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घाटी में शांति की तलाश : अलगाववादियों से बातचीत के पक्ष में नहीं केंद्र

नयी दिल्ली ! केंद्र सरकार ने सख्त लहजे में आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए वह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से बातचीत को तैयार तो हैं,

घाटी में शांति की तलाश  :  अलगाववादियों से बातचीत के पक्ष में नहीं केंद्र
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नयी दिल्ली ! केंद्र सरकार ने सख्त लहजे में आज उच्चतम न्यायालय से कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए वह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से बातचीत को तैयार तो हैं, लेकिन किसी भी हाल में आजादी की मांग करने वाले अलगाववादियों से बातचीत नहीं होगी। केंद्र सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश जे एस केहर की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष पेश एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि सरकार कश्मीर घाटी में शांति बहाली के लिए सदैव प्रयत्नशील रही है और हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बीच हुई बैठक और इस दौरान घाटी के हालात पर हुई चर्चा इस बात का पुख्ता सबूत है। न्यायालय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की अपील पर सुनवाई कर रहा है। खंडपीठ के अन्य सदस्य हैं-न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल। याचिकाकर्ता ने घाटी में सुरक्षाबलों द्वारा पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक के निर्देश देने का अनुरोध जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय से किया था, जिसने इससे इन्कार कर दिया था। उसके बाद एसोसिएशन ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। श्री रोहतगी ने याचिकाकर्ता की उस दलील का भी पुरजोर विरोध किया, जिसमें उसने दावा किया है कि केंद्र सरकार घाटी में शांति बहाली के इरादे से वार्ता के लिए आगे नहीं आ रही है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे अलगाववादी संगठन को बातचीत में शामिल करने पर जोर दे रहा है, जबकि सरकार का यह मानना है कि वह ‘कथित’ आजादी की मांग करने वाले अलगाववादी नेताओं से बातचीत नहीं करेगी। एटर्नी जनरल ने कहा, “सरकार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से बातचीत को तैयार है, लेकिन आजादी की मांग करने वाले अलगाववादियों से बातचीत का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।” सुनवाई के दौरान न्यायालय ने घाटी में पत्थरबाजी को लेकर कई टिप्पणियां की। न्यायमूर्ति केहर ने भी कहा कि पत्थरबाजी और बातचीत एक साथ कैसे हो सकती है? उन्होंने बार एसोसिएशन से कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी और सड़कों पर हिंसक आन्दोलन को रोकने के बारे में अपने सुझाव पेश करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश ने हालांकि एसोसिएशन को आगाह किया कि वह सभी पक्षकारों से बातचीत के बाद ही अपने सुझाव देगा। याचिकाकर्ता सिर्फ यह कहकर बच नहीं सकता कि वह कश्मीर में सभी का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा है। सुनवाई के दौरान कई ऐसे मौके आये जब श्री रोहतगी ने याचिकाकर्ता की दलीलों का पुरजोर विरोध किया। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस मामले में खुद को तभी शामिल करेगा जब ऐसा लगता हो कि वह एक भूमिका निभा सकता है और इसमें अधिकार क्षेत्र का कोई मुद्दा नहीं हो। न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख मुकर्रर की है।


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