गोवा विधानसभा में गुरुवार को हो शक्ति परीक्षण : न्यायालय
नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने मनोहर पर्रिकर को गोवा का मुख्यमंत्री नियुक्त करने के गोवा की राज्यपाल के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए

नई दिल्ली ! सर्वोच्च न्यायालय ने मनोहर पर्रिकर को गोवा का मुख्यमंत्री नियुक्त करने के गोवा की राज्यपाल के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए विधानसभा में गुरुवार को शक्ति परीक्षण का आदेश मंगलवार को दिया है। शीर्ष अदालत के आदेशानुसार, पर्रिकर को अब गुरुवार को गोवा विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा।
इस बीच पर्रिकर ने मंगलवार को चौथी बार गोवा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पर्रिकर के साथ उनके मंत्रिमंडल के नौ अन्य सदस्यों को भी राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने राजधानी पणजी में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को यह आदेश कांग्रेस विधायक दल के नेता चंद्रकांत कावलेकर की याचिका पर दिया, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई तथा न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल की पीठ ने गोवा विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए गुरुवार का दिन तय किया। साथ ही कहा कि इसके लिए सभी औपचारिकताएं 15 मार्च तक पूरी कर ली जाएं।
शीर्ष अदालत ने कहा, "सुनवाई के दौरान हम इस बात पर संतुष्ट हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए बेहद संवेदनशील एवं विवादास्पद मुद्दे का समाधान विधानसभा में जल्द से जल्द शक्ति परीक्षण का साधारण-सा निर्देश देकर निकाला जा सकता है। शक्ति परीक्षण से सारे संशय समाप्त हो जाएंगे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति विश्वसनीयता कायम होगी।"
अदालत ने अपने आदेश में कहा, "हम राज्यपाल से निवेदन करते हैं..कि वह 16 मार्च को शक्ति परीक्षण सुनिश्चित करें और गुरुवार को विधानसभा की कार्यवाही का यह एकमात्र उद्देश्य होगा कि पद एवं गोपनीयता की शपथ ले चुके मुख्यमंत्री बहुमत साबित करें।"
शीर्ष अदालत ने पर्रिकर और कावलेकर के बीच 'कंपोजिट फ्लोर टेस्ट' की याचिका भी खारिज कर दी और कहा, "आपने (कावलेकर) दस्तावेज के नाम पर कुछ भी पेश नहीं किया। आपने राज्यपाल को कुछ नहीं बताया। आपने इतने गंभीर मामले में कोई शपथ-पत्र नहीं पेश किया। आपके पास दस्तावेज के नाम पर कुछ भी नहीं है।"
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने जब अदालत को संवैधानिक प्रावधानों और संकल्पों की याद दिलाई तो अदालत ने कहा, "आप हमें राज्यपाल की स्थिति में खड़ा कर रहे हैं। आप हमें वह सारी चीजें बता रहे हैं, जो आपको राज्यपाल को बतानी चाहिए।"
पीठ ने याचिका में पर्रिकर को पक्ष न बनाने के लिए भी कावलेकर से आपत्ति जताई।
न्यायालय ने कहा, "आप उन्हें जानते हैं। वह रक्षामंत्री थे। आप ने उन्हें मामले में पक्ष तक नहीं बनाया। आप ने सबकुछ गलत किया। आप ने कुछ भी नहीं किया और दुनिया पर उंगली उठा रहे हैं।"
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने अदालत से कहा कि शक्तिपरीक्षण के लिए दिन निर्धारित करने के बजाय जल्द से जल्द कराने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
इस पर प्रधान न्यायमूर्ति केहर ने कहा, "हमें जल्द से जल्द का मतलब नहीं पता। हम ऐसा कहें या न कहें, इसे जल्द से जल्द ही होना चाहिए।"
सिंघवी ने जब राज्यपाल द्वारा गलत किए जाने की बात पर जोर दिया तो अदालत ने कहा, "आपको धरने पर बैठ जाना चाहिए और सारी गड़बड़ियों को उजागर करना चाहिए..। आपके पास पूरी रात है। आपके पास शपथ-पत्र तैयार करने के लिए पर्याप्त समय है या तो अपने समर्थक विधायकों को हमारे सामने पेश करें।"


