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43 साल लम्बे संसदीय जीवन में कभी नहीं देखा ऐसा संकट : शरद

बिहार में लालू यादव तमाम विरोध के बावजूद भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हो गए

43 साल लम्बे संसदीय जीवन में कभी नहीं देखा ऐसा संकट : शरद
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- राजीव रंजन श्रीवास्तव

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी व बिहार की नीतीश सरकार के खिलाफ एक साथ मोर्चा खोलने वाले वरिष्ठ समाजवादी नेता व जनता दल (यूनाइटेड) के नेता शरद यादव ने कभी अपने करीबी सहयोगी रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए कहा कि अपने राजनीति के 43 साल लम्बे संसदीय कॅरियर में ऐसा संकट का दौर कभी नहीं देखा।

बिहार में लालू यादव तमाम विरोध के बावजूद भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार हो गए, राज्य 11 करोड़ लोगों के सामने घोषणापत्र रखते हुए चुनाव लड़ा और चुनाव जीतने के कुछ समय बाद ही नीतीश कुमार भाजपा के साथ हो गए। नीतीश ने जनता से किया गया करार ही तोड़ दिया। इतने बरसों की राजनीति में हमने कोई अन्याय नहीं सहा, किसी के आगे नहीं झुके, तो अब क्यों झुकते? इसलिए हमने प्रतिकार किया। दो धुर विरोधी घोषणापत्र एक कैसे हो सकते हैं? ये बात देश की जनता भी जानती है। दूसरी ओर केंद्र में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों का खामियाजा छोटा व्यापारी, मजदूर और किसान भुगत रहा है। किसानों की पांच साल तक दोगुना कराने का दावा करने वाली सरकार दाल, गेहूं सब आयात कर रही है ऐसे में किसानों की उपज खरीदेगा कौन, वह फिर मरेगा।
देशबन्धु के ऑनलाइन न्यूज चैनल (ष्ठक्च रुढ्ढङ्कश्व) के साथ मुलाकात में शरद ने केंद्र की मोदी सरकार की नीतियों से लेकर बिहार में नीतीश कुमार की राजनीति पर खुलकर चर्चा की और आज देश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एजुटता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, आज भाजपा के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता समय का तकाजा है।

प्र. आज देश के जो राजनीतिक और आर्थिक हालात हैं, उस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

उ. ऐसी गंभीर हालत कभी हुई नहीं। ये जो सरकार बनी है, उसका कोई आर्थिक विजन ही नहीं है। संघ के लोग कहते थे कि हमारा संगठन सांस्कृतिक है, तो सरकार भी सांस्कृतिक हो गई है। उसका आर्थिक बेचैनी पर कोई ध्यान ही नहीं है। देश भर में जो हालात हैं, उसे वह समझ नहीं रही है। कहते जरूर हैं, लेकिन ध्यान नहीं देते हैं। इसका नतीजा यह है कि हालात विकट हो गए हैं। देश में बेरोजगारी भयावह है। रोज 25 से 30 किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इनकी जो डिजीटल इंडिया की सनक है, उसका खामियाजा छोटे दुकानदार भुगत रहे हैं। गरीब से गरीब आदमी को आधार कार्ड से लिंक करने की बात करते हैं। शहर से लेकर गांव तक, पेंंशन से लेकर गरीब आदमी के अनाज तक, छोटे धंधे से लेकर उद्योग धंधे तक सब चौपट हो रहे हैं।

प्र. मोदी जी ने 2014 का चुनाव युवाओं को भरोसे में लेकर जीता था। आज क्या युवाओं का उन पर वही भरोसा कायम है, क्योंकि बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी सब बढ़ रही है?

उ. वो इस देश को जवान देश कहते हैं। लेकिन जवान आदमी बिना रोजगार के रहेगा, तो कैसी तबाही मचाएगा, समझ सकते हैं। उन्होंने कहा था कि हर बरस दो करोड़ रोजगार देंंगे। उस हिसाब से तो अब तक 6 करोड़ लोगों को काम मिल जाना चाहिए था। अभी तो भारत सरकार में ही बमुश्किल 4-5 सौ लोगों को नौकरी मिलती है। जवान देश है और बेरोजगार लोग हैं।

प्र. जेपी ने संपूर्ण क्रांति की बात की थी, उसमें युवा जुड़े थे, क्या आज भी वैसा हो सकता है?

उ. जेपी आंदोलन का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि लोकतंत्र वापस आया और पहली बार हिंदुस्तान की जनता ने अपने पुरुषार्थ को पहचाना। उसने आपातकाल को नकार दिया और कहा कि हमें आजादी पसंद है। तो जयप्रकाशजी ने हिंदुस्ताना की जनता को उसकी ताकत का अंदाज कराया, ये नई चीज की। बाकी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे जो तब थे, वो आज भी हैं।

प्र. उसी दौर में लोहियाजी ने गैरकांग्रेसवाद का नारा दिया था, आज भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत की बात करती है। इन दो नारों को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?

उ. राजनीतिज्ञ वो होता है, जो समय को पहचान कर रणनीति बनाता है। वो लोहियाजी की रणनीति थी। उनके जमाने में कांग्रेस पहाड़ होती थी, आज वो ऊंट हो गई है और दो सीटों वाली भाजपा आज पहाड़ हो गई है। उस वक्त इमरजेंसी दिखती थी। लेकिन आज जो आर्थिक, सामाजिक बर्बादी हो रही है, यह इमरजेंसी तो दिखती नहीं है। तब गैरकांग्रेसवाद समय का तकाजा था, आज तो समस्याएं दूसरी हैं। मोदी सरकार ने कहा था कि रोजगार देंगे, लेकिन नहीं दे रही है। किसानों को कहा था कि डेढ़ गुना दाम देंगे, लेकिन आपने दाल, गेहूं सब आयात कर लिया है, तो किसान की उपज कौन खरीदेगा। वह फिर मरेगा। लेकिन सरकार कह रही है, सबका साथ, सबका विकास। अच्छे दिन। क्या अच्छे दिन का मतलब दिया जलाओ होता है? अयोध्या में राम को उतार दिया। साहब मंदिर-मंदिर घूम रहे हैं। राज का कोई धर्म नहीं होता है। धर्म तो निजी मामला है। लेकिन या तो ये मंदिरों में हैं, या विदेश में हैं। और ये उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री तो गजब कर रहे हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की आर्थिक-सामाजिक जरूरतों के लिए, संविधान है। हिंदुस्तान का संविधान जिंदा लोगों के लिए है, धर्म के लिए नहीं है। कौन मना कर रहा पूजा पाठ से, लेकिन ये राज का धर्म तो नहीं हो सकता न। राज का धर्म पाकिस्तान ने बनाया, तो तबाह हो गया। आज हिंदुस्तान को ये लोग उसी राह पर ले जा रहे हैं।

प्र. 2019 का चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा? इसके पहले तो मुद्दा भ्रष्टïटाचार था।

उ. नोटबंदी, जीएसटी, किसानों का हित, रोजगार यही मुद्दे होंगे। कहां है अच्छे दिन। आप तो लोगों के घर में जाकर देख रहे हो कि क्या पक रहा है और फिर मार रहे हो। गाय की पूंछ पकड़कर घूम रहे हो, तो यही सब मुद्दे हैं। छोटे उद्योग, छोटे दुकानदार तबाह हो गए। जिस मतदाता ने वोट देकर आपकी सरकार बनाई, आपने उसे ही बरबाद कर दिया।

प्र. साझी विरासत के माध्यम से विपक्ष एक मंच पर आया। क्या आगे कांग्रेस आपके साथ आएगी?

उ. साझी विरासत में तो सभी लोग हैं। भारत बंद में भी साथ हैं। भूमि अधिग्रहण बिल पर भी हम सब साथ थे। ये तो भाजपा का शिगूफा है कि विपक्ष बिखरा हुआ है। भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ हमने संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च भी किया। गुलाम नबी आजाद ने बताया कि सोनिया जी आना चाहती हैं, तो हमने कहा था आईए। राज्यसभा में हमने उनको तीन बार हराया। दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराषट्र में साझा विरासत के मंच पर सब एक साथ थे। साझा विरासत, संविधान की प्रस्तावना है। ये देश अंतर्विरोधों से भरा हुआ है। यहां कई धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय, पंथ, भाषाएं, बोलियां हैं, इसे ध्यान में रखते हुए संविधान बनाया गया। लेकिन ये लोग उसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं। इन्होंने धर्मनिरपेक्षता का मतलब हिंदू-मुसलमान कर दिया है, जो गलत है। धर्मनिरपेक्षता नहीं, साझा विरासत इस देश के संविधान की आत्मा है।

प्र. शरद यादव विपक्षी एकता को एक मंच पर ला चुके हैं, क्या हम ये मान लें?

उ. ये सिलसिला जारी है। साझा विरासत में सभी मुद्दे हैं। स्काई इज़ द लिमिट।

प्र. यानी राजनीति ही नहीं बाकी मुद्दे भी इसमें हैं।

उ. बिल्कुल। ये सरकार जो भी गलत कदम उठा रही है, उसका मुकाबला वहीं हो रहा है। अभी सारे दल नोटबंदी के खिलाफ एकजुट होकर काला दिवस मनाएंगे। ये कह रहे हैं कि विपक्ष एक नहीं है। लेकिन ऐसा नहींं है। जनता एक कर देगी। जो इस विपक्ष से अलग होगा, वो कूड़ेदान में चला जाएगा। हिंदुस्तान की जनता ने जेपी के वक्त ही पुरुषार्थ को पहचान लिया था। राजनेता नहीं समझ रहे हैं। मैं वहीं था जब जेपी से कांग्रेस, लोकदल, समाजवादी पार्टी और जनसंघ के लोग मिलने पहुंचे थे। उनका स्वास्थ्य पूछ रहे थे। जेपी ने दो ही बातें कहीं या तो आप लोग एक हो जाओ, या मुझे छोड़ दो। हो गए सब लोग एक। जेपी एक तरह से जनता की आवाज़ हो गए थे। अभी भी जो जनता की आवाज नहीं सुनेगा, जनता उसे उठाकर कूड़ेदान में फेंक देगी। तो अभी भी सबके सहयोग से आगे बढ़ा जाएगा। देश अभूतपूर्व संकट में है। आजादी के लड़ाई के सारे मूल खतरे में हैं। देश एक बार विभाजन का दर्द देख चुका है। 18 लाख लोग मारे गए, करोड़ों इधर से उधर हुए। इतनी बड़ी त्रासदी दुनिया में कहीं नहीं हुई, उसके बाद भी ये सरकार उस काम में लगी हुई है। मैं 43 साल से संसद में हूं, लेकिन ऐसा संकट का दौर मैंने कभी नहीं देखा।

प्र. इस संकट के दौर में एक संकट बिहार का भी है। वहां जो स्थिति बनी कि नीतीश कुमार जी राजग के साथ चले गए और आज आपके व उनके बीच पार्टी पर हक की लड़ाई चल रही है। इसमें जीत किसकी होगी?

उ. जीत-हार का कोई सवाल नहीं है। हमने वहां महागठबंधन बनाया था। लालूजी महागठबंधन के हक में तो थे, लेकिन किसी को प्रोजेक्ट नहीं करना चाहते थे, खासकर नीतीशजी को। वो कहते थे कि चुनाव के बाद तो ठीक है लेकिन पहले मुझे स्वीकार करने में कठिनाई होगी। लेकिन हम सबने समझाया और हमारे दबाव में उन्होंने हामी भरी। नीतीश जी को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करवाया। हमने 11 करोड़ की जनता के बीच महागठबंधन का घोषणापत्र जारी किया। लोकतंत्र में घोषणापत्र मालिक यानी जनता के साथ सबसे बड़ा करार होता है। लेकिन आप उससे मुकर गए। बहाना भ्रष्टाचार का बना दिया। लालूजी पर तो केस पहले भी था। तो फिर आपने उनके साथ गठबंधन क्यों किया? दस बार उनके घर क्यों गए? क्या शुचिता की भी समयसीमा होती है कि इस तारीख तक वो वैध रहेगी, फिर नहीं रहेगी। उनके बेटे पर एफआईआर हो गई तो आपको शुचिता का बहाना याद आ गया। महागठबंधन में 80 सीटें लालूजी ने जीती थीं, हमने तो 71 ही जीती थीं। आपने तो जनता से किया गया करार ही तोड़ दिया। इतने बरसों की राजनीति में हमने कोई अन्याय नहीं सहा, किसी के आगे नहीं झुके, तो अब क्यों झुकते? इसलिए हमने प्रतिकार किया। हां, जिस समय राजग से बाहर हो रहे थे, तब हमने मना किया था। तब अटल-आडवानी जी की लीडरशिप थी, नेशनल एजेंडा था। आज तो राजग का कोई नेशनल एजेंडा नहीं है। फिर इनको वहां कौन पूछेगा? इन्होंने अंधेरी गली के अंतिम मकान में अपना ठिकाना बना लिया है। इन्होंने अकेले बिहार का नहीं, देश का भी नुकसान करवाया है। बिहार की जनता ने भाजपा का विजय रथ रोका तो बाकियों में भी उत्साह भर रहा था। जनता ने इनके चेहरे या किसी एक के चेहरे को देखकर नहीं जिताया था। हम सब इक_े हुए थे। केंद्र ने तो मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, धन-संपत्ति सबकी ताकत लगा दी थी। लेकिन इस हाहाकार में भी जनता ने महागठबंधन को जिताया। नीतीश जी ने क्या किया, उन्हीं की गोद में चले गए। जब राजग से नीतीश जी निकल रहे थे, तब मेरी इच्छा नहीं थी, लेकिन पार्टी न टूटे, इसलिए मैं मान गया। आज मौका था, कि राजग से बाहर निकला जाए, इससे देश बचता। लेकिन नीतीश जी भाजपा के खिलाफ लड़कर उन्हीेंंं के साथ चले गए।

प्र. नीतीश जी को विपक्ष के नेता के रूप में देखा जा रहा था।

उ. उनकी मैं निजी तौर पर आलोचना नहीं करना चाहता। लेकिन यह जरूर कहूंगा कि दो धुर विरोधी घोषणापत्र एक कैसे हो सकते हैं? ये बात देश की जनता भी जानती है। आपको बद्रीनाथ जाना है और आप सिनेमा देखने की राह पकड़ लो, तो कहां पहुंचेगो? रास्ता इंसान को बनाता है, उसे छोड़ना नहीं चाहिए। रास्ता आदमी को ऊंचा भी उठाता है और नीचे भी गिराता है। नीतीश जी ने नीचे जाने वाला रास्ता पकड़ा है। वो वहां टिक नहीं पाएंगे।

प्र. गठबंधन को मजबूत करने में आपको कितनी सफलता मिली है?

उ. सफलता तो अलग बात है। आज जो राजग की सरकार बनी है, वो भले आज कोई कानून न मानकर हमें नोटिस पर नोटिस दे रही है। राज्यसभा सदस्यता समाप्त करना चाहती है। लेकिन ये जो वहां तक पहुंचे हैं, तो याद करें कि 2जी, कामनवेल्थ जैसे मुद्दे किसने उठाए थे? कलमाड़ी को खड़े-खड़े किसने गिरफ्तार करवाया था? बच्ची के साथ बलात्कार के आरोप में आसाराम को बंद किसने करवाया था? कोल ब्लाक का मामला मैंने, सुषमाजी और यशवंत सिन्हाजी ने उठाया था। सबसे ज्यादा हमीं आगे थे। दो बार भारत बंद कराया था मैंने। ये जो बैठे हैं, इनमें संघर्ष हम सबका था।

प्र. आप आडवानीजी के साथ थे, जो घोर हिंदुत्ववादी नेता हैं?

उ. लेकिन तब सरकार का राष्ट्रीय एजेंडा था। न्यूनतम साझा कार्यक्रम था। आज तो ऐसा है ही नहीं। कुल दो आदमियों की सरकार है और पीछे-पीछे अरुण जेटली हैं।

प्र. महिला आरक्षण पर आप क्या अब भी अपने पुराने रुख पर कायम हैं?

उ. हम चाहते हैं कि समाज की हकीकत के अनुसार आरक्षण हो। सुक्खोरानी और महारानी को एक जैसा आरक्षण देने का क्या मतलब? सुक्खोरानी सामाजिक तौर पर बहुत पीछे हैं। निचले तबके और ऊंचे तबके के फर्क को समझ कर आरक्षण करो। जो तरीका पंचायती राज में लागू है, उसी तरह से महिला आरक्षण विधेयक में हो, तो हमें कोई दिक्कत नहीं।


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