पर लाने की कोशिशें कामयाब हो सकती हैं, बशर्ते कि प्रतिपक्ष भाजपा को मिलकर चुनौती दे। लोकतंत्र की राह इस अराजकता के बीच से भी निकल सकती है।
(लेखक 'देशबन्धु' के राजनीतिक सम्पादक हैं)


