Top
Begin typing your search above and press return to search.

नई शिक्षा व्यवस्था दुनिया के भविष्य को दिशा देगी : प्रो. यूनुस

नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. मोहम्मद यूनुस ने कहा है कि नई और वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था ही दुनिया के भविष्य की दिशा तय करेगी, ऐसे में हमें प्रत्येक विद्यार्थी को स्वयं की पहचान के प्रति जागृत करना होगा

नई शिक्षा व्यवस्था दुनिया के भविष्य को दिशा देगी : प्रो. यूनुस
X

भोपाल। नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. मोहम्मद यूनुस ने कहा है कि नई और वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था ही दुनिया के भविष्य की दिशा तय करेगी, ऐसे में हमें प्रत्येक विद्यार्थी को स्वयं की पहचान के प्रति जागृत करना होगा, जिससे वह अपनी ऊर्जा के अनुसार समाज को लाभान्वित करे। भोपाल में चल रहे 'सार्थक एजुविजन-2021' को संबोधित करते हुए कहा प्रो. यूनुस ने आहुति सत्र में यह बात कही। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज जॉब मार्केट के दौर में केवल जॉब सीकर तैयार किए जा रहे हैं, जो कि उचित नहीं है, यह प्रवृत्ति बदलनी चाहिए।

वहीं, नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा, "देश में मूल्यपरक शिक्षा की जरूरत है। हमें ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित करनी चाहिए, जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो और प्रकृति अनुकूल विकास का भागीदार बने। आज विकास और पर्यावरण के द्वंद्व के कारण मानव जीवन का भविष्य अच्छा नहीं रह गया है, जिसे सुधारने की जरूरत है।"

डॉ. कुमार ने कहा कि पश्चिम में कृषि का जो इंडस्ट्री मॉडल है, वह हमारे देश के अनुकूल नहीं है, क्योंकि हमारे देश में 86 प्रतिशत किसानों के पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है। उन्होंने विश्वविद्यालयों को कृषि आधारित शोध करने का आह्वान किया।

इससे पहले, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्रबुद्धे ने दोनों संस्थाओं द्वारा शिक्षा व्यवस्था में नवोन्मेष और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में किए जा रहे कार्यो की जानकारी दी।

प्रो. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में हमें अपने विद्यार्थियों को प्रखर भारतीयता के साथ ग्लोबल भी बनाना है। गुरु दक्षता जैसा नवाचार शुरू किया जाना है, जो शिक्षकों को दक्ष करेगा। जीवन कौशल का पाठ्यक्रम शुरू किया गया है, जो विद्यार्थियों को बहुत मददगार होगा।

वहीं, डॉ. सहस्रबुद्धे ने बताया कि "भारत के गांव-गांव पाठशालाएं थीं, जिन्हें अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था लागू करने के लिए नष्ट कर दिया था। भारत की शिक्षा व्यवस्था को समझने के लिए हमें धर्मपाल का ग्रंथ 'अ ब्यूटीफुल ट्री' पढ़ना चाहिए। यह ग्रंथ उन्होंने महात्मा गांधीजी के आग्रह पर लिखा था।"

इस कांफ्रेंस में 'ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियां' विषय पर आयोजित सत्र में कंसोर्टियम ऑफ एजुकेशनल कम्युनिकेशन के निदेशक जे.बी. नड्डा ने पाठ्य सामग्री के डिजिटलाइजेशन एवं ऑनलाइन के संबंध में नई आवश्यकताओं और उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी दी।

एनसीईआरटी के सचिव मेजर हर्ष कुमार ने ऑनलाइन शिक्षा और एनसीईआरटी की गतिविधियों के संबंध में विस्तार से जानकारी दी। इसके बाद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नागेश्वर राव ने ऑनलाइन शिक्षा की आवश्यकता एवं सीमाओं पर अपने विचार रखे। मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय नियामक आयोग के अध्यक्ष डॉ. भरत शरण सिंह ने भी अपनी अपनी बात कही।

भारतीय शिक्षण मंडल द्वारा गुरुकुलम की प्रदर्शनी लगाई गई है, जो सबको आकर्षित कर रही है और भारतीय शिक्षा पद्धति एवं ज्ञान-परंपरा की जानकारी दे रही है।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के व्याकरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. ज्ञानेंद्र सापकोटा ने बताया कि भारत को अगर सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है तो उसका एक ही कारण रहा, वह था भारत की गुरुकुल शिक्षा पद्धति।

डॉ. ज्ञानेंद्र ने बातचीत के दौरान कहा कि गुरुकुल भारतीय संस्कृति की पहचान रहा है, भारतीय शिक्षा पद्धति का केंद्र रहा है। इसके साथ ही अनेक राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों ने भी यहां प्रदर्शनियां लगाई हैं।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it