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क्या महिलाओं को शांति से जीने का अधिकार नहीं

नई दिल्ली ! महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर नाराजग़ी जताते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सवाल किया कि क्या इस देश में महिलाओं को शांति से जीने का अधिकार नहीं है?

क्या महिलाओं को शांति से जीने का अधिकार नहीं
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नई दिल्ली ! महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर नाराजग़ी जताते हुए उच्चतम न्यायालय की पीठ ने सवाल किया कि क्या इस देश में महिलाओं को शांति से जीने का अधिकार नहीं है?
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर व न्यायमूर्ति एमएम शांतानागोंदर की पीठ ने एक व्यक्ति की अपील पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. याचिकाकर्ता को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने 16 वर्षीय एक लडक़ी के साथ कथित तौर पर छेड़छाड़ करने और आत्महत्या जैसा क़दम उठाने को मजबूर करने के एक मामले में सात साल की कारावास की सजा सुनाई है. याचिकाकर्ता ने इसी के ख़िलाफ़ अपील की थी. आरोपी की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, इस देश में क्या महिलाओं को शांति से जीने का अधिकार नहीं है?
शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी भी महिला पर प्रेम करने के लिए दबाव नहीं बना सकता क्योंकि महिला की ख़ुद की स्वतंत्र पसंद होती है. पीठ ने कहा, यह किसी भी महिला की अपनी पसंद है कि वह किसी व्यक्ति से प्रेम करना चाहती है या नहीं. महिला पर कोई भी किसी से प्रेम करने का दबाव नहीं बना सकता. प्रेम की एक अवधारणा होती है और पुरुषों को यह स्वीकार करना चाहिए. बहस के दौरान, व्यक्ति की ओर से पेश अधिवक्ता ने लडक़ी के मृत्युपूर्व बयान पर संदेह जताते हुए कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान वह बोलने या लिखने में सक्षम नहीं थी। अधिवक्ता ने कहा, डॉक्टरों ने कहा कि वह 80 फीसदी जल चुकी थी और मृत्युपूर्व बयान लिखना उसके लिए संभव नहीं था. वह बोल भी नहीं सकती थी. उसके दोनों हाथ जल चुके थे. वह इस स्थिति में नहीं थी कि कुछ लिख या कह सके. इस पर पीठ ने व्यक्ति से कहा कि लडक़ी के मृत्युपूर्व बयान के मुताबिक तुमने ऐसे हालात बना दिए कि उसे आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा. आरोपी युवक जुलाई 2010 में ट्रायल कोर्ट द्वारा रिहा कर दिया गया था जिसके बाद मामला हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में पहुंचा था. पुलिस ने कहा, लडक़ी के पिता ने मामले में कथित तौर पर अपहरण और बलात्कार का केस दर्ज कराया था. यह भी आरोप है कि आरोपी लडक़ी धमकी और प्रताडि़त करता रहता था जिसके बाद उन्होंने जुलाई 2008 में ख़ुद को आग लगाकर खुदकुशी करने की कोशिश की. उस वक्त घर में उनके माता पिता नहीं थे. बाद में लडक़ी को अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया. हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी कऱार देते वक़्त लडक़ी की मौत के समय की गई घोषणा और अदालत में पेश किए गए सबूतों पर भरोसा किया. कोर्ट ने कहा था कि आरोपी ने लडक़ी के साथ लगातार छेडख़ानी कर ख़ुदकुशी के लिए मजबूर किया.


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