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जीएसटी से जुड़े चार विधेयकों को लोकसभा की मंजूरी

नयी दिल्ली ! देश काे एक बाजार के रूप में पिरोने और अब तक के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधार के लिए मील का पत्थर माने जा रहे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े चार विधेयकों को लोकसभा ने आज ध्वनिमत से

जीएसटी से जुड़े चार विधेयकों को लोकसभा की मंजूरी
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नयी दिल्ली ! देश काे एक बाजार के रूप में पिरोने और अब तक के सबसे बड़े अप्रत्यक्ष कर सुधार के लिए मील का पत्थर माने जा रहे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से जुड़े चार विधेयकों को लोकसभा ने आज ध्वनिमत से पारित कर दिया, सरकार का जीएसटी को इस साल 01 जुलाई से लागू करने का लक्ष्य है। चार विधेयकों - केंद्रीय जीएसटी विधेयक, एकीकृत जीएसटी विधेयक, केंद्रशासित क्षेत्र जीएसटी विधेयक और जीएसटी (राज्यों को क्षतिपूर्ति) विधेयक - पर सदन में दिन भर चली चर्चा के बाद विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुये वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इनके कानून बनने से पूरा देश एक बाजार के रूप में स्थापित हो जायेगा और वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी तथा एक सरल कर व्यवस्था लागू होगी जिसका उल्लंघन करना आसान नहीं होगा। उन्होंने कुछ विपक्षी सदस्यों की इस आशंका को निर्मूल बताया कि जीएसटी परिषद् को कर की दर तय करने का अधिकार देने से इस मामले में संसद की संप्रभुता समाप्त हो जायेगी। उन्होंने कहा परिषद् का काम सिर्फ सिफारिश करना है जबकि सिफािरशों पर अमल के लिए कानून संसद और राज्य विधानसभाएँ ही बनायेंगी। जीएसटी में कर के चार स्लैब तय किये गये हैं। पहला स्लैब शून्य प्रतिशत का है जिसमें मुख्य रूप से खाद्यान्न तथा अन्य जरूरी पदार्थों को रखा जायेगा। दूसरा स्लैब पाँच प्रतिशत का है। मानक स्लैब 12 और 18 प्रतिशत के रखे गये हैं जबकि चौथा स्लैब 28 प्रतिशत का है। जिन वस्तुओं पर अभी 28 प्रतिशत से ज्यादा कर है उसका इससे ऊपर का हिस्सा उपकर के रूप में एकत्रित कर राज्यों की क्षतिपूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जायेगा। इसके बाद भी यदि कुछ राशि बचेगी तो वह केंद्र और राज्यों के बीच बाँटी जायेगी। केंद्रीय जीएसटी विधेयक में अधिकतम 40 प्रतिशत का प्रावधान रखा गया है। श्री जेटली ने बताया कि किस वस्तु को किसी स्लैब में रखना है इस पर जीएसटी परिषद् अगले महीने से काम शुरू कर देगी। शराब को विधेयक के दायरे से बाहर रखा गया है। पेट्रोलियम उत्पाद विधेयक के दायरे में हैं, लेकिन उन पर जीएसटी के तहत कर लगाना कब शुरू करना है इसके बारे में फैसला जीएसटी परिषद को बाद में करना है। साथ ही अचल संपत्ति को भी जीएसटी के दायरे में लाने पर चर्चा हुई थी किंतु राज्य सरकारों ने स्टाम्प ड्यूटी से होने वाले राज्सव के नुकसान की आशंका जतायी थी। हालाँकि, दिल्ली सरकार इसके पक्ष में थी। उन्होंने कहा कि परिषद् में यह सहमति बनी थी कि जीएसटी लागू होने के एक साल के भीतर इस पर पुनर्विचार करेंगे।

वित्त मंत्री के जवाब के बाद सदन ने चारों विधेयकों को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी तथा विपक्षी सदस्यों के दो संशोधनों को मत विभाजन के जरिये और कुछ अन्य को ध्वनिमत से नामंजूर कर दिया।
श्री जेटली ने कहा कि अभी उत्पाद कर, सेवा कर, मनोरंजन कर, मूल्य वर्द्धित कर, चुँगी जैसे कई तरह के कर चुकाने पड़ते हैं तथा कारोबारियों को कई दफ्तरों और अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। जीएसटी से ये सभी कर एक में ही समाहित हो जायेंगे। कांग्रेस के के.सी. वेणुगोपाल के “एक कर, लेकिन कई प्रकार के उपकर” के आरोप के जवाब में उन्होंने कहा कि जीएसटी लागू करने से राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए उपकर की व्यवस्था सिर्फ पाँच साल के लिए लागू की गयी है। यह कर की दर बढ़ाने की तुलना में बेहतर विकल्प है क्योंकि कर बढ़ाने से महँगाई बढ़ती।
उन्होंने कहा कि जीएसटी के आने से कर के ऊपर कर नहीं लगेगा जिससे वस्तुओं की कीमतों में थोड़ी कमी आयेगी। साथ ही कारोबारियों को सिर्फ एक ही अधिकारी के पास जाना पड़ेगा।
वित्त मंत्री ने कहा कि प्रारंभ में जीएसटी को लेकर राज्यों की अनेक आपत्तियाँ थीं, लेकिन जीएसटी परिषद् की कई दौर की बैठक के बाद सबका सर्वसम्मति से समाधान ढूँढ़ा गया। जीएसटी परिषद् एक स्थायी निकाय है और भविष्य में भी जो भी आपत्तियाँ होंगी उनका आम राय से इसमें हल निकाला जायेगा और बहुमत की राय नहीं थोपी जायेगी। उन्होंने कहा कि मूल्य वर्द्धित कर व्यवस्था को जब लागू किया गया था तो अनेक राज्यों ने अपने को इसके दायरे से बाहर रखा था, लेकिन धीरे-धीरे सभी ने इसके लाभों को देखते हुये इसे स्वीकार कर लिया था।
अनेक कर स्लैबों के बारे में विपक्ष की आपत्ति पर श्री जेटली ने कहा कि हवाई चप्पल और बीएमडब्ल्यू कार पर एक समान कर नहीं लगाया जा सकता। आम आदमी और धनाढ्य वर्ग के इस्तेमाल की चीजों पर कर की दर एक रखना उचित नहीं होगा। यह देखना जरूरी है किस सामान का उपयोग कौन सा वर्ग करता है।
इन विधेयकों को धन विधेयक के रूप में पेश किये जाने से जुड़ी आपत्तियों पर वित्त मंत्री ने कहा कि 1950 में संविधान लागू होने के बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ जब कराधान संबंधी विधेयक को धन विधेयक के रूप में न/न लाया गया हो। मुनाफा निरोधी प्रावधान पर उन्होंने कहा कि इसका मकसद यह है कि कर में मिलने वाली रियायतों को निर्माता अपनी जेब में न/न डालकर उसका लाभ उपभोक्ताओं को दें।
उन्होंने इस तर्क को गलत बताया कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) को जीएसटी से जुड़े मामलों की जाँच करने का अधिकार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि कैग को संविधान से और उसके अपने अधिनिमय से अधिकार मिला हुआ है। उसे कराधान कानूनों से शक्तियाँ नहीं मिलती हैं।
कुछ सदस्यों की इस आपत्ति पर कि विधेयकों में कृषक की परिभाषा पूर्ण नहीं है क्योंकि इसमें सिर्फ खेती करने वालों की बात कही गयी है और डेयरी उद्योग और मुर्गी पालन को इसमें नहीं रखा गया है, वित्त मंत्री ने कहा कि इस परिभाषा सिर्फ पंजीकरण के उद्देश्य से है। लगभग सभी कृषि उत्पादों को शून्य प्रतिशत के स्लैब में ही आने की संभावना है।


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